कई देशों की अर्थव्यवस्था की विकास दरों में पिछले एक साल से मंदी देखने को मिल रही है।
एक तरफ जहां अमेरिका, यूरोप और जापान मंदी की चपेट में हैं, वहीं चीन की सकल घरेलू उत्पाद की विकास दर घट कर 9 प्रतिशत रह गई है और इसके और घटने के आसार हैं। भारत भी कोई अपवाद नहीं है। औद्योगिक उत्पादन के नवीनतम आंकड़े इसी ओर इशारा करते हैं।
15 साल में पहली बार औद्योगिक उत्पादन का आंकड़ा इतना कम देखने को मिला है। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि दुनिया भर के नियामक और सरकारें आर्थिक विकास की घटती दरों को संभालने की पुरजोर कोशिश कर रही हैं।
अमेरिका ने 800 अरब डॉलर की आर्थिक राहत योजना की घोषणा की है जबकि चीन ने 586 अरब डॉलर (जीडीपी का 14 प्रतिशत) की घोषणा की है।
भारत सरकार ने भी आर्थिक विकास में आ रही मंदी से निपटने के लिए कई उपायों की घोषणा की है। नियोजित खर्च में 20,000 करोड़ रुपये के इजाफे की घोषणा इसी दिशा में उठाया गया एक कदम है। हालांकि, यह जीडीपी का मात्र 0.4 प्रतिशत है, इसलिए ज्यादा सार्थक नहीं है।
मूडीज इकानॉमी डॉट कॉम के एक अर्थशास्त्री शर्मन चन कहते हैं, ‘अनिश्चित आर्थिक वातावरण में भारत सरकार द्वारा किए गए उपाय कमजोर हैं और अर्थव्यवस्था पर इनका कोई महत्वपूर्ण प्रभाव नहीं पड़ेगा।’
शर्मन चन कहते हैं, ‘आने वाले समय में मंदी का जोखिम बढ़ने की संभावना है और कुछ महत्वपूर्ण संकेतक जैसे कॉर्पोरेट आय, औद्योगिक उत्पादन, निर्यात में बढ़ोतरी और जीडीपी के आंकड़े कुछ समय पहले की तुलना में और बुरे हो सकते हैं।’
हालांकि, कई विशेषज्ञों का मानना है कि भारत सरकार द्वारा उठाए गए कदम, जो कि पर्याप्त नहीं हैं, से भरोसा वापस लाने में निश्चित तौर पर मदद मिलेगी और ये सही दिशा में उठाए गए हैं।
स्टैंडर्ड ऐंड पुअर एशिया-प्रशांत के प्रमुख अर्थशास्त्री सुबीर गोकर्ण कहते हैं, ‘इन उपायों से पहले जैसी स्थिति नहीं लौटेगी लेकिन इनसे अर्थव्यवस्था को बल मिलेगा और मंदी से निपटने में मदद मिलेगी। इनका प्रभाव एक रात में नहीं देखा जा सकता है। अर्थव्यवस्था पर इनका वास्तविक प्रभाव दिखाई पड़ने में अभी छह से नौ महीने लगेंगे।’
क्रेडिट एनालिसिस ऐंड रिसर्च के उप प्रबंध निदेशक डी आर डोगरा कहते हैं, ‘मेरा मानना है कि सरकार ने तीन बड़े कदम उठाए हैं। ईंधन की कीमतों में कटौती के साथ-साथ मौद्रिक तथा वित्तीय उपायों से सुनिश्चित होगा कि सिस्टम और उपभोक्ताओं के हाथ में ज्यादा पैसे होंगे।
इसके अतिरिक्त निर्यातकों दी गई छूट और सभी के लिए की गई केंद्रीय उत्पाद कर (सेनवैट) में कटौती से कंपनियों को मांग बढ़ाने में मदद मिलेगी। कुल मिलाकर ये भरोसा बढ़ाने वाले उपाय हैं।’
भारत सरकार द्वारा किए गए उपाय ज्यादा आकर्षक तो नहीं हैं लेकिन इनसे सहारा जरूर मिलेगा। स्मार्ट इन्वेस्टर ने इन उपायों और हालिया घटनाओं के विभिन्न सेक्टर पर पड़ने वाले प्रभावों की पड़ताल की है।
ऑटो
कंपनियों द्वारा व्हीकल की कीमतों में कमी
सेनवैट में 4 प्रतिशत की कटौती, धातुओं की कीमत में कमी
डीजल की कीमतों में 2 रुपये और पेट्रोल में 5 रुपये प्रति लीटर की कटौती
ब्याज दरों का कम होना और नकदी की स्थिति में सुधार
कुल मिलाकर ये सकारात्मक हैं लेकिन इन उपायों से मांग में तेजी आने की संभावना नहीं है। ऑटोमोबाइल की मांग कड़े वित्तीय नियमों, चुनिंदा फंडिंग और ब्याज दरें बढ़ने की वजह से प्रभावित हुई हैं।
विश्लेषकों का विश्वास है कि बैंक अभी भी ऋण देने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं और ऐसी परिस्थिति कम से कम एक तिमाही तक बने रहने की संभावना है।
फंडिंग और सुस्त मांग का मतलब होगा कि चालू वित्त वर्ष की अंतिम तिमाही में बिक्री में या तो मामूली बढाेतरी होगी या यह पहले जैसी रहेगी।
वाणिज्यिक वाहन के क्षेत्र में उत्पाद करों में की गई 4 फीसदी की कटौती के कारण कीमतों में 30,000 रुपये से अधिक की कमी होगी, लागत मूल्यों में कमी और वाणिज्यिक वाहनों का इस्तेमाल करने वाले क्षेत्र (स्टील और सीमेंट) को मिले आर्थिक राहत पैकेज से माल ढुलाई के कारोबार में बढ़ोतरी हो सकती है।
लेकिन इन कारणों से ट्रकों की संख्या में बढ़ोतरी की संभावना नहीं है क्योंकि 90 प्रतिशत बिक्री ऋण के आधार पर होती है। इसी तरह, ईधन की कीमतों में कटौती और मासिक किस्त कम होने से परिचालन लागत में कमी होगी और ये सकारात्मक भी हैं लेकिन इनसे मांग में तेजी लाने में बहुत कम मदद मिलेगी।
पिछले साल के मुकाबले इस नवंबर में वाणिज्यिक वाहनों की बिक्री में आई 44 प्रतिशत की कमी को संकेत मानें तो वित्त वर्ष की शेष अवधि में कोई अच्छी खबर आने की संभावना काफी कम है। सवारी वाहनों की श्रेणी में उन कंपनियों की बिक्री बढ़ी है जिन्होंने नये मॉडल लॉन्च किए हैं।
लेकिन इससे कारोबार के विकास की मंदी नहीं रुकी है। मई महीने में पिछले साल के मुकाबले कारोबार में जहां 24 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखी गई, वहीं नवंबर में ये 3 प्रतिशत गिर गया।
उत्पाद कर घटने से उपभोक्ताओं के लिए कार सस्ती हो गई हैं (कम से कम 8,000 रुपये) लेकिन बिक्री में सुस्ती बने रहने की संभावना है क्योंकि वे खरीदारी को टालते हुए नई मॉडल लॉन्च होने का इंतजार कर रहे हैं।
दोपहिया श्रेणी में शीर्षस्थ दो बाइक निर्माता हीरो होंडा और बजाज ऑटो ग्रामीण और अर्ध्द-शहरी क्षेत्रों में सस्ती बाइक की बिक्री बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं।
कीमतों में 1,000 रुपये से कमी की शुरुआत हुई है। संभावना है कि इससे सस्ती बाइकों की बिक्री बढ़ाने में मदद मिलेगी क्योंकि इनकी अधिकांश खरीदारी नकदी की जाती है।
पिछले चार वर्षों में ऑटो क्षेत्र में अच्छा विकास देखने को मिला है लेकिन वित्त वर्ष 2010 में यह 10 प्रतिशत रहने का अनुमान है। विश्लेषक मारुति और हीरो होंडा को तरजीह देते हैं।
बैंकिंग
रेपो रेट, सीआरआर तथा एसएलआर में कटौती
सिडबी को 7,000 करोड़ रुपये, एनएचबी को 4,000 करोड़ रुपये तथा आईआईएफसीएल को 10,000 करोड़ रुपये का रकम
हाउसिंग फाइनैंस कंपनियों को 20 लाख रुपये तक का ऋण तरजीही क्षेत्र के ऋण के रुप में वर्गीकृत
अर्थव्यवस्था की धीमी रफ्तार को बढाने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक ने कई उपाय किए हैं जिनमें विभिन्न दरों में की गई कटौती भी शामिल है।
अक्टूबर में बैंकिंग क्षेत्र को नकदी की भारी कमी से जूझना पड़ा और बाद में सीआरआर (3.5 प्रतिशत) और एसएलआर (एक प्रतिशत) में की गई कटौती से सिस्टम में लगभग 1.4 लाख करोड़ रुपये और 40,000 करोड़ रुपये आए जिनसे राहत मिली।
इन उपायों के साथ-साथ रेपो रेट में की गई कटौती से बैंकों और एनबीएफसी की नकदी में इजाफा होगा साथ ही रकम की लागत को कम करने में मदद मिलेगी।
ब्याज दरों में कटौती के बारे में एचडीएफसी बैंक के प्रमुख अर्थशास्त्री अभीक बरुआ कहते हैं, ‘निकट अवधि में हम बैंक की जमा दरों और प्रधान उधारी दरों में 50 से 75 आधार अंकों की कटौती देखते हैं।’
खास सेक्टरों जैसे वाणिज्यिक रियल एस्टेट के लिए आरबीआई द्वारा की गई घोषणा का मतलब है कि बैंकों को अब इस क्षेत्र में गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों के लिए प्रावधान करने का दायरा बढ़ा है।
लेकिन इसका यह भी मतलब है कि समस्या वाली कुछ परिसंपत्तियों पर हुए घाटे की जानकारी देने में विलंब होगा जिससे अल्पावधि के लाभ पर प्रभाव पड़ेगा।
दूसरी तरफ, हाउसिंग लोन के मामले में, हाउसिंग फाइनैंस कंपनियों के 20 लाख तक के ऋण को तरजीही क्षेत्र के ऋण के रूप में वर्गीकृत किया गया है। बैंको की मोटी जमाओं तक आसान पहुंच के कारण एचडीएफसी और एलआईसी हाउसिंग जैसे शेयरों को लाभ होगा।
विकास चक्र सुस्त पड़ने की चिंता से आरबीआई ने रेपो और सीआरआर में कटौती की और इससे बैंको की रकम जुटाने की लागत कम होगी।
रिवर्स रेपो रेट को घटा कर 5 प्रतिशत किए जाने से बैंक अपनी अतिरिक्त नकदी आरबीआई के पास रखने से हिचकिचाएंगे। विश्लेषक कहते हैं कि एसबीआई, पीएनबी, एचडीएफसी बैंक और ऐक्सिस बैंक बैंकिंग क्षेत्र में आकर्षक हैं।
सीमेंट
सेनवैट में चार फीसदी की कटौती
बुनियादी ढांचों और हाउसिंग की मांग बढ़ाने की दिशा में किए गए उपाय
कंपनियों द्वारा सीमेंट की कीमतों में कटौती
ऐसा अनुमान था कि उत्पाद शुल्क कम होने से सीमेंट की कीमतों में प्रति बोरी (50 किलोग्राम) 8 से 10 रुपये की कमी होगी। लेकिन हाल में सीमेंट, कोयले और कोक के रेलवे भाड़े में हुई 8 प्रतिशत की बढ़ोतरी (अनुमानित प्रभाव 1.50 रुपये से 2 रुपये प्रति बोरी) से उत्पाद कर के कम होने का प्रभाव आंशिक रुप से कम हो गया है।
इसलिए सीमेंट निर्माताओं ने सीमेंट की कीमतों में, स्थान के आधार पर 4 से 6 रुपये प्रति बोरी की कटौती करने का निर्णय लिया है। एंजेल ब्रोकिंग के शोध प्रमुख हितेश अग्रवाल कहते हैं, ‘उत्पाद करों में कटौती से लाभ पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा क्योंकि लाभ का एक हिस्सा ग्राहकों को दिया जा रहा है।
समस्या कीमतों को लेकर नहीं बल्कि ज्यादा आपूर्ति को लेकर है जो कि वित्त वर्ष 2009 में लगभग 3 करोड़ टन और वित्त वर्ष 2010 में 3.5 से 4 करोड़ टन होगी।’ सरकार कम मूल्य वाले घरों को प्रोत्साहित करने में जुटी है। इससे सीमेंट (परियोजना की कुल लागत में इसकी हिस्सेदारी 20 प्रतिशत) की मांग बढ़ेगी।
उधारी लागत और कोयले की कीमतें घटने से सीमेंट निर्माताओं का मार्जिन दबाव घटने का अनुमान है। उद्योग को आशा है कि आने वाले पैकेज में सीमेंट के उत्पाद कर में कटौती की मांग स्वीकार कर ली जाएगी।
इससे सीमेंट की कीमतें 18 से 20 रुपये प्रति बोरी घट सकती हैं। ग्रासिम, अल्ट्राटेक और श्री सीमेंट दो से तीन वर्षों की समयावधि के लिए विश्लेषकों की पसंद हैं।
रियल एस्टेट
20 लाख रुपये तक के ऋण को प्राथमिक क्षेत्र का दर्जा
बढ़ती नकदी और गिरती ब्याज दरें
एनएचबी के जरिये 4,000 करोड़ रुपये की सहायता
पुनर्गठित ऋण मानक परिसंपत्तियों के रूप में वर्गीकृत
नकदी में सुधार और ब्याज दरों में गिरावट इस क्षेत्र के लिए अच्छी खबर है। आरबीआई के कदम के तहत बैंकों को प्रत्येक परिवार को 20 लाख रुपये तक के ऋण को प्रायोरिटी सेक्टर लेंडिंग यानी उधारी के लिए प्राथमिकता वाले क्षेत्र के तौर पर वर्गीकृत किए जाने की अनुमति दी गई है।
इस कदम से ब्याज दरों में और गिरावट आ सकती है और इस तरह सस्ते आवासों की मांग में सुधार हो सकता है। इसके अलावा नेशनल हाउसिंग बैंक (एनएचबी) 4,000 करोड़ रुपये की नकदी सहायता मुहैया कराएगा।
इन सब उपायों से तरलता में सुधार आएगा और यह डीएलएफ, पूर्वांकरा और ओमेक्स जैसी कंपनियों के लिए फायदेमंद साबित होगा जो दूसरे दर्जे के शहरों पर ध्यान केंद्रित करती हैं और सस्ती आवासीय परियोजनाओं में भी निवेश करती हैं।
आरबीआई की कोशिश के तहत बैंकों को जून 2009 तक पुनर्गठित वाणिज्यिक रियल एस्टेट ऋण का मानक परिसंपत्तियों के रूप में वर्गीकरण किए जाने की अनुमति दी गई है। इसे एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
शेयरखान के विश्लेषक दीपक पुरस्वामी कहते हैं, ‘इससे बड़े डेवलपरों को एक नया जीवन मिलेगा। एनपीए के तहत कुछ संकटग्रस्त परिसंपत्तियों को अब विस्तारित अवधि के लिए मानक परिसंपत्तियों के तौर पर माना जाएगा। कंपनियों को अपने नकदी प्रवाह के प्रबंधन के लिए अब ज्यादा वक्त मिलेगा।’
विश्लेषकों के मुताबिक इससे यूनिटेक और शोभा डेवलपर्स जैसी कंपनियों को मदद मिलेगी जो काफी लाभ में रही हैं। पूरा क्षेत्र मांग में कमी आने और जमीन की कीमतें घटने के कारण बुरे वक्त से गुजर रहा है। हालांकि इस फैसले से बहुत ज्यादा असर तो नहीं पड़ा है, लेकिन इससे ब्याज दरों का रुख काफी अनुकूल हो गया है।
विश्लेषक उम्मीद जता रहे हैं कि आवास ऋण दरों में गिरावट आ सकती है, क्योंकि कुछ बैंकों ने 13-13.5 फीसदी की तुलना में 9.75-12 फीसदी की ब्याज दर को उध्दृत करना पहले ही शुरू कर दिया है।
उधर केंद्रीय उत्पाद शुल्क (सेनवैट) में कटौती और इस्पात एवं सीमेंट की कीमतों में गिरावट से भी तेजी से बढ़ रही निर्माण लागत पर दबाव कम होगा।
रियल एस्टेट के लिए इससे अतिरिक्त मांग पैदा होगी और इसका फायदा उपभोक्ताओं तक भी पहुंचने की संभावना है। कुल मिला कर ये कदम काफी हद तक सकारात्मक हैं, लेकिन धन, खरीदने की क्षमता में कमी, रियल एस्टेट की ज्यादा कीमतें और अर्थव्यवस्था में छाई मंदी जैसी चिंताएं अभी भी बरकरार हैं।
जब तक रियल एस्टेट कीमतों और ब्याज दरों में और गिरावट नहीं आती है, तब तक खरीदारों को इसका लाभ मिलना संभव नहीं होगा।
टेक्सटाइल
350 करोड़ रुपये का निर्यात राहत, टीयूएफएस बकाया के लिए 1400 करोड़ रुपये
कमीशन सेवाओं पर सेवा कर की वापसी
ईसीजीसी के लिए सरकारी बैकअप गारंटी
ईसीजीसी के तहत ऋण के लिए लॉक इन पीरियड में कटौती
प्रौद्योगिकी उन्नयन निधि योजना (टीयूएफएस) में पूरे बकाया के समाशोधन से कंपनियों का नकदी प्रवाह बढ़ेगा। आलोक इंडस्ट्रीज को इस कदम से बड़ा लाभ हासिल होने की संभावना है, क्योंकि टीयूएफएस के तहत उसके पास लिए जाने योग्य राशि 123.8 करोड़ रुपये है।
सेनवैट में 4 फीसदी की कटौती कीमतों में कटौती को सक्षम बनाएगी। इसके अलावा संकटग्रस्त बाजारों और उत्पादों के निर्यात के लिए गारंटी के तौर पर 350 करोड़ रुपये की बैकअप गारंटी भी एक्सपोर्ट क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन (ईसीजीसी) को मुहैया कराई जाएगी।
टेक्सटाइल उद्योग के लिए लाया गया प्रोत्साहन पैकेज एक राहत के तौर पर सामने आया है। हालांकि इस उद्योग का मानना है कि यह पैकेज वैश्विक मंदी की स्थिति से मुकाबला करने के लिए पर्याप्त नहीं है।
भारतीय वस्त्र उद्योग संघ के चेयरमैन आर. के. डालमिया कहते हैं कि यह असल में आर्थिक प्रोत्साहन का अस्तित्व बचाए रखने के लिए पेश किया गया पैकेज है न कि विकास से जुड़ा पैकेज।
टीयूएफएस भुगतान वह भुगतान है जिसे सितंबर, 2007 से रोक दिया गया है। अब इसकी अदायगी की जा सकेगी। इसी तरह पैकिंग क्रेडिट पर 2 फीसदी का ब्याज अनुदान सितंबर, 2008 तक इस उद्योग में लागू ब्याज का आधा है।
यह उद्योग डयूटी ड्राबैक में इजाफा किए जाने की उम्मीद भी कर रहा है जिसे विभिन्न टेक्सटाइल उत्पादों पर 20-25 फीसदी तक घटाया जा चुका है और अब यह इस उद्योग के विकास के लिए नुकसानदायक साबित हो रहा है।
कॉटन टेक्स्टाइल्स एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल के चेयरमैन वी. एस. वेलायुथम कहते हैं, ‘जब तक डयूटी ड्राबैक और ब्याज अनुदान दरों में इजाफा नहीं किया जाता है, तब तक उद्योग को चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश से प्रतिस्पर्धा के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ेगा।
अंतरराष्ट्रीय कपास कीमतों में गिरावट के बावजूद कपास का न्यूनतम समर्थन मूल्य काफी ऊंचा बना हुआ है जिससे मार्जिन पर दबाव पड़ रहा है।’
तेल एवं गैस
डीजल की कीमत में दो रुपये प्रति लीटर और पेट्रोल में पांच रुपये प्रति लीटर की कटौती
ब्याज दरों का कम होना
कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतें घटने से सरकार ने डीजल की कीमतों में दो रुपये प्रति लीटर और पेट्रोल में पांच रुपये प्रति लीटर की कटौती की है। यद्यपि, ईंधन की कीमतों में कटौती अर्थव्यवस्था के कई हिस्सों के लिए सकारात्मक हैं ।
लेकिन सरकारी तेल विपणन कंपनियों जैसे आईओसी, बीपीसीएल और एचपीसीएल दवाब में आ जाएंगी क्योंकि इससे उनकी डर-रिकॉवरी में लगभग 6,000 करोड रुपये का इजाफा होगा।
कुल रिफाइनिंग मार्जिन कम हो रहे हैं, यह भी नकारात्मक ही है। दूसरी तरफ, इन कंपनियों के लिए नकदी की स्थिति में सुधार और ब्याज चक्र कम होने से ब्याज लागत का कम होना सुनिश्चित हो जाएगा।
तेल विपणन कंपनियां अब अधिक कीमत पर अपने तेल बॉन्ड बेच पाएंगी (ब्याज दरें कम होने के कारण), इससे उन्हें अपने निवेश पर लाभ कमाने में मदद मिलेगी। जहां तक ओएनजीसी जैसी कंपनी की बात है तो सब्सिडी बांटने और प्राप्तियां कम होने के मामले बढ़ गए हैं। विश्लेषक इसके शेयरों में निवेश को लेकर उत्साहित नहीं हैं।
बुनियादी ढांचा
20,000 करोड रुपये का बजटीय सहारा
कमोडिटी की कीमतों का कम होना, सेन वैट में 4 प्रतिशत की कटौती
सीआरआर और पीएलआर में कटौती से नकदी में बढ़ोतरी
बुनियादी ढांचे पर किए जाने वाले खर्च से सीधे तौर पर आर्थिक मंदी को संतुलित करने में मदद मिलेगी।
बुनियादी ढांचे पर सरकार द्वारा खर्च बढ़ाने से वस्तुओं और सेवाओं की मांग बढ़ेगी। ऋण के मामले में कड़ाई और क्रियान्वयन में बाधाओं के चलते कई परियोजनाएं विलंबित हुई हैं जैसे बीओटी रोड परियोजना।
ट्रैफिक या भविष्य में नकदी का प्रवाह अंदरुनी रिटर्न की दर के अनुसार होना जरूरी है। लेकिन अधिक ब्याज दर और लागत मूल्यों का प्रभाव परियोजनाओं की व्यवहार्यता पर पड़ा है।
कई मामलों में, बोली लगाने या अपनी बोली वापस ले चुके हैं या स्वीकृति की शर्तों पर फिर से बातचीत करना चाहते हैं।
इस परिप्रेक्ष्य में सरकार द्वारा बुनियादी ढांचे पर वित्त वर्ष 2009 में अतिरिक्त नियोजित खर्च के तौर पर 20,000 करोड़ रुपये की राशि उपलब्ध कराया जाना सकारात्मक है। सार्वजनिक -निजी साझेदारी (पीपीपी) वाली परियोजनाओं के तहत आने वाली परियोजनाओं के त्वरित कार्यान्वयन से भी मदद मिलेगी।
ऐसी परियोजनाओं की फाइनैंसिंग को आसान बनाने के लिए सरकार ने आईआईएफसीएल को 10,000 करोड़ रुपये जुटाने की अनुमति दी है ताकि बंदरगाहों और राजमार्गों जैसी दीर्घावधि परियोजनाओं के बैंकों के ऋण की री-फाइनैंसिंग की जा सके।
आईवीआरसीएल इन्फ्रास्ट्रक्चर्स के सीएमडी ई सुधीर रेड्डी कहते हैं, ‘कम से कम अब परियोजनाओं की वित्तीय लेखा बंदी पर ध्यान बढ़ा है और आईआईएफसीएल के माध्यम से कोष की उपलब्धता का प्रभाव भी मध्य से दीर्घावधि के लिए सकारात्मक होगा।’