बाजार में तेजी के दौरान जितने झटके नहीं लगे, उससे कहीं ज्यादा मार गिरावट के दौर में देखी गई। उदाहरण के तौर पर सत्यम कंप्यूटर का मामला और अमेरिकी निवेश बैंकों के धराशायी होने को शामिल किया जा सकता है।
सत्यम मामले ने कंपनियों के उत्तरादयित्व की खामियों को स्पष्ट रूप से उजागर किया है। वहीं यह सवाल भी खड़ा होता है कि देश में सूचीबद्ध करीब 6,000 कंपनियों में कॉरपोरेट गवनर्स की क्या स्थिति है। कॉरपोरेट गवनर्स के जरिए कंपनियों पर नियंत्रण रखा जाता है, लेकिन सत्यम मामले में यह पूरी तरह नाकाम रहा।
सच तो यह है कि कॉरपोरेट गवनर्स ऑडिट और वित्तीय कार्य-कलापों के जरिए कंपनी पर नजर रखता है और उसे गलत करने से रोकता है। लेकिन सत्यम की बात करें, तो यह प्रवर्तकों की मंशा को भांपने में पूरी तरह असफल रहा।
ऐसे में फंड मैनेजरों, सीआईओ और रिसर्च प्रमुखों को भारत में मौजूदा कॉरपोरेट गवनर्स प्रणाली में किस तरह से सुधार किया जाए और यह निवेशकों के हित में कैसे हो, इस पर विचार करना चाहिए।
बोर्ड की भूमिका
सत्यम मामले के बाद बोर्ड और स्वतंत्र निदेशकों की भूमिका पर भी विचार करना होगा। इसमें यह भी ध्यान रखना होगा कि कॉरपोरेट गवनर्स सभी शेयरधारकों के हित में काम करे। कॉरपोरेट गवनर्स पर गठित तीन समितियों ने स्पष्ट रूप से स्वतंत्र निदेशकों की भूमिका, उनके पारिश्रमिक और उत्तरदायित्वों के बारे में बताया है।
इसमें इस बात का भी जिक्र है कि प्रबंधकीय अतिक्रमण पर भी समुचित नियंत्रण किया जाए। एम्बिट कैपिटल के सीईओ (इक्विटी) एंड्रयू हॉलैंड का कहना है कि स्वतंत्र निदेशकों पर बोर्ड के निर्णयों और ऑडिट से संबंधित नियमों का भी उत्तरदायित्व बनता है।
स्वतंत्र निदेशकों के चयन के लिए कुछ सुझाव भी दिए गए हैं, जिसके तहत स्वतंत्र निदेशकों के लिए प्रशिक्षण की व्यवस्था, उनके कार्यों की समीक्षा, निदेशकों की अधिकार सीमा और कंपनी के बोर्ड की बैठकों में आवश्यक उपस्थिति अनिवार्य है।
इसके साथ ही स्वतंत्र निदेशकों की संख्या और कंपनी के सीईओ या बोर्ड चेयरमैन के सुझावों पर अमल भी जरूरी कदम हो सकते हैं। केपीएमजी के गवनर्स के निवेले डुमासिया का कहना है कि अमेरिका और यूरोपीय देशों में कंपनी के सीईओ और बोर्ड चेयरमैन, दोनों अलग-अलग व्यक्ति के सिद्धांत को बखूबी अमल में लाया जा रहा है और यह कारगर भी है।
इन देशों की तमाम कंपनियां इस सिद्धांत को अपना रही हैं। इससे बोर्ड के सदस्यों के बीच अच्छा संतुलन बनता है। दूसरा पहलू है बोर्ड में स्वतंत्र निदेशकों की संख्या का।
हालांकि इसकी संख्या कंपनियों के लिहाज से अलग-अलग हो सकती है, जिसमें बोर्ड में एक-तिहाई से लेकर आधी संख्या तक स्वतंत्र निदेशक हो सकते हैं।
हालांकि यह न्यूयॉर्क और नैस्डैक में सूचीबद्ध कंपनियों पर निर्भर करता है। लेकिन भारत के मामले में ऐसा कम ही देखा जाता है। भारत के ज्यादातर कंपनियों के बोर्ड में प्रवर्तकों का ही प्रभुत्व होता है।
हालांकि कानून इन सभी कवायदों को बदल सकता है। डुमासिया के मुताबिक, यूरोप और अमेरिकी देशों की कंपनियों में बोर्ड के एक्जिक्यूटिव ही कंपनी के सीईओ होते हैं।
ऑडिटरों की भूमिका
सत्यम के खातों में हेराफेरी के खुलासे के बाद अधिकांश लोग बोर्ड में स्वतंत्र निदेशकों की भूमिका पर सवाल कर रहे हैं। वहीं विशेषज्ञ के मुताबिक, सत्यम मामले के बाद ऑडिटरों की भी भूमिका पर भी सवाल उठने लगे हैं।
फंड मैनेजर इस बारे में सवाल करते हैं कि कंपनियां आमतौर से ऑडिटरों को बदलती नहीं हैं। उनके मुताबिक, क्यों न सार्वजनिक कंपनियों की तरह ही प्राइवेट कंपनियों में भी हर तीन साल पर ऑडिटरों को बदला जाए?
हालांकि हॉलैंड का मानना है कि हर साल ऑडिटरों को बदलने की बजाय, ऑडिटरों के मुखिया को ही बदल दिया जाए। ऐसे में ऑडिट कंपनी को बदले बिना भी ऑडिटरों में फेर-बदल किया जा सकता है।
सत्यम मामले के बाद इस बात का भी पता चला कि भारतीय कंपनी कानून को लागू करने में कितनी देरी होती है। यानी कानूनों के प्रभावी इस्तेमाल में तमाम तरह की समस्याएं सामने आती हैं। इससे इस बात का भी खुलासा हुआ कि कंपनी कानूनों को आदर्श रूप से पारदर्श तरीके से लागू किया जाए।
इंस्टीटयूट ऑफ कंपनी सेक्रेटरी ऑफ इंडिया के सचिव और सीईओ एन. के. जैन का कहना है कि फर्जीवाड़ा या अनियमितताओं के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का मुद्दा अहम सवाल है।
उनका कहना है कि ऑडिटरों की महती जिम्मेदारी है और अगर वे अपने काम में किसी तरह की लापरवाही करते हैं, तो उन्हें इसके लिए निश्चित तौर पर सजा मिलनी चाहिए।
बड़े शेयरधारक
विशेषज्ञों का मानना है कि संस्थागत निवेशक, जिनके पास कंपनी की बड़ी हिस्सेदारी होती है, वे अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर कंपनी प्रबंधन को गलत करने या फिर शेयरधारकों के हित के खिलाफ जाने से रोकने के लिए कदम उठा सकते हैं।
अगर संस्थागत निवेशक एकसाथ मिलकर कंपनी पर दबाव बनाएं, तो जिस कंपनी में उन्होंने निवेश किया है, उसमें अपनी सुविधानुसार जरूरी बदलाव भी करा सकते हैं।
आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज के कार्यकारी निदेशक अनूप बागची का कहना है कि संस्थागत निवेशक स्वतंत्र निदेशकों को कंपनी में कॉरपोरेट गवनर्स को सही ढंग से लागू करने को कह सकते हैं।
वहीं स्वतंत्र निदेशक जोखिम प्रबंधन में महती भूमिका निभा सकते हैं। बड़े शेयरधारकों का समूह कंपनी और शेयरधारकों के हित में उचित कदम उठा सकते हैं। व्यक्तिगत शेयरधारक भी अपने हित में कंपनी प्रबंधन के लिए संस्थागत निवेशकों के समूह से बात कर सकते हैं।
अगर खुदरा निवेशक कॉरपोरेट एजेंडा में ज्यादा बदलाव लाने की स्थिति में न हों, तो ऐसी कंपनी में निवेश करने से पहले सावधानी बरतनी चाहिए।
हरिभक्ति एंड कंपनी के कार्यकारी चेयरमैन और मैनेजिंग पाटर्नर शैलेश हरिभक्ति का कहना है कि कंपनी का प्रदर्शन कंपनी और शेयरधारकों में पारदर्शिता, सभी जरूरी जानकारियों और उत्तरदायित्व भावना से कंपनी में निवेश के अवसर उपलब्ध कराते हैं।
हालांकि यह भी संभव है कि खुदरा निवेशकों को कंपनी की सभी संबंधित जानकारियां उपलब्ध न हों। ऐसे में उन्हें कंपनी के अकाउंट से संबंधित सभी जानकारियों पर नजर रखनी चाहिए। ऐसा करके वे अपने निवेश को बेहतर बना सकते हैं।
हॉलैंड का कहना है कि कंपनी के अकाउंट नोट्स के जरिए ऑडिटर कंपनी की कार्यकलापों और वित्तीय स्थिति के बारे में संकेत देते हैं, जो निवेशकों के लिए कारगर हो सकता है।
हमारे सर्वे से इस बात का भी पता चला कि खुदरा निवेशक कॉरपोरेट गवनर्स के मसले पर उतने जागरूक नहीं हैं, लेकिन सत्यम मामले के बाद इस बात को बल मिला है कि निवेशक कॉरपोरेट गवनर्स का भी ध्यान रखें।
केपीएमजी की ओर से अमेरिका और ब्रिटेन के बाजारों के अध्ययन के दौरान यह पता चला कि वहां की कंपनियां बाजार में अपना कम मूल्यांकन करती हैं, जिससे उन्हें कॉरपोरेट गवनर्स के मसले पर समस्या का सामना न करना पड़े।
विशेषज्ञों का कहना है कि भारतीय कंपनियां-एचडीएफसी और भेल को हिंदुस्तान यूनिलीवर, आईटीसी और इन्फोसिस की तुलना में ज्यादा बाजार मूल्यांकन मिलता है। ऐसा इसलिए, क्योंकि इन कंपनियों का प्रदर्शन जहां अच्छा है, वहीं कॉरपोरेट गवनर्स के मानकों पर भी ये कंपनियां खरी उतरती हैं।
अब आगे क्या होगा?
हमारे सर्वे और तमाम विशेषज्ञों से मिले सुझावों और टिप्पणियों के आधार पर कहा जा सकता है कि बंबई स्टॉक एक्सचेंज के सेसेंक्स में शामिल कंपनियां कॉरपोरेट गवनर्स पर ध्यान देंगी और उसी के आधार पर उनका मूल्यांकन किया जा सकता है।
वहीं कुछ विशेषज्ञों, जिनमें जैन भी शामिल हैं, उनका कहना है कि सत्यम मसले के बाद कॉरपोरेट गवनर्स के नियमों को फिर से परिभाषित करने की जरूरत है। भारत में कॉरपोरेट गवनर्स के नियम भी विकसित देशों की तर्ज पर होने चाहिए और उसे प्रभावी ढंग से लागू भी किया जाना चाहिए।
इसके साथ ही यह भी सुनिश्चित करना होगा कि कंपनी के बोर्ड निदेशकों में प्रबंधन की ओर से नियुक्त निदेशक और स्वतंत्र निदेशकों की संख्या एक बैलेंस होना चाहिए।
इसके जरिए कंपनी के आंतरिक कार्य-कलापों पर भी मदद मिल सकती है। इसके साथ ही संस्थागत निवेशकों की सक्रिय भूमिका भी कंपनी प्रबंधन को जिम्मेदारी पूर्वक कार्य करने को प्रेरित कर सकती है।
कॉरपोरेट गवनर्स के मसले पर हालांकि पिछले पांच वर्षों के दौरान स्थिति में कुछ सुधार आया है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि अभी इसमें और सुधार की जरूरत है। इसमें कंपनी में शेयरधारकों के प्रति पारदर्शिता और प्रबंधकों के उत्तरदायित्व को बढ़ाकर कॉरपोरेट गवनर्स को प्रभावी तरीके से लागू किया जा सकता है।
जहां तक खुदरा निवेशकों की बात है, तो उन्हें कंपनी की पृष्ठभूमि का अध्ययन करना चाहिए और कंपनी की सभी जानकारियों पर ध्यान देना होगा, खासकर उसकी ऑॅडिट रिपोर्ट पर। विशेषज्ञों का कहना है कि छोटी और मझोली कंपनियों में निवेश के लिए सख्त कदम उठाने होंगे।
निवेशकों के हितों को ध्यान में रखते हुए एक फंड मैनेजर का कहना है कि हमें इस बाद का अफसोस होता है कि दोषी को सजा तक नहीं मिल पाती है।
उनके मुताबिक, हमारे देश में जो नियम हैं, वे दुनिया में सबसे अच्छे हैं, लेकिन सही तरीके से उसका अनुपालन नहीं होने से दोषी बच निकलता है, जबकि अमेरिका में ऐसा करने पर कंपनी या प्रबंधन के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाती है, वहीं जुर्माना भी लगाया जाता है।
कॉरपोरेट गवनर्स समिति
कुमार मंगलम बिड़ला, 2000
बोर्ड के निदेशकों का अनुपात
स्वतंत्र ऑडिट समिति की जरूरत
स्वतंत्र निदेशक कौन हों, इसका उल्लेख
हर तिमाही बोर्ड की बैठक जरूरी
सभी जरूरी जानकारियों को शेयरधारकों को बताना चाहिए
नरेश चंद्रा, 2002
वित्तीय लेखा-जोखा को मुख्य कार्यकारी अधिकारी और मुख्य वित्तीय अधिकारी प्रमाणित करें
जोखिम और उत्तरदायित्वों का खुलासा
स्वतंत्र निदेशकों को कंपनी के साथ आर्थिक संबंध नहीं होने चाहिए, क्योंकि इससे उनकी कार्यक्षमता पर असर पड़ सकता है
स्वतंत्र निदेशकों की निश्चित फीस तय होनी चाहिए
नारायण मूर्ति, 2003
ऑडिट कमिटी के उत्तरदायित्वों को बढ़ाना
वित्तीय लेखा-जोखा रिपोर्ट में और सुधार की दरकार
आईपीओ फंडों की उपयोगिता
सालाना रिपोर्ट में कारोबार के जोखिम का खुलासा करना
(इन सभी आवश्यक निर्देशों को क्लॉज 49 में शामिल किया गया है )
कॉरपोरेट गवनर्स : चेक लिस्ट
स्वतंत्र बोर्ड बोर्ड के सदस्यों, खासकर स्वतंत्र और संस्थागत सदस्यों को केवल प्रबंधन की हां में हां नहीं मिलानी चाहिए। उन्हें अपनी
राय सशक्त तरीके से रखनी चाहिए और शेयरधारकों के हितों का पूरी तरह से ख्याल रखना चाहिए।
प्रदर्शन निवेशकों को अकाउंटिंग के विभिन्न पहलुओं पर नजर रखनी चाहिए। ऑडिटिंग की हेराफेरी को समझने की क्षमता विकसित करनी चाहिए।
पारदर्शिता निवेश्कों के हित में कंपनी की ऐसी सभी योजनाओं और कार्य-कलापों का खुलासा करना चाहिए।
परिचालन और वित्तीय सूचनाओं का भी खुलासा करना चाहिए।
शेयरधारकों का हित कंपनी की नकदी का बुद्धिमत्ता से उपयोग करना, जिससे शेयरधारकों को निवेश का बेहतर रिटर्न मिल सके।
अकाउंटिंग कंपनी के खातों की ऑडिट करते समय सभी पहलुओं का ध्यान रखना चाहिए, साथ ही अकाउंटिंग के सभी मानकों का बेहतर समावेश करना चाहिए।
चेक लिस्ट
बोर्ड में ज्यादा से ज्यादा स्वतंत्र निदेशक हों
सक्रिय ऑडिट समिति -सभी स्तरों पर जिम्मेदारी की भावना
सभी संबंधित जानकारियों का खुलासा
कंपनी की पृष्ठभूमि की जानकारी
अकाउंटिंग नियमों का बुद्धिमत्ता से इस्तेमाल