सरकारी कंपनी भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) ने घरेलू और विदेशी दोनों ऋणदाताओं सहित 10 प्रमुख बैंकों के साथ समझौता करके फॉरवर्ड रेट एग्रीमेंट्स (एफआरए) बाजार में प्रवेश किया है। बाजार सहभागियों ने कहा कि एलआईसी के बॉन्ड एफआरए सेग्मेंट में प्रवेश से लॉन्ग टर्म सरकारी सिक्योरिटीज की मांग में तेजी आने की संभावना है, लेकिन इससे वायदा स्प्रेड कम हो जाएगा, जिससे अन्य बाजार भागीदारों कके मुनाफे पर असर होगा।
एलआईसी प्रबंधन ने पिछले सप्ताह नतीजों की घोषणा के बाद कहा, ‘वित्त वर्ष 2026 की पहली तिमाही में हमने एफआरए में अपनी भागीदारी बढ़ाई है। भारतीय बैंकों सहित 10 से ज्यादा बैंकों के साथ हमने इस क्षेत्र में कदम रखा है। फिलहाल हम एफआरए के साथ बने रहेंगे।’
बीमाकर्ता ने कहा कि वह जल्द ही बॉन्ड फॉरवर्ड शुरू करेगी। प्रबंधन ने कहा, ‘बॉन्ड फॉरवर्ड एक सतत प्रक्रिया है। जैसे ही सीसीआईएल प्लेटफॉर्म स्थापित हो जाएगा, हम इसमें प्रवेश करेंगे। हम जल्द ही बॉन्ड फॉरवर्ड की ओर बढ़ेंगे।’
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बॉन्ड एफआरए से बीमा कंपनियां सरकारी बॉन्डों पर भविष्य की ब्याज दरों को नियत कर पाती हैं। इससे उन्हें ब्याज दरों में गिरावट के जोखिम से बचाव में मदद मिलती है। ब्याज घटने से उनकी दीर्घकालिक देनदारियों, विशेष रूप से गैर-भागीदारी बीमा पॉलिसियों पर असर पड़ सकता है।
मुनाफे में सुधार के लिए एलआईसी अपने नॉन-पॉर प्रोडक्ट्स में हिस्सेदारी बढ़ा रही है। ब्याज दर में उतार-चढ़ाव को देखते हुए अब इस पोर्टफोलियो की जरूरत बढ़ रही है, जिससे पॉलिसीधारकों का रिटर्न स्थिर रखा जा सके। निजी क्षेत्र की बीमा कंपनियां अपने नॉन-पार पोर्टफोलियो की हेजिंग के लिए बॉन्ड एफआरए बाजार में सक्रिय रही है, जबकि इसके पहले एलआईसी ने इससे दूरी बना रखी थी।
बाजार साझेदारों ने कहा, ‘वे (एलआईसी) नवंबर 2024 से ही कुछ प्रायोगिक समझौते कर रहे हैं, लेकिन औपचारिक रूप से इसके पहले की तिमाही (वित्त वर्ष 2026 की अप्रैल-जून तिमाही) में बाजार में कदम रखा।’ एक व्यक्ति ने कहा, ‘उसके बाद से दीर्घावधि मैच्योरिटी (30 साल और इससे ऊपर) वाली प्रतिभूतियों की मांग बढ़ी है।’क्लियरिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (सीसीआईएल) के आंकड़ों के मुताबिक बॉन्ड डेरिवेटिव्स बाजार में एलआईसी की उपस्थिति में मई 2025 से उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जो इस अवधि के दौरान कुल 2.6 अरब डॉलर के एफआरए वॉल्यूम का 39 प्रतिशत से अधिक है।
एक और बाजार साझेदार ने कहा, ‘इसकी वजह से लंबी अवधि वाली सरकारी प्रतिभूतियों की मांग बढ़ने की संभावना है।’ उन्होंने कहा कि एलआईसी के आकार के कारण फॉरवर्ड स्प्रेड कम हो सकता है, जिससे छोटे कारोबारियों के मुनाफे पर विपरीत असर पड़ सकता है।
बॉन्ड एफआरए सौदे में बीमा कंपनियां भविष्य में किसी पूर्व निर्धारित मूल्य पर बॉन्ड खरीदने का वादा करती हैं, जबकि बैंक प्रीमियम के बदले मूल्य में उतार-चढ़ाव का जोखिम उठाते हैं। बैंक अक्सर अनुबंध की शर्तों के अनुरूप दीर्घकालिक बॉन्ड खरीदकर इस जोखिम से बचाव करते हैं। फॉरवर्ड रेट एग्रीमेंट में सिक्योरिटीज की भौतिक डिलिवरी होती है। इसके विपरीत बॉन्ड फॉरवर्ड में बीमा कंपनी हेजिंग के मकसद से बॉन्डों की सीधी डिलिवरी लेती है।