पटना मेट्रो का चल रहा निर्माण कार्य | फोटो क्रेडिट: Patna Metro
पटना इस समय उत्साह से लबरेज है। शहर को एक नया अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा मिल रहा है, जिसका उद्घाटन इसी 24 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे। इसके अलावा एक एलिवेटेड रोड भी बन कर तैयार है। इसी साल 15 अगस्त तक बिहार की पहली मेट्रो भी यहां दौड़ने लगेगी। पहले चरण में पांच स्टेशनों के साथ छह किलोमीटर ट्रैक बिछा है। भले ही यह छोटी लाइन है, लेकिन इससे आगे के लिए बड़ी उम्मीद जगी है। पिछले साल जून में राज्य सरकार ने मुजफ्फरपुर, गया, दरभंगा और भागलपुर जैसे शहरों में भी मेट्रो लाइन के निर्माण को मंजूरी दी है। इसी के साथ ये आगरा, लखनऊ, जयपुर समेत देश के उन छोटे शहरों में शुमार हो जाएंगे, जहां मेट्रो चलने लगी है।
मेट्रो की मांग लगातार बढ़ रही है। खासकर चुनाव नजदीक आते ही लोग अपने-अपने नगरों में इस सुविधा का वादा अपने राजनेताओं से लेने लगते हैं। बिहार में भी साल के अंत में चुनाव होने वाले हैं। सबसे अच्छी बात यह है कि मेट्रो बिना किसी राजनीतिक नफा-नुकसान वाला बुनियादी ढांचा है। हां वित्तीय खर्चों को लेकर जरूर सवाल उभर आते हैं।
भाजपा की ओर से विधान परिषद सदस्य देवेश कुमार कहते हैं कि मेट्रो पटना में भीड़भाड़ को कम करने में खासी मददगार साबित होगी। साथ ही इसके आसपास के कस्बों-शहरों के विकास में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।
तेजी से फैलता पटना: सिटी मेयर के आंकड़ों के मुताबिक यह 2006 से 2020 के बीच दुनिया का 21वां और देश का 5वां सबसे तेजी से फैलने वाला शहर है। वर्ष 2025 में इस महानगर की आबादी लगभग 27 लाख होने का अनुमान है, जो 2024 के मुकाबले 2.16 प्रतिशत अधिक है। पटना के लोगों को मेट्रो का तोहफा देना विधान सभा चुनाव में सरकार का प्रमुख चुनावी वादा था। उस समय नीतीश कुमार की जदयू भाजपा के साथ सत्ता में थी। उसके बाद से नीतीश कुमार दो बार सरकार के सहयोगी बदल चुके हैं। इस निरंतर राजनीतिक उलट-फेर के बीच निर्माणाधीन मेट्रो या भविष्य की परियोजनाएं कभी भी विवाद के घेरे में नहीं आईं।
पटना की तरह मामला गुवाहाटी का हो या रांची का, वाराणसी हो अथवा औरंगाबाद, सभी जगह मेट्रो की मांग उठती रही है और राजनीतिक मोर्चे पर किसी की हिम्मत नहीं कि इसका विरोध कर सके।
शहरीकरण पर व्यापक शोध करने और मेट्रोनामा जैसी पुस्तक लिखने वालीं जॉर्ज मेसन विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र और मानव विज्ञान की प्रोफेसर रश्मि सडाना बताती हैं कि कैसे दिल्ली मेट्रो ने शहर की सूरत ही बदल दी है। वह कहती हैं, ‘भले मेट्रो में सवारी करना थोड़ा महंगा है, लेकिन लगभग एक तिहाई समय की बचत, बेहद सम्मानित तरीके से यात्रा, बेहतर रोशनी, जलवायु नियंत्रित और साफ-सुथरे माहौल के साथ यह अखरता नहीं है।
सडाना कहती हैं, ‘दिल्ली मेट्रो काफी हद तक अपने आकार के कारण कामयाब हुई है। यह इस महानगर के प्रमुख हिस्सों को कवर कर रही है। यह कम खर्चीला परिवहन साधन नहीं है, इसके बावजूद बड़ी संख्या में लोग इसका उपयोग करते हैं। यहां समय की बचत और सुगम यात्रा जैसे कारक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। लेकिन, छोटे शहरों में यह सुविधा के बजाय दिखावे की परियोजना ही है। यहां छोटी-छोटी मेट्रो लाइनें हैं और यात्रियों की संख्या भी बहुत कम होती है। हर दूसरे शहर में छोटी-छोटी मेट्रो लाइनों का होना किसी वित्तीय आपदा से कम नहीं है।’ वह कहती हैं, ‘मेट्रो होने के बावजूद दिल्ली में आप परिवहन के अन्य साधनों विशेष रूप से बसों को अनदेखा नहीं कर सकते। आपको अभी भी उनसे जुड़े रहना होगा। बेहतर और सुगम यात्रा के लिए मेट्रो ही नहीं, पूरे परिवहन ढांचे में निवेश करना होगा।’
एक संसदीय स्थायी समिति ने 2022 में अपनी रिपोर्ट में भी कहा था कि दिल्ली और मुंबई लाइन-1 को छोड़ दें तो बेंगलूरु, हैदराबाद, चेन्नई, लखनऊ और जयपुर जैसी अधिकांश मेट्रो परियोजनाओं में दैनिक स्तर पर यात्रियों (राइडरशिप) की औसत संख्या काफी कम है। इस रिपोर्ट में दिए गए आंकड़ों के अनुसार 2020-21 में बेंगलूरु मेट्रो प्रणाली के बेहतर परिचालन सुनिश्चित करने के लिए दैनिक स्तर पर 18.6 लाख यात्री सवारी की आवश्यकता है, जबकि इसके मुकाबले हर रोज इसमें सफर करने वालों की संख्या 96,000 ही है। इसी प्रकार हैदराबाद मेट्रो में यह संख्या केवल 65,000 सवारियां ही थी, जबकि यहां हर रोज कम से कम 19 लाख यात्री होने चाहिए।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है, ‘समिति ने पाया है कि मेट्रो परियोजनाओं में पर्याप्त यात्री नहीं होना कई चीजों को इंगित करता है। जैसे (i) दूरदराज या अंतिम छोर तक कनेक्टिविटी की कमी, (ii) दोषपूर्ण विस्तृत परियोजना रिपोर्ट और (iii) स्टेशनों पर पार्किंग की कमी। यदि मेट्रो को व्यापक परिवहन का माध्यम बनाया जाना है, तो यात्रियों को निजी वाहनों के उपयोग के प्रति हतोत्साहित करना होगा। इसलिए, समिति ने सिफारिश की है कि राइडरशिप अनुमान यथार्थ पर आधारित और सटीक होने चाहिए। साथ ही सभी मेट्रो परियोजनाओं में सवारियों की संख्या बढ़ाने के लिए ठोस कदम उठाए जाएं।’
हालांकि पूरे देश में जहां-जहां मेट्रो चल रही है, उनमें औसत दैनिक सवारियों की संख्या लगातार बढ़ रही है, लेकिन अभी भी यह प्रारंभिक अनुमानों से बहुत कम है। मेट्रो ट्रेन लोकप्रिय तो है, लेकिन उतनी नहीं, जितनी शुरुआती स्तर पर कल्पना की गई थी।
एशियाई विकास बैंक (एडीबी) में परिवहन इन्फ्रा और नीति पर शोध का नेतृत्व करने वाले शरद सक्सेना कहते हैं कि केवल किराये से होने वाली आमदनी पर निर्भर रहने से काम नहीं चलेगा। बड़ी संख्या में सवारियों को आकर्षित करने के लिए टिकट की कीमतें कम रखनी ही होंगी। आखिरकार, पूरा मामला यह है कि यह सभी के लिए सुलभ बड़ा परिवहन साधन है। वह कहते हैं, ‘इसलिए हम थोड़ी सी असमंजस की स्थिति में हैं। किराया कम रखें तो यह यातायात प्रणाली वित्तीय रूप से अव्यवहारिक हो जाती है। किराया बढ़ाएं तो सवारियों की संख्या घट जाती है जिससे आर्थिक संकट की स्थिति बन सकती है।’ वह कहते हैं कि ट्रांजिट कंपनियों को इस प्रणाली को सुचारु रूप से चलाने के लिए स्थायी रूप से सरकार पर निर्भर रहने से बचना होगा।
सक्सेना कहते हैं, ‘इसका सबसे अच्छा समाधान किराए के बजाय आय बढ़ाने के लिए अन्य साधन खोजने होंगे। इनमें विज्ञापन, ब्रांडिंग अधिकार और संपत्ति विकास जैसे स्रोत शामिल हैं। अभी, छोटे शहर की मेट्रो उसी के लिए संघर्ष कर रही है। इसलिए वैकल्पिक स्रोतों से राजस्व जुटाना जरूरी होगा।’
नोएडा मेट्रो इसका बेहतर उदाहरण है, जहां सवारियों की संख्या पूर्व में लगाए गए अनुमानों से काफी कम है। ऐसे में आमदनी बढ़ाने के लिए यहां मेट्रो का संचालन करने वाली कंपनी एनएमआरसी ने एक नई और आकर्षक सेवा शुरू कर दी है। लोग मेट्रो में ही जन्मदिन की पार्टी या प्री-वेडिंग जैसे इसी तरह के अन्य छोटे समारोह आयोजित कर सकते हैं। इसके लिए उपयोगकर्ता मामूली शुल्क पर स्थिर या चलती कोचों में पार्टी कर सकते हैं। आप कोच को खुद सजा सकते हैं या यह काम मेट्रो स्टाफ से भी करवा सकते हैं। मैजिक शो और टैटू कलाकार भी इस पार्टी का हिस्सा हो सकते हैं। लोगों को इसके लिए अधिकतम 10,000 रुपये प्रति घंटा चुकाना होता है।
लखनऊ में मेट्रो ने लोगों को किटी पार्टियां, सगाई समारोह और पारिवारिक पुनर्मिलन जैसे कार्यक्रम आयोजित करने की सुविधा शुरू की है। हालांकि यहां कोच के अंदर अभी भी खाना-पीना करने की इजाजत नहीं है। तो, क्या मेट्रो राज्यों के लिए अभी केवल डींग मारने का साधन मात्र है।
अभी देशभर में लगभग 1,000 किमी मेट्रो लाइनों का जाल फैल चुका है। दिल्ली मेट्रो दुनिया की सबसे लंबी मेट्रो में से एक है। देश के 22 अन्य शहरों में मेट्रो का काम चल रहा है। इसमें 1,000 किमी ट्रैक बहुत जल्द तैयार होने की उम्मीद है।
इन्फ्राविज़न फाउंडेशन के सीओओ नितिन जामरे ने आईआईएम अहमदाबाद के प्रोफेसर संदीप चक्रवर्ती के साथ 2023 के एक संयुक्त पेपर में कहा था, ‘जैसे-जैसे मेट्रो रेल प्रणाली का विस्तार होगा, इसके वित्तीय नुकसान इससे होने वाले सामाजिक और पर्यावरणीय लाभ पर भारी पड़ने लगेंगे। ऐसा प्रतीत होता है कि मेट्रो अपनी उच्च लागत के बावजूद राजनीति से ऊपर है।