भारत में कारोबार माहौल को लेकर बना अविश्वास का माहौल गहराता ही जा रहा है।
हाल में ही किए गए एक ताजा सर्वेक्षण के अनुसार एशिया-प्रशांत क्षेत्र में कारोबार कर रहे विदेशी संस्थागत निवेशकों ने निवेश के लिहाज से भारत को बहुत कम कर के आंका है।
इस सर्वेक्षण में हेज फंडों सहित 30 दीर्घ अवधि के फंडों के अध्ययन में पाया गया कि इनमें से मात्र 5 फीसदी ही भारत में निवेश को लेकर उत्साहित हैं।
हालांकि सभी 30 फंडों ने भारत की अपेक्षा चीन को निवेश के लिए अधिक सुरक्षित स्थान माना। भारत को लेकर विदेशी संस्थागत निवशकों में विश्वास की कमी का एक और कारण यहां पर होने वाला आगामी आम चुनाव है।
पिछले दो महीनों के दौरान बीएसई के संवेदी सूचकांक सेंसेक्स के प्राइस अर्निंग(पीई) अनुपात में गिरावट आई है और यह 9.85 के स्तर से लुढ़क कर 8.65 के स्तर पर आ चुका है। चीन के भी शंघाई का समग्र पीई अनुपात 16.37 के स्तर से घटकर 14.12 पर आ गया। इसके अलावा भारत के ज्यादातर मैक्रो-इकोनॉमिक संख्याओं में गिरावट दर्ज की गई है।
यह गिरावट वर्ष 2003 के उस स्तर तक पहुंच गई है जिस समय भारतीय शेयर बाजार में कारोबार तेजी पकड़ने के कगार पर था। सितंबर-दिसंबर तिमाही के दौरान भारत का सकल घरेलू उत्पाद पिछले छह वर्षों के निम्तम यानी 5.3 फीसदी के स्तर पर आ गया।
उद्योग जगत की आय में खासा गिरावट का रुख रहा और यह पिछले पांच वर्षों के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया जबकि डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत भी अब तक के अपने निम्तम स्तर पर पहुंच चुका है। भारत के लिए सबसे बड़े सिरदर्द की बात है राजकोषीय घाटा जिसके वर्ष 2008-09 के दौरान 6 फीसदी रहने का अनुमान लगाया गया है।
इस वजह से अंतरराष्ट्रीय रेटिंग ऐजेंसी स्टैंडर्ड ऐंड पुअर्स ने भारत के सॉवरिन रेटिंग को स्थिर से नकारात्मक कर दिया है जिससे भारतीय कंपनियों की विदेश में फंड जुटाने की क्षमता पर खासा असर पड़ सकता है।
एक प्रमुख विदेशी संस्थागत कंपनी से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि भारतीय उपमहाद्वीप की स्थिति 6 साल पहले जैसी नहीं रही जब बाजार कारोबार के लिए पूरी तरह तैयार दिख रहा था।
अधिकारी ने कहा कि कारोबारी माहौल बिगड़ता जा रहा है जो चिंता का विषय है। इंडिया इन्फोलाइन द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार विदेशी संस्थागत निवेशकों का तकनीकी, रियल एस्टेट और धातुओं के कारोबार के प्रति विश्वास में काफी कमी आई है।
सर्वेक्षण में पाया गया कि करीब 67 फीसदी फंडों ने तकनीकी क्षेत्र को लेकर शॉर्ट पोजीशन ले लिया जबकि 40 फीसदी फंडों ने रियल एस्टेट और धातुओं के शेयरों के प्रति विश्वास में काफी कमी दिखाई।