‘गंगोत्री’ सूखने से कंपनियां हलकान

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 05, 2022 | 4:41 PM IST


गंगा के उद्गम स्थल यानी गंगोत्री के सूखने से जो हालत गंगाजल के मुरीद भारतीय लोगों की हो सकती है

, ठीक वैसी ही हालत इन दिनों भारतीय कॉरपोरेट जगत की हो चुकी है।


 


वह यूं कि दुनिया भर में गिरावट की मार झेलते बाजार और मंदी की मार से पस्त अमेरिका के चलते उन्हें समझ ही नहीं आ रहा है कि अपनी निवेश योजनाओं के लिए वह धन कैसे और कहां से जुटाएं। जाहिर है

, इन हालात में भारतीय कंपनियों की निवेश योजनाओं को गहरा धक्का पहुंचने के पूरे आसार हैं। जेएसडब्लू स्टील के सीईओ साान जिंदल तो साफ ऐलान करते हैं– इन हालात में धन जुटाना बहुत मुश्किल होगा।

 


आईकैन इनवेस्टमेंट एड्वाइजर के एमडी और सीमेंट बनाने वाली कंपनी गुजरात अंबुजा के पूर्व सीएफओ अनिल सिंघवी ने बताया कि पैसा जुटाने के स्रोत पूरी दुनिया में नदारद होते जा रहे हैं। फंडों के मुख्य स्रोत

– आईपीओ और एफसीसीबी (विदेशी मुद्रा परिवर्तनीय बांड) आदि भी कंपनियों को तर नहीं कर पाएंगे। विश्लेषकों का मानना है कि जब तक शेयर बाजार में दोबारा उफान नहीं आता है और शेयर बाजार में जब तक निवेशकों को दोबारा विश्वास नहीं जगता है, तब तक आईपीओ दुधारू गाय नहीं साबित होंगे। हालांकि बाजार में दोबारा उफान की उम्मीद 2009 के अंत तक ही होने के कयास लगाए जा रहे हैं।

 


यह भी कयास है कि बाजार का ताजा रुख विदेशी संस्थागत निवेशकों

(एफडीआई) के बहाव को भी प्रभावित कर सकता है। आरपीजी फाउंडेशन के अध्यक्ष डीएच पै पणांदिकर ने बताया,”जब कारोबार का मनोविज्ञान बदलता है तो सारी चीजें अव्यवस्थित हो जाती हैं। कारोबारी माहौल को लेकर एफडीआई काफी संवेदनशील रहते हैं।” इन सब के बीच निजी हिस्सेदारियों के बहाव में भी बाधा उत्पन्न हो सकती है। सिंघवी ने बताया,”भारतीय शेयर बाजार को सुरक्षित बाजार नहीं समझा जाता है बल्कि अभी भी इसे एक उभरता हुआ बाजार ही माना जाता है, जहां राजनीतिक और आर्थिक दिक्कतों की भरमार है। लिहाजा निवेशक ब्राजील का रुख करना ज्यादा पसंद करेंगे”

 


एक बैंकर कहते हैं

– हो सकता है कि लंबी अवधि की योजनाओं पर इसका कोई असर न पड़े लेकिन जो नई योजनाएं फिलहाल लागू की जा रही हैं, उन पर असर पड़ने की आशंका जरूर है। लिहाजा अगर कोई नई योजना बना रहा है तो उसे दुनियाभर में हावी अनिश्चितता के माहौल के खत्म होने और घरेलू मांग के उभरने तक इंतजार करना पड़ सकता है। ऑटो कंपोनेंट मैन्यूफेक्चरिंग एसोसिएशन के अध्यक्ष संजय लाब्रो ने बताया,”हम निवेश करने की सोच रहे हैं। लेकिन फंडों की तंगहाली और फंडों की आसमान छूती कीमत हमें नुकसान पहुंचा सकती है।”

 


संजय इस बात से आशंकित हैं कि इंडस्ट्री की विकास दर

20 फीसदी से गिरकर 10-11 फीसदी तक पहुंच सकती है। यही नहीं, विदेशों में धड़ाधड़ कंपनियां खरीद रहीं भारतीय कंपनियों के इस बाबत मंसूबे भी अब इतने आसान नहीं रह गए हैं। आईसीआईसीआई के मुख्य अर्थशास्त्री समीरन चक्रवर्ती ने बताया,”एलबीओ मार्केट पर काफी असर पड़ा है। ऋृण देने वाली कंपनियां, जिनकी बैलेंस–शीट को जबरदस्त झटका लगा है, उस तरह की दरियादिली नहीं दिखा सकतीं, जैसे कि पहले दिखाया करती थीं।

 


निवेश बैंकरों ने बताया कि बीते आठ महीनों में एलबीओ को खासे नुकसान का सामना करना पड़ा है

, महज चार–पांच सौदों को छोड़कर, जो कि कुछ समय के लिए पाइपलाइन में थे। पिछले साल अगस्त महीने से जारी एलबीओ मार्केट में उठा–पटक के चलते यह भी काफी हद तक सूख चुके हैं।
First Published : March 18, 2008 | 10:20 PM IST