बढ़ती महंगाई का दौर

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 07, 2022 | 5:04 PM IST

किसी दुर्घटना का शिकार होने तक किसी अर्थव्यवस्था के लिहाज से सबकुछ ठीक होता है। इस हादसे के बाद उसे वापस पटरी पर आकर विकास की राह में सरपट दौड़ लागाने की स्थिति में आने में काफी समय लगता है।


कारोबार के पहिये की मामूली जानकारी रखने वाला व्यक्ति  भी यह जानता है कि इस तरह के हादसे क्यों होते हैं। 1966 में प्रथम नेशनल सिटी बैंक, न्यूयार्क सिटी के वरिष्ठ अर्थशास्त्री जेम्स मैग्स ने अपने बिजनेस साइकल के लेख में कहा था कि समकालीन बिजनेस साइकल की चर्चा में पैसा खो जाने वाला घटक है।

 लेकिन इसके बाद भी हम लोग उस पैसे के इस चरित्र को नहीं जानते जिसे हम अर्जित करना चाहते हैं। 1900 में राजनेता रिचर्ड बॉस क्रोकर का यह कथन  बेहद लोकप्रिय है जिसमें उन्होंने कहा है, मैं हर तरह के पैसे के हक में हूं। उनका यह कथन आज की स्थिति के अधिक अनुकूल है।

अगर आप ज्यादातर लोगों की मनोदशा के बारे में बात करें तो उसे समझना बहुत मुश्किल है। इसी तरह मुद्रास्फीति भी एक कपोल कथा है जिसे  हमेशा एक अंक पर सीमित नहीं रखा जा सकता। मुद्रास्फीति गैर-आनुपातिक और तुलनात्मक दृष्टि से शॉर्प होती है। यह वह दशा है जब कारोबार में धन की मात्रा या क्रेडिट या फिर दोनों अचानक बढ़ जाती हैं।

यह स्थिति बैंकों की ओर से किए गए क्रेडिट विस्तार या फिर सरकार की ओर से होने वाला फाइनेंशियल स्टिम्युलेशन के कारण उत्पन्न वित्तीय कठिनाईयों से ही उत्पन्न होती है। लेकिन मांग की स्थिति को कमजोर करने के लिए धन की अधिक मात्रा नहीं, बल्कि मुद्रास्फीति का डर जिम्मेदार है। यह एक हर समय विकास का सिंड्रोम भी है जो तुरंत धन बना रहे क्रेडिट चक्र को इंफ्लेट कर देता है।

जाने माने करंसी विद्वान जॉर्ज टी स्टीव ने 1965 में अपने साइकल्स इन मॉनेटरी इंफ्लेशन में समझाया है कि इस तरह की सस्ती मौद्रिक नीति जो अमीर बनने की होड़ को बढ़ावा देती है, वास्तव में इसमें अच्छाई से अधिक बुराइयां ही व्याप्त हैं। क्रेडिट इनफ्लेशन से पूंजी बर्बाद होने की स्थिति पैदा हो जाती है। जब अधिक धन देने पर कम ऐसेट मिलती हैं तो ऐसेट बबल की स्थिति निर्मित होती है।

दूसरी बात यह कि वास्तविक मुद्रा गोल्ड पेपर करंसी अपनी खरीद क्षमता खोती चली जाती है। तीसरे इस  स्थिति में लगातार आ रहे मौद्रिक संकट से निपटने के स्थान पर उन्हें बचाने की रणनीति अहम हो जाती है। यह इसलिए है क्योंकि मानवीय अक्षमता का चक्र ठीक उसी तरह से स्पष्ट होता है जैसे ब्याज दर चक्र और मुद्रास्फीति चक्र एक तय पैटर्न और आवर्तकाल होता है।

पिछले 60 साल के ब्याज चक्र के अध्ययन से यह साफ हुआ है कि यह चक्र सिविलाइजेशन चक्र से काफी जुड़ा हुआ है। इससे पहले 1850 के दशक में ब्याज दरें अपने चरम पर थीं, इसके बाद यह स्थिति 1920 के दशक में और बाद में 1980 के दशक में निर्मित हुई। यह तथ्य ब्याज दर, खुदरा मूल्य और मुद्रास्फीति को कोंड्राटिफ चक्र से जोड़ते हैं। यह चक्र भी आवर्तकाल के सामन ही है।

टोनी प्लमर ने के वेव को किचन, जगलर और स्ट्रॉस होव के तिहरे चक्र कॉम्प्लेक्स से जोड़ने का प्रयास किया है। 90 साल का स्ट्रॉस व होव चक्र के वेव की तुलना में बड़ा है। इसका कारण यह है कि कोंड्राटिफ चक्र मेजर डेप्रिसिएशन से जुड़ा होता है, जिसके आने की कई भविष्यवाणी कर रहे हैं। इसके न घटने पर यह दलील दी जा सकती है कि सभी स्ट्रॉस व होव चक्र कोंड्राटिफ चक्र से संबध्द नहीं होते।

स्ट्रॉस व होव चक्र क्राइसिस डिफ्लेशन और एक्सीलरेटिंग इंफ्लेशन के बीच होता है। इसी आधार पर कहा जा रहा है कि 1946 का यह स्ट्रॉस व होव डेफ्लिशिनरी लॉ वर्तमान मुद्रास्फीति चक्र के बाद आ सकता है। इस आधार पर यह चक्र 2030 तक घटित हो जाना चाहिए।

यह काल विश्व युध्द के लिए चिह्नित किया गया है। (स्ट्रॉस और होव चक्र हर युध्द का गवाह रहा है।) बाजार के ट्रेंड के विपरीत विचार रखने वालों की तरह बिल मेरिडियन, रॉबर्ट ग्रोवर और मेनफ्रेड जिमनेल की तरह कुछ ही ऐसे विद्वान हैं जो यह कहते हैं कि 2015 के बाद मनी और फाइनैंशियल सिस्टम पूरी तरह से तबाह हो जाएगा।

यह वास्तव में डिफ्लेशन को डिप्रेशन से संबंध्द करने के स्थान पर हाइपरइनफ्लेशन का एक क्लासिक केस है। हालांकि इसकी संभावना बेहद कम है। केवल रियल मनी बेंचमार्क जो मुद्रास्फीति के सामने रोड़े अटकाता है, ही 1,000 डॉलर तक बढ़ने के बाद ठहर सकता है, लेकिन 2000 से प्रारंभ हुआ 30 साल का कमोडिटी चक्र अपना सेक्युलर ट्रेंड बरकरार है। इसके 3,000 डॉलर तक बढ़ने का लक्ष्य तय किया है।

यह 500 डॉलर की सबसे खराब स्थिति से छह गुना अधिक है। यह स्थिति वास्तव में रीयल मनी मार्केट के लिए बेहद जटिल है। अर्थ चक्र के जानकारों ने मुद्रास्फीति को अन्य अहम चक्रों, ट्रेंड और रेंडम फ्लक्चुएशन के साथ एक अहम रोल दिया है। अपनी अर्थव्यवस्था का भविष्य जानने के लिए यह जानना जरूरी है कि हम इनफ्लेशनरी या फिर डिफ्लेशनरी वातावरण में हैं। 

और किचन के इन्वेंटरी चक्र में उपस्थिति साढ़े तीन साल की सर्वव्याप्त लय को स्टॉक मार्केट कीमतों के साथ 500 इकनामिक सिरीज में से आधे में व्याप्त है। मुद्रास्फीति की चक्रीयता एक आवर्तीय स्थिति है। मुद्रास्फीति के चक्र की बराबर समझ के बगैर केंद्रीय बैंक इकनामिक चक्र की स्थिति का अनुमान बिलकुल आप ही की तरह लगा लेती है।

अंत में मुद्रास्फीति बिजनेस चक्र में होने वाला एक अन्य हादसा है जिसका सामना आने वाले कुछ सालों में करना होगा। हम इसके लिए कैसे तैयार हैं और कैसे प्रयासों की जरूरत है और इन सबसे अधिक हमारी शॉर्ट टर्म एप्रोच कैसी है।

अगर कुछ ऐसी स्थिति का 1857 में निर्मित हुई थी तो उससे इसकी संबंध्दता के लिए हम कुछ ज्यादा ही पीछे चले गए हैं। यह इकनामिक इतिहास की एक क्लासिक प्रॉब्लम है। यह समस्या मुझे क्यों घेरेगी जबकि यह बहुत पहले घटित हो चुकी है।
(लेखक ग्लोबल अल्टरनेटिव रिसर्च फर्म ऑर्फस कैपिटल के सीईओ हैं।)

First Published : August 18, 2008 | 1:47 AM IST