सरकार ने सोमवार को संसद में बीमा कानून संशोधन विधेयक, 2025 का एक नया मसौदा पेश किया है। इस मसौदे में जीवन बीमा और कुछ खास तरह के बीमा कारोबार से जुड़े फंडों के इस्तेमाल को लेकर और भी ज्यादा सख्ती करने का प्रस्ताव है और विशेषतौर पर उन पैसों को लाभांश, बोनस या डिबेंचर चुकाने में इस्तेमाल करने पर रोक लगाने की बात है।
नए प्रस्तावित विधेयक के मुताबिक जीवन बीमा या दूसरी अधिसूचित बीमा करने वाली कंपनियों को बीमा फंड से किसी भी तरह से, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तरीके से शेयरधारकों को लाभांश देने, पॉलिसीधारकों को बोनस देने या डिबेंचर का कर्ज चुकाने के लिए पैसे इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं होगी। अगर बीमांकिक मूल्यांकन से कोई अधिशेष निकलता है तब उस पैसे का इस्तेमाल किया जा सकता है।
लेकिन ऐसे अधिशेष भी आईआरडीएआई द्वारा तय किए गए तरीके के हिसाब से बैलेंसशीट में दिखना चाहिए और कानूनी तौर पर जरूरी रिटर्न के साथ जमा करना होगा।विधेयक में यह भी तय किया गया है कि डिबेंचर के लिए अधिशेष से जो भुगतान किया जाएगा, उस पर एक सीमा होगी। ब्याज समेत कुल भुगतान, घोषित अधिशेष के 50 फीसदी से अधिक नहीं हो सकता।
इसके अलावा, डिबेंचर पर दिया जाने वाला ब्याज भी अधिशेष के 10 फीसदी ज्यादा नहीं हो सकता जब तक कि मूल्यांकन के अनुमानों को तय करते समय इस ब्याज को बीमा फंड में जमा किए गए ब्याज के साथ समायोजित न किया जाए। प्रस्तावित कानून अधिशेष के उस हिस्से को सीमित करता है जिसे शेयरधारकों को आवंटित किया जा सकता है। विधेयक ने तीन मूल कानूनों, बीमा अधिनियम, 1938, भारतीय जीवन बीमा निगम अधिनियम, 1956, और भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण अधिनियम, 1999 में संशोधन का प्रस्ताव भी रखा है।