वित्त-बीमा

Reforms in Deposit Insurance: प्रत्यक्ष भुगतान और तेजी से दावों के निपटान पर जोर

जमा बीमा का अस्तित्व भारत में 60 साल से अधिक समय से है। यह जमाकर्ताओं की सुरक्षा और वित्तीय स्थिरता के लिए अहम है।

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अभिजित लेले   
Last Updated- June 19, 2024 | 10:44 PM IST

भारत की जमा बीमा व्यवस्था पिछले कुछ वर्षों में बढ़ी हुई कवरेज सीमा और मजबूत जमा बीमा फंड जैसे कदमों के माध्यम से विकसित हुई है। रिजर्व बैंक के अधिकारियों द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार जमाकर्ताओं को सीधे भुगतान जैसी प्रथाओं और तेजी से दावों के निपटान जैसी पहलों के माध्यम से कवरेज बढ़ाया जा सकता है और सेवाओं में सुधार सुनिश्चित किया जा सकता है।

जमा बीमा का अस्तित्व भारत में 60 साल से अधिक समय से है। यह जमाकर्ताओं की सुरक्षा और वित्तीय स्थिरता के लिए अहम है। जमा बीमा व्यवस्था विश्व के तमाम देशों में स्वीकार की गई है। इसका तेजी से विस्तार हो रहा है। भुगतान की अवधि में कमी आई है। साथ ही जोखिम पर आधारित प्रीमियम की ओर रुख हुआ है तथा बीमा कवरेज के स्तर में स्थिरता आई है।

रिजर्व बैंक के जून 2024 के लेख में कहा गया है कि मुख्य मसला यह है कि जमा बीमा व्यवस्था इस समय कवरेज सीमा में बदलाव, बैंक समाधान में भागीदारी, फिनटेक के विकास से आने वाली चुनौतियों और जलवायु परिवर्तन के मसलों से जूझ रही है।

भारत में जमा बीमा सभी बैंकों के लिए अनिवार्य है, जिसमें विदेशी बैंक भी शामिल हैं। इस समय इसमें 1,997 बैंक इसके कवरेज में शामिल हैं, जिनमें 140 वाणिज्यिक बैंक और 1,857 सहकारी बैंक हैं। अमेरिका के बाद यह बैंकों की सबसे बड़ी संख्या है, जो जमा बीमा कवरेज के दायरे में आते हैं।

इटली के शहर रोम में 14 जून 2024 को इंटरनैशनल एसोसिएशन ऑफ डिपॉजिटर्स की बैठक में रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर माइकल पात्र ने कहा था कि खातों के आधार पर भारत में कवरेज का अनुपात 97.9 प्रतिशत है। इस समय बैंक में प्रति जमाकर्ता बीमा कवरेज की सीमा 5 लाख रुपये है।

रिजर्व बैंक के लेख में कहा गया है कि रिजर्व रेशियो यानी जमा बीमा फंड और बीमित जमा का अनुपात निकट भविष्य में तेजी से बढ़ने की संभावना है।
इसमें भारतीय जमा बीमा व्यवस्था में सुधार के लिए भविष्य के एजेंडे को स्पष्ट किया गया है। इसमें कहा गया है कि जमाकर्ताओं को सीधे भुगतान जैसी प्रथाओं के माध्यम से दावों का तेजी से निपटान किया जाना चाहिए।

साधनों के उपयुक्त इस्तेमाल और ब्याज दरों की संवेदनशीलता घटाने से सक्रिय ट्रेजरी प्रबंधन किया जा सकता है, जिससे व्यवस्था को मदद मिलेगी। इसमें कहा गया है कि जमा बीमा कवरेज की समय-समय पर समीक्षा करके और वित्तीय शिक्षा के माध्यम से जमा बीमा के बारे में लोगों को जागरूक करके इसमें सुधार किया जा सकता है।

First Published : June 19, 2024 | 10:44 PM IST