सत्यम कंप्यूटर सर्विसेज की धोखाधड़ी को कारोबारी जगत के आतंकवाद की संज्ञा दी जा सकती है।
मुंबई में 26 नवंबर को जो आतंकवादी हमला हुआ था, उसकी तुलना सत्यम के घोटाले से की जा सकती है क्योंकि दोनों ने ही भय और दहशत का माहौल खड़ा कर दिया था।
कंपनी के पूर्व अध्यक्ष बी रामलिंग राजू ने इस्तीफे के समय जो कबूलनामा जारी किया था, अगर उसे सही मानें तो इस आईटी कंपनी के पास दैनिक परिचालन के लिए पर्याप्त नकदी नहीं बची थी। साथ ही कंपनी का कारोबार मुनाफा कमाने लायक नहीं बचा था।
सत्यम और उसके अधिकारी इस फर्जीवाड़े के बाद अब कानून के गिरफ्त में आ चुके हैं और इससे बहुत बड़ा नुकसान हो सकता है। इसे देखते हुए किसी भी दूसरी कंपनी के लिए सत्यम का अधिग्रहण करना मुनाफे का सौदा नजर नहीं आ रहा है और न ही कोई कंपनी ऐसा जोखिम उठाने का साहस दिखाएगी।
तो क्या मौजूदा शेयरधारकों को इस समय कंपनी के शेयरों से पीछा छुड़ाना चाहिए? या फिर सरकार के इस मामले में कदम रखने के बाद कंपनी के शेयरों में वापसी की गुंजाइश बची है? आइये जानते हैं कि इस बारे में विश्लेषकों और उद्योग जगत के विशेषज्ञों का क्या कहना है?
कई सारी समस्याएं
राजू ने कंपनी के बोर्ड और शेयर बाजार को सूचना दी उसके मुताबिक उन्होंने 5,040 करोड़ रुपये की नकदी और ऋण धारकों के 490 करोड़ रुपये के बारे में बातें छिपाई थीं।
साथ ही कंपनी की देनदारी करीब 1,230 करोड़ रुपये की थी जिसे उन्होंने छुपाए रखा।अगर इन सभी आंकड़ों के बारे में सही सही जानकारी दी जाती तो कंपनी के हर शेयर की बुक वैल्यू 18.6 रुपये के करीब होती।
इस बारे में आईआईएफएल के एक विश्लेषक का कहना है, ‘इस धोखाधड़ी के बारे में जो शुरुआती बातें सामने निकल कर आई हैं, हालात उससे कहीं अधिक गंभीर हो सकते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि फिलाहल जहां देनदारियों को कमतर आंका गया है, वहीं संपत्तियों का जिक्र बढ़ा चढ़ा कर किया गया है।’
सत्यम का वास्तविक मूल्य तो तभी पता चल सकेगा जब आगे और जांच की जाएगी और खातों को फिर से खंगाला जाएगा। कंपनी की फौरी जरूरत तो कर्मचारियों और ग्राहकों को बांधे रखना है।
अंतरिम प्रबंधन नकदी के बारे में कोई भी खुलासा करने से बच रहा है, पर विश्लेषकों का अनुमान है कि कंपनी के पास 300 करोड़ रुपये से कम नकदी ही बची होगी, जिससे कंपनी के कर्मचारियों को 15 दिन की तनख्वाह ही दी जा सकेगी।
राजू ने जो खुलासा किया है उससे कर्मचारियों को कंपनी प्रबंधन पर से भरोसा पूरी तरह से उठ गया है और कुछ ऐसा ही हाल शेयरधारकों का भी है।
प्रभुदास लीलाधर में शोध प्रमुख अपूर्व शाह का कहना है, ‘कंपनी के शीर्ष प्रबंधन में से किसी को इस फर्जीवाड़े की जानकारी नहीं थी, इस पर यकीन करना मुश्किल है।
अगर कंपनी का मुनाफा उद्योग जगत के औसत मुनाफे का 10 फीसदी हो और यूटीलाइजेशन की दर उस दर से काफी कम हो जो बताई जा रही थी, तो भी कंपनी में विभिन्न खंड के प्रमुखों को इसका अंदेशा न हो, ऐसा कैसे हो सकता है? इस घटना से कंपनी के ग्राहकों का भरोसा कंपनी से पूरी तरह से उठ सकता है।’
सबसे बड़ी बाधा
कंपनी को अब एक ऐसी आईटी दिग्गज या निजी इक्विटी कंपनी की जरूरत है जो उसके कारोबार को जारी रख सके और कंपनी के लिए बेहतर दिन लौटाए जा सकें।
एजेंल ब्रोकिंग के विश्लेषक हरित शाह कहते हैं, ‘पर खात्मे के कगार पर खड़ी इस कंपनी को कौन खरीदना चाहेगा? कंपनी पर करोड़ों रुपये की हेराफेरी का मुकदमा है।’ कंपनी और उसके प्रवर्तकों के खिलाफ अब तक करीब आधा दर्जन मुकदमा दायर किया जा चुका है।
विनाले ऐंड विनाले एलएलपी के वकील केनेथ जे विनाले ने कहा, ‘हमनें किसी एक नुकसान को लेकर मुकदमा दर्ज नहीं किया है। पर ऐसा मान सकते हैं कि यह नुकसान उस रकम के बराबर हो सकता है, जितना गलत जानकारी देने के कारण एडीआर के शेयरों के भाव ऊपर चढ़े हैं।’
जो देनदारियां बनती हैं उनका भुगतान किन्हें करना है, यह पूछे जाने पर मजूमदार ऐंड कॉरपोरेशन के साझेदार अनूप नारायणन कहते हैं, ‘देनदारी की जिम्मेदारी न केवल प्रवर्तकों की बनती है बल्कि, कंपनी के निदेशकों और अधिकारियों की भी है।’