भारतीय शेयरों में उपभोग सबसे ज्यादा विविधीकृत और मांग वाली थीम में से एक है। वैल्यू रिसर्च के आंकड़ों के मुताबिक पिछले पांच साल में उपभोग थीम आधारित फंडों ने सालाना 15.17 फीसदी औसत श्रेणी प्रतिफल दिया है। लेकिन यह थीम कोविड-19 महामारी से प्रभावित हुई है। कोविड-19 का रोजगार और आजीविका पर बड़ा असर पड़ा है।
व्यापक थीम
अर्थव्यवस्था में बढ़ोतरी के साथ लोगों की खरीद क्षमता में भी इजाफा होता है। इससे विभिन्न वस्तुओं एवं सेवाओं की मांग में बढ़ोतरी होती है। इसका फायदा शुरुआती चरण में रोजमर्रा के सामान (एफएमसीजी) को होता है, जबकि लंबी अवधि में गैर-जरूरी वस्तुओं की मांग बढ़ती है।
फंड्सइंडिया डॉट कॉम के अनुसंधान प्रमुख (म्युचुअल फंड) अरुण कुमार ने कहा, ‘उपभोग फंडों में उपभोक्ता गैर-टिकाऊ, एफएमसीजी, स्वास्थ्य सेवा, वाहन, दूरसंचार, दवा, आतिथ्य और मीडिया एवं मनोरंजन जैसे घरेलू उपभोग क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करने वाली कंपनियों का विविधीकृत पोर्टफोलियो शामिल है।’
यह अच्छी विविधीकृत थीम है, इसलिए फंड प्रबंधक अपना पोर्टफोलियो बनाने के लिए व्यापक शेयरों में से चुनाव कर सकते हैं। इस थीम की किस्मत किसी एक क्षेत्र या कुछ चुनिंदा कंपनियों पर निर्भर नहीं है।
कोविड-19 का असर
कोविड-19 महामारी ने पिछले डेढ़ साल में उपभोक्ता थीम को प्रभावित किया है। आर्थिक मंदी से बहुत से लोगों के रोजगार छिन गए हैं और उन्हें आमदनी का नुकसान झेलना पड़ा है। इसका उपभोक्ता मांग पर असर पड़ा है। वेल्थ लैडर डायरेक्ट के संस्थापक एस श्रीधर ने कहा, ‘जरूरी उत्पादों का लॉकडाउन के दौरान भी इस्तेमाल होता रहा है, इसलिए एफएमसीजी ने महामारी के दौरान अच्छा प्रदर्शन किया। हालांकि नौकरियों और वेतन पर अनिश्चितता के कारण गैर-जरूरी व्यय की रफ्तार बरकरार नहीं रही। उपभोक्ता आत्मविश्वास भी अत्यधिक नीचे था।’
आगे अवसर
लगातार आर्थिक सुधार से इस क्षेत्र को नई ऊर्जा मिल सकती है। टीबीएनजी कैपिटल एडवाइजर्स के संस्थापक और सीईओ तरुण बिरानी ने कहा, ‘अगर हम महामारी के असर से पार पाने में सफल रहे और अर्थव्यवस्था लगातार खुलती रही तो दबी मांग आने से उपभोग क्षेत्र को बड़ा सहारा मिलेगा।’
कई बार उपभोग फंडों का मूल्यांकन महंगा हो सकता है। अन्य शेयरों के साथ ही उपभोग आधारित शेयरों में भी हाल में तेजी आई है।
निवेश करना चाहिए?
वित्तीय सलाहकारों का सुझाव है कि निवेशक उपभोग फंडों में निवेश करते समय सतर्कता बरतें क्योंकि ये किसी थीम पर आधारित हैं। श्रीधरन ने कहा, ‘हम थीमेटिक फंडों में निवेश का समर्थन नहीं करते हैं। किसी व्यक्ति के प्रवेश और निकासी का उपयुक्त समय तय करना मुश्किल है। इसके अलावा फंड प्रबंधक को थीम के शेयर बनाए रखने चाहिए, भले ही वे अच्छा प्रदर्शन नहीं कर रहे हों।’
कुमार भी थीमेटिक फंडों के बजाय विविधीकृत इक्विटी फंडों में निवेश करने की सलाह देते हैं। उन्होंने कहा, ‘आसान विकल्प ठीक विविधीकृत इक्विटी फंडों के जरिये फंड प्रबंधकों की थीम एवं क्षेत्रोंं की पसंद आउटसोर्स करना होगा।’
श्रीधरन के मुतबिक केवल जो निवेशक अधिक जोखिम उठाने की क्षमता रखते हैं, उन्हें अपने इक्विटी पोर्टफोलियो का अधिकतम 5 से 10 फीसदी थीमेटिक फंडों में निवेश करना चाहिए। कुमार ने कहा कि जोखिम लेने वाले ऐसे निवेशक जो किसी थीम पर निगरानी रखते हैं और प्रवेश एवं निकासी के समय का सही फैसला लेने में सक्षम हैं, उन्हें इन फंडों को अपने पोर्टफोलियो के टैक्टिकल हिस्से में शामिल करना चाहिए। इसके अलावा एसआईपी (सिस्टेमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान) का इस्तेमाल कर नियमित खरीद की जानी चाहिए ताकि रुपया लागत औसत का फायदा मिल सके। हालांकि बिरानी जैसे कुछ विशेषज्ञों का अलग ही नजरिया है। बिरानी ने कहा, ‘निवेशकों के लिए महत्त्वपूर्ण है कि वे इन थीम आधारित फंडों में अपना निवेश कम से कम पांच से सात साल तक बनाए रखें ताकि चक्रवृद्धि बढ़ोतरी का फायदा लिया जा सके।’