जनवरी के दौरान वाणिज्यिक परिपत्र (सीपी) की दरें 10-13 आधार अंक बढ़ गई हैं। यह बाजार में नकदी की कमी का संकेत देती है। सीपी की बढ़ती दरों ने यह प्रदर्शित किया है कि वित्तीय प्रणाली में तरल निधियों की उपलब्धता सीमित होने के कारण कारण उधारी लेने वालों को अल्पावधि में धन जुटाने के लिए उच्च लागत का सामना करना पड़ रहा है। इस अवधि के दौरान जमा प्रमाणपत्र (सीडी) की दरें 20-30 आधार अंक बढ़ गई हैं।
एक निजी बैंक के ट्रेजरी प्रमुख ने बताया, ‘फिलहाल टिकाऊ नकदी की स्थितियां बेहद सख्त हो गई हैं। अल्पावधि सीपी और सीडी की दरें बढ़ चुकी हैं। सीडी की दरें 25 आधार अंक बढ़कर 7.40 फीसदी से 7.51 फीसदी के बीच हैं जबकि यह बीते माह 7.10 फीसदी से 7.20 फीसदी थीं। इसके अलावा आने वाले दिनों में वृद्धिशील जमाराशि वृद्धिशील ऋण से भी नीचे आने की उम्मीद है। इसका प्रमुख कारण यह है कि भारतीय रिजर्व बैंक सक्रिय रूप से मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप कर रहा है और इससे आने वाले समय में नकदी की तंगी बढ़ सकती है।’
सिस्टम में नकदी की कमी 2 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच चुकी है। बाजार के भागीदारों के अनुसार रिजर्व बैंक के खरीदारी/बिक्री स्वैप भुगतान को आगे बढ़ाने के बजाय परिपक्वता होने पर भुगतान कर दिया। इससे नकदी की कमी हुई। उन्होंने बताया कि स्थानीय मुद्रा को और गिरने से रोकने के लिए रिजर्व बैंक के हाजिर मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप करने से घरेलू मु्द्रा में गिरावट आई।
भारतीय रिजर्व बैंक बीते दो महीनों से विदेशी मुद्रा बाजार में जबरदस्त हस्तक्षेप कर रहा है और इससे भारतीय रुपये की तरलता प्रभावित हो रही है। नोमुरा के अनुसार उपलब्ध नकदी 27 सितंबर के 4.6 लाख करोड़ रुपये से गिरकर 27 दिसंबर को 0.4 लाख करोड़ रुपये ही रह गई। हालांकि इस तारीख के बाद भी कुल नकदी में गिरावट आ गई है। आईडीएफसी फर्स्ट बैंक की मुख्य अर्थशास्त्री गौरा सेन गुप्ता ने कहा कि रिजर्व बैंक को कई तरह के कदम उठाने पड़ सकते हैं।