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जीवनसाथी को बनाएं साझेदार

Last Updated- December 05, 2022 | 9:22 PM IST

अधिकत्तर लोग सेवानिवृत्ति के बाद के समय को परिवार और प्रियजनों के साथ बिताने की नजर से देखते हैं।


अधिकांश युगल, खासतौर पर अगर दोनों नौकरी-पेशे से जुड़े हों तो उन्हें अपनी नौकरियों के दौरान एक-दूसरे के साथ वक्त बिताने का कम ही मौका मिलता है। और अगर दोनों नौकरी न भी करें, तब भी अपने अलग-अलग कामों में व्यस्तता के चलते वे एक-दूसरे के साथ समय नहीं बिता पाते।


ज्यादातर लोग इस कमी को पूरा करने के लिए सेवानिवृत्ति के बाद की अवधि को ले कर काफी उत्साहित होते हैं। ऐसे में अगर दोनों में से किसी एक भी इस दौरान मृत्यु हो जाए तो यह दूसरे के लिए भावनात्मक और कभी-कभी वित्तीय रूप से कमजोरी का कारण बन सकता है। इसीलिए, यह जरूरी है कि वित्तीय और कानूनी मामलों को पहले से ही हल कर लिया जाए।


भविष्य में जिंदगी की गाड़ी को पटरी पर सही तरीके से चलाने के लिए जरूरी है कि आप अपने जीते-जी अपने पति या पत्नी को जरूरी कागजातों की जानकारी दें। इस बारे में यहां कुछ मुख्य बिन्दु बताए जा रहे हैं, जिनका आपको जरूर ध्यान रखना चाहिए :


अपने जीवनसंगी को अपने निजी वित्तीय पहलुओं की बुनियादी जानकारी दें। सेवानिवृत्ति में आपको जितना समय चाहिए वह आपके पास है। उससे फॉर्म और चेक भरवाने जैसे
काम करवाएं, ताकि वह निवेश की विभिन्न प्रक्रियाओं से रू-ब-रू हो सके। अपनी सभी निवेशित योजनाओं की विस्तृत जानकारी भी उन्हें बताएं।


जिन पेशेवर लोगों से आप अपनी वित्तीय योजनाओं के लिए जुड़े हुए हैं, उनसे अपनी पत्नी या पति का परिचय भी करवाएं, जैसे कि एकाउंटेंट या ऑडिटर ब्रोकर, वित्तीय सलाहकार या योजनाकार और वकील।


आपने जिन भी परिसंपत्तियों को संयुक्त रूप से खरीदा हो, उनकी एक सूची बनाएं। अपने संगी को बताने की बजाए आप इसे एक सही तरीके से एक कागज पर लिख कर उन्हें दें। साथ ही इस सूची की कुछ प्रतियां और भी बना लें। आप जब भी कोई नया निवेश करें या फिर इन परिसंपत्तियों में से किसी को बेचें तो इस सूची में जरूरत के हिसाब से परिवर्तन जरूर लाएं।


जितना हो सके उतना संयुक्त निवेश करें, क्योंकि भगवान न करे अगर दोनों में से कोई भी आगे चलकर जीवित नहीं रहता तो दूसरा व्यक्ति खुद-ब-खुद इस निवेश का स्वामी बन जाएगा।


यह दूसरे को नामित व्यक्ति बनाने से कहीं बेहतर है, क्योंकि दूसरे हालातों में जीवित व्यक्ति को परिसंपत्ति पर दावा करने के लिए कई कागजी कार्रवाइयों से गुजरना पड़ेगा। नामन सिर्फ तभी सही रहता है, जब आप विरासत में मिली जमीन-जायदाद को अपने और अपने पति या अपनी पत्नी की मृत्यु के बाद किसी को उस परिसंपत्ति का स्वामित्व सौंपना चाहते हैं।


ध्यान रखें कि आपने मुख्तारनामे (पावर ऑफ अटर्नी) को सही तरीके से सही जगह रखा हो। वृध्दावस्था या बीमारी के चलते अक्सर किसी कानूनी कागजात पर दस्तख्त करने की क्षमता कम हो जाती है या फिर आपके दस्तख्त में बदलाव भी आ सकता है। ऐसी स्थिति में आपके निवेश तक पहुंच बनाने और अन्य कानूनी कागजों की कार्रवाई में परेशानियां झेलनी पड़ सकती हैं।


अगर आप किसी विश्वास पात्र, जो आपके अस्वस्थ या असमर्थ होने की स्थिति में आपकी तरफ से आपका पक्ष रख सके, को अपना मुख्तारनामा सौंप सकें तो इससे बेहतर और कुछ नहीं होगा। बेहतर होगा कि आप अपने पति या पत्नी के साथ पारस्परिक मुख्तारनामें पर हस्ताक्षर करें, ताकि दोनों एक-दूसरे की तरफ से पक्ष रख सकें।


बेशक आप मुख्तारनामा बना चुके हों, लेकिन फिर भी आपको अपनी वसीयत जरूर बनानी चाहिए। मुख्तारनामा वसीयत की जगह कभी नहीं ले सकता, क्योंकि आपके देहांत के बाद यह खुद-ब-खुद समाप्त हो जाएगा। साथ ही, एक वसीयत से यह स्पष्ट होता है कि जो परिसंपत्ति आपने अपने पति या पत्नी के लिए तय की है उसका कोई अन्य कानूनी दावेदार नहीं है।


आप दोनों को उपयुक्त मेडिकल कवर लेना चाहिए और उसका समय-समय पर नवीनीकरण भी करवाएं।


अगर आपको कोई पेंशन मिलती हैं तो अपने पति या पत्नी को उसकी भी जानकारी दें कि कैसे वे आपके मरणोपरांत उस पेंशन को अपने नाम पर ट्रांसफर करवा सकते या सकती हैं।


अंत में, अपने निवेश की योजना कुछ इस तरह बनाएं कि जिंदगीभर तक आपके संगी को उससे एक निश्चित आय प्राप्त हो सके।
बेशक, जीवन की लंबाई आपके हाथ में नहीं है, लेकिन आपके बाद आपका जीवनसाथी बेहतर जिंदगी जी सके, ये जरूर आपके हाथ में है।


अपने साथी को इस बारे में बताएं


सभी पेशेवर लोगों के बारे में जो आपके वित्त से जुड़े हुए हैं
संयुक्त निवेश जो आपने अभी तक बनाए हैं
उस व्यक्ति के बारे में जिसके पास मुख्तारनामा है
परिसंपत्तियां जिन पर आपका संयुक्त या एकाधिकार है

First Published - April 14, 2008 | 12:37 AM IST

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