पिछले महीने भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के अपनी ब्याज दरों को काफी कम करने के साथ ही आवासीय ऋण लेने वालों ने चैन की सांस ली है।
पिछल चार वर्ष में ब्याज दरें 7 प्रतिशत से लगभग दोगुनी हो कर 13 प्रतिशत तक पहुंच चुकी हैं। इसका असर मासिक किस्तों (ईएमआई) पर देखने को मिलता है।
इसका मतलब है चार साल पहले 30 लाख रुपये के 15 वर्षों के लिए आवास ऋण लेने वाले को 7 प्रतिशत की ब्याज दर से हर महीने 26,964 रुपये की मासिक किस्त चुकानी पड़ती थी।
जबकि इन्हीं आंकड़ों के साथ 7 की बजाय 13 प्रतिशत की ब्याज दर पर अब मासिक किस्त 11,000 रुपये बढ़कर 37,957 रुपये हो गई है। हालांकि वित्तीय संकट बढ़ने और कर्ज की कमी बढ़ने के साथ शीर्ष बैंक ने पिछले महीने दरों में कटौती कर दी। इससे ब्याज दरों में भी आगे गिरावट होगी।
मौजूदा समय में सार्वजनिक क्षेत्र के ज्यादातर बैंकों ने ही अपनी ब्याज दरों में कटौती की है। भारतीय स्टेट बैंक ने 15 वर्ष की अवधि के लिए आवास ऋण की ब्याज दर को घटाकर 10 प्रतिशत किया है। पंजाब नैशनल बैंक और बैंक ऑफ बड़ौदा जैसे दूसरे बैंकों ने भी अपनी ब्याज दरों में कमी की है।
दूसरी ओर निजी क्षेत्र के सबसे बड़े बैंक आईसीआईसीआई बैंक ने समान अवधि के लिए अपनी ब्याज दरों में कोई फेरबदल न कर उन्हें 13 प्रतिशत पर ही बनाए रखा है। यहां तक कि एचडीएफसी की भी ब्याज दरें भी 11.75 प्रतिशत है।
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और निजी बैंकों की ब्याज दरों में 2 से 3 प्रतिशत का फर्क है, जिसका मतलब है आपकी ईएमआई में 5,500 रुपये का अंतर।
तो अब हमारे सामने जो सबसे बड़ा सवाल है, वह यह कि क्या सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से कर्ज लेना सही है या फिर निजी बैंकों से? चलिए दोनों क्षेत्रों के बैंकों की पेशकश को विभिन्न कसौटियों पर आंकते हैं।
उपलब्धता बनाम ब्याज दर: बैंकरों का कहना है कि इन दोनों क्षेत्रों की ब्याज दरों में फर्क इसलिए है, क्योंकि दोनों क्षेत्र कारोबार के लिए अलग-अलग चीज पर मुकाबला कर रहे हैं। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने ब्याज दरें तो कम कर दी हैं, लेकिन पात्रता के उनके नियम-कायदे काफी कड़े हैं।
वहीं दूसरी तरफ निजी बैंक और हाउसिंग फाइनैंस कंपनियां पात्रताओं के पचड़े के लिहाज से काफी आगे हैं। उदाहरण के लिए इंडियाबुल्स की आवास ऋण पर ब्याज दर 17.5 प्रतिशत है।
मनी प्वाइंट के एक डायरेक्ट सेलिंग एजेंट विनोद प्रजापति, जो ऑनलाइन सलाहकार वेबसाइट इजीफाइनैंस डॉट इन भी चलाते हैं, का कहना है, ‘लेकिन इसकी पात्रता की शरतै काफी आसानी से पूरी की जा सकती हैं।’
राष्ट्रीय बैंक इस बात पर ध्यान देते हैं कि लेनदार की क्षमता क्या है और वे लेनदार की क्रेडिट इन्फॉर्मेशन ब्यूरो ऑफ इंडिया (सिबिल) की रिपोर्ट को भी देखते हैं। इस रिपोर्ट में ग्राहक के सभी कर्जों, क्रेडिट कार्ड की संख्या आदि की पूरी जानकारी दी जाती है।
एक बैंकर का कहना है, ‘बहुत सारे क्रेडिट कार्ड या फिर कार्ड पर लगातार बकाया राशि के साथ हो सकता है कि आपके कर्ज को नामंजूर कर दिया जाए।’
सेवा: सेवा एक बड़ी वजह है, जिसके लिए लेनदार निजी कर्ज देने वाली संस्थाओं की ओर बढ़ते हैं। कर्ज के लिए आवेदन करने से लेकर कर्ज मिलने तक की प्रक्रिया में निजी बैंक या हाउसिंग फाइनैंस कंपनियां राष्ट्रीय बैंकों से आगे हैं।
निजी संस्थान इतने सहज तरीके से ग्राहकों को कर्ज मुहैया कराते हैं कि वे अपने घर बैठे-बैठे ही कर्ज ले लें। किसी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक से कर्ज लेने के लिए ग्राहक को अधिकारियों से मिलने के लिए लंबा इंतजार भी करना पड़ता है।
डायरेक्ट सेलिंग एजेंटों का कहना है कि निजी क्षेत्र के किसी भी संस्थान से कर्ज लेने के लिए आवेदन से लेकर कर्ज मिलने तक लगभग 10 दिन का समय मिलता है। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक इससे लगभग दोगुना समय लगा देते हैं।
प्रजापति का कहना है, ‘ज्यादातर सरकारी बैंकों में मंजूरी के लिए शाखा कार्यालय को कर्ज के दस्तावेज स्थानीय मुख्य कार्यालय को भेजने पड़ते हैं।’
इसके अलावा सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में उनकी प्रक्रिया की वजह से अधिक वक्त लगता है। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक अपने कर्मचारियों को परिसंपत्ति के मूल्यांकन के लिए भेजते हैं और ग्राहक की ऐसी संपत्ति की जानकारी लेने के कर्मचारियों को भेजा जाता है, जिनका खुलासा ग्राहक ने नहीं किया होता है।
मार्जिन : ज्यादातर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने कर्ज की राशि के मार्जिन को भी कम कर दिया है। अब सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक ज्यादा से ज्यादा परिसपंत्ति की कीमत के लगभग 80 प्रतिशत तक के लिए ही कर्ज मुहैया कराते हैं।
डायरेक्ट सेलिंग एजेंटों का कहना है कि वास्तविकता में यह बैंक परिसंपत्ति की कीमत से अधिक के लिए कभी कर्ज नहीं देते।
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का मानना है कि अगर व्यक्ति की घर में इक्विटी अधिक होगी तो उसके डिफॉल्ट होने की आशंकाएं कम हो जाती हैं। कई सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक करार की कीमत को ध्यान में नहीं रखते। मौजूदा समय में जब सपंत्ति की कीमतें घट रही हैं तो ये बैंक अलग से अपना मूल्यांकन कर रहे हैं।
दर में कटौती : ब्याज दरों में जब भी कटौती होती है सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक ही सबसे पहले दरों में कटौती करते हैं। निजी कंपनियों की दरें मौजूदा ग्राहकों और नए ग्राहकों के लिए अलग-अलग होती हैं।
और तो और नई तय दरें कार्ड दरें होती हैं जो सिर्फ नए ग्राहकों पर लागू होती हैं। मौजूदा ग्राहकों को ब्याज दरों से एक चौथाई या आधा प्रतिशत अधिक ब्याज देना पड़ता है। जबकि ज्यादातर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की दरें अलग-अलग नहीं होतीं।
कई मौजूदा कर्ज लेनदार अपने कर्ज को सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में स्थानांतरित कराने की कोशिश कर रहे हैं।
कर्ज स्थानांतरण : ब्याज दरों में फर्क होने की वजह से मौजूदा समय में कर्ज लिए हुए लोग अपने कर्ज को स्थानांतरित करने के लिए खोजबीन में लगे हुएहैं।
साथ ही वे अपने निजी बैंक से राष्ट्रीय बैंक में कर्ज की अपनी बची हुई राशि को स्थानांतरित कराने के बारे में भी पूछ रहे हैं।
लेकिन सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक अन्य कंपनियों से पहले ही कर्ज ले चुके ग्राहकों के लिए अधिक कड़ा रवैया अपनाए हुए हैं। साथ ही लेनदार को नए कर्ज पर प्रोसेसिंग शुल्क और तय अवधि से पहले कर्ज के पुनर्भुगतान के लिए जुर्माना भी देना होगा।
हालांकि निजी बैंक अधिक ब्याज दर वसूल रहे हैं, लेकिन सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक अपनी सेवाओं को अब तक निजी संस्थानों के मुकाबले में बेहतर नहीं बना पाएं हैं।
अगर आपको परिसंपत्ति की 75 से 80 प्रतिशत तक कीमत के लिए कर्ज चाहिए तो आप सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में कोशिश कर सकते हैं।
आखिर यह तो लेनदार को ही तय करना है कि उसे आसानी और लागत में किसे चुनना है।