बैंकों और गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों का कहना है कि अगर को-लेंडिंग पर मसौदा दिशानिर्देश लागू किया जाता है तो उन्हें सूचना तकनीक (आईटी) व्यवस्था में बदलाव करने की जरूरत होगी। भारतीय रिजर्व बैंक ने अप्रैल में मसौदा दिशानिर्देश जारी किया था। नियामक ने को-लेंडिंग का दायरा बढ़ाकर विनियमन के दायरे में आने वाली सभी इकाइयों तक करने के लिए और गैर प्राथमिकता क्षेत्रों में भी इसकी संभावना बढ़ा दी है।
इस कदम का उद्देश्य विनियामक स्पष्टता को बढ़ाना, नकदी के प्रवाह में सुधार करना, तथा उधारकर्ताओं के बारे में वास्तविक समय पर जानकारी सुनिश्चित करना है, क्योंकि को-लेंडिंग पद्धतियां पारंपरिक मॉडलों से आगे बढ़ रही हैं। इस मॉडल में उन क्षेत्रों तक ऋण की पहुंच बनाने का लक्ष्य रखा गया है, जहां अभी इसकी पहुंच नहीं है।
एक एनबीएफसी के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘दिशानिर्देशों के मुताबिक ऋण का उद्गम और वितरण एक ही वक्त होना चाहिए। इसलिए एनबीएफसी के रूप में हमें अपने सिस्टम अद्यतन करने होंगे, जिससे रियल टाइम इन्फॉर्मेशन मिल सके।’
बैंकरों और एनबीएफसी अधिकारियों के अनुसार, मसौदा दिशानिर्देशों के साथ एक चिंता यह है कि यह को-लेंडिंग मॉडल-2 (सीएलएम-2) पर मौन है, जिसका अर्थ है कि बैंकों और एनबीएफसी को को-लेंडिंग में बदलाव करना होगा।
एक सरकारी बैंक के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘आमतौर पर बैंक और एनबीएफसी सीएलएम-2 पर काम करते हैं। दिशानिर्देशों में सीएलएम-1 पर ज्यादा ध्यान दिया गया है। इससे बैंकों और एनबीएफसी को बड़े तकनीकी बदलाव करने पड़ेंगे। इसलिए नए दिशानिर्देशों में इनके बारे में स्पष्टीकरण होना चाहिए।’