डॉनल्ड ट्रंप प्रशासन की सख्त प्रवासन नीतियों और शैक्षणिक संस्थानों को समर्थन देने में अनिश्चितता के आसार बनने के कारण, भारत के कुछ बैंकों ने अमेरिका जाने वाले छात्रों के लिए अपनी शिक्षा ऋण नीतियों का दोबारा मूल्यांकन करना शुरू कर दिया है।
विदेश में अध्ययन के मामले में ऋण पूरी तरह से गिरवी संपत्ति पर आधारित होता है लेकिन बैंक अपनी समीक्षा में कई महत्वपूर्ण पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करेंगे जिसमें संस्थानों की पृष्ठभूमि की बारीकी से जांच की जाएगी और वीजा से जुड़ी छानबीन और ऋणों के लिए मार्जिन मनी (छात्रों का खर्चों में योगदान) पर दोबारा विचार किया जाना शामिल है।
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक के वरिष्ठ अधिकारियों के अनुसार, इसके अलावा बैंकर चुने गए पाठ्यक्रमों से जुड़ी नौकरी की संभावनाओं का भी आकलन करेंगे। बैंकर इस सतर्कता भरे रवैये के लिए दो प्राथमिक घटनाक्रम को जिम्मेदार ठहराते हैं।
पहला, अमेरिका ने बिना दस्तावेज वाले प्रवासियों से सख्ती से निपटने के लिए अपनी नीतियां और उपाय स्पष्ट किए हैं। प्रवासन को लेकर गहरी आशंका के कारण भविष्य में वीजा और नौकरी की संभावनाओं से जुड़े कानूनी रुख पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना है। दूसरा, अमेरिका के द्वारा शिक्षा कार्यक्रमों और संस्थानों को दिए जा रहे सरकारी समर्थन की समीक्षा करने के कदम का प्रभाव भी विभिन्न पाठ्यक्रमों में दिलचस्पी दिखा रहे छात्रों की वित्तीय सहायता हासिल करने की संभावनाओं पर पड़ सकता है।
हालांकि कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है लेकिन मुंबई के एक सरकारी क्षेत्र के बैंक के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि मौजूदा स्थितियों को देखते हुए पुनर्मूल्यांकन आवश्यक है। दक्षिण भारत के एक बैंक के एक बैंकर ने कहा कि इन नीतिगत बदलावों को देखते हुए निकट भविष्य में अमेरिका में शिक्षा के लिए ऋण लेने की दर में कमी आने की संभावना है। हालांकि, इस सावधानी का मतलब यह नहीं है कि बैंक, अमेरिका में पढ़ाई के लिए छात्रों को ऋण देने के दरवाजे बंद कर रहे हैं।
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के अनुसार, फरवरी 2025 में कुल शिक्षा ऋण 15.3 प्रतिशत बढ़कर 1.36 लाख करोड़ रुपये के स्तर तक पहुंच गया। शत प्रतिशत संपत्ति कवर के चलते बैंकों को भुगतान में चूक के मामले में सुरक्षा मिलती है। इसके अतिरिक्त, बैंक कर्ज लेने वाले छात्रों और उनके परिवारों से व्यक्तिगत गारंटी लेते हैं, ऋण वितरित करने से पहले वीजा स्थिति की पुष्टि करते हैं, और विशिष्ट मानकों को पूरा करने पर शैक्षणिक संस्थानों को सीधे किश्त के आधार पर फंड जारी करते हैं।
एक अन्य बैंकर ने कहा कि अभिभावक भी अपने बच्चों को अब पहली पसंद के रूप में प्राथमिकता देते हुए अमेरिकी विश्वविद्यालयों में भेजने के लिए कम दिलचस्पी दिखा सकते हैं। अमेरिका में पढ़ाई करने वाले भारतीय छात्र आमतौर पर दो श्रेणियों में आते हैं यानी मेधावी और औसत या औसत से कम शैक्षणिक रिकॉर्ड वाले।
हालांकि जिन छात्रों का शैक्षणिक रिकॉर्ड बेहतर है और जिनके पास वैसा कौशल है जिनकी मांग है तो वे अमेरिका ही चुनेंगे जहां ऐसी प्रतिभाओं की बहुत मांग है। हालांकि जिन छात्रों का शैक्षणिक रिकॉर्ड बहुत बेहतर नहीं है वे अमेरिका में अनिश्चितता का सामना करने के बजाय यूरोप, ऑस्ट्रेलिया या दूसरे किसी देश को एक सुरक्षित विकल्प के रूप में चुन सकते हैं। हालांकि स्थिति में अब भी बदलाव आ रहा है और बैंक इंतजार करने की रणनीति अपना रहे हैं।