शारजाह स्थित विपणन अधिकारी विजय राघवन वर्ष 1990 से रखे गए यूनिट स्कीम 64 प्रमाण पत्रों के बदले में मिले 264 बॉन्ड को स्पेशल अंडरटेकिंग ऑफ यूटीआई को भेज चुके हैं।
यद्यपि उन्होंने अपनी निवेश योजना के लिए व्यवस्था नहीं की है लेकिन राघवन को उम्मीद है कि उन्हें जल्दी ही धन वापिस मिल जाएगा। राघवन, जिन्होंने यूनिटों की प्राप्ति के लिए 1.5 लाख रुपये का भुगतान किया था, उन 13 लाख यूएस 64 के बॉन्ड धारकों में से हैं जिनके निवेश भारत की पहली म्युचुअल फंड योजना के मौत के साथ 31 मई की आधी रात को परिपक्व हुए हैं। इस वर्ष के जुलाई महीने में इस योजना की आयु 44 वर्ष हो जाती।
यूएस 64 योजना, जिसकी मदद से कई भारतीयों को अपनी बेटियों की शादी और बच्चों को शिक्षा उपलब्ध कराने में मदद मिली, में साल 1990 की दूसरी छमाही के बाद कठिन दौर से गुजरा। यह देख कर राघवन के बेंगलुरु स्थित एक रिश्तेदार टी वरदराजन जो एक सेवानिवृत्त बैंक अधिकारी हैं, यूएस 64 के 1000 यूनिट खरीदने के बाद वर्ष 1998 में इस योजना से बाहर हो गए थे। डनहोंने कहा, ‘मैं सेवानिवृत्त होने वाला था और मुझे पैसों की जरूरत थी, इसलिए मैंने यूनिटों को भुनाने का निर्णय लिया।’
इसी तरह 49 वर्षीय चार्टर्ड अकाउंटेंट पी वी शाह साल 1980 में इस योजना में शामिल हुए थे। यूएस 64 एक सुरक्षित निवेश के तौर पर देखा जाता था जिस पर कर-मुक्त बेहतर प्रतिफल भी उपलब्ध था। मई 2003 में उन्होंने 13 रुपये के एनएवी पर यूनिटों की खरीदारी की थी और उन्हे लगभग 14 रुपये के मूल्य पर बेच दिया था। उन्होंने कहा, ‘अपने निवेश की वापसी के साथ-साथ लंबी अवधि तक मुझे बढ़िया लाभांश मिलता रहा।’
वर्ष 1963 में वित्त मंत्रालय और भारतीय रिजर्व बैंक की एक टीम छोटी बचत योजनाओं के तरीकों का अध्ययन करने अमेरिका और ब्रिटेन गई थी और इसने यूटीआई की स्थापना की सलाह दी।
नवंबर महीने में एक विधेयक लाया गया और यूटीआई की स्थापना की गई। वर्ष 1964 के जुलाई महीने में व्यक्तिगत निवेशकों के लिए यूएस 64 लॉन्च किया गया जिसमें कर लाभ भी समाहित था। लगभग एक लाख निवेशकों ने आवेदन किया था और पहले ही साल इस योजना ने 20 करोड़ रुपये जुटा लिए। उस समय आवेदन पत्र की प्रक्रिया में लगभग दो महीने लगते थे।
यूटीआई के एक भूतपूर्व अधिकारी, जिन्होंने अपने करियर की शुरूआत यूटीआई से की थी, ने कहा, ‘इस योजना को कभी भी म्युचुअल फंडों की तरह नहीं बेचा गया और निवेशकों की संख्या हमेशा ही हमारे लिए मायने रखती थी। यद्यपि यूटीआई ने कभी भी निश्चित प्रतिफल का वादा नहीं किया था, इस बात को अन्यथा लिया गया कि प्रतिफल तो मिलेंगे ही।
निवेशकों की दिलचस्पी को बनाए रखने के लिए यूटीआई ने कम कीमतों पर यूनिटों की पेशकश की। उस समय यूनिटों के मूल्य का अंतर 2-3 रुपये तक हुआ करता था।’ वास्तव में यह एक बैलेंस्ड योजना हुआ करती थी। इस योजना का बुक क्लोजर जुलाई महीने में हुआ करता था और तभी खरीद-बिक्री के लिए शुध्द परिसंपत्ति मूल्य तय किया जाता था। लेकिन समय बीतने के साथ-साथ इक्विटी के तरफ इसका झुकाव बढ़ा और कई चवन्नी शेयर इसमें शामिल कर लिए गए।
वर्ष 1994 और 1999 के बीच अधिक लाभांश के वितरण से भी यह योजना प्रभावित हुई। यूएस 64 को शेयरों में कम निवेश करने वाली एनएवी योजना में परिवर्तित करने के सुझावों को दरकिनार कर दिया गया। वर्ष 1999 में सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के शेयर लौटाने के एवज में 3,000 करोड़ रुपये लगा कर यूटीआई को राहत दी थी, इन कंपनियों के शेयरों की कीमत 1,700 करोड़ रुपये थी।
लेकिन यह सरकार द्वारा लगाई गई यह राशि यथेष्ट साबित नहीं हुई और साल 2001 में शेयर बाजार में आई गिरावट के बाद 2 जुलाई ने यूनिटों की पुनर्खरीदारी पर रोक लगाए जाने की घोषणा की जिससे देश भर में उत्तेजना की लहर दौर गई। साल 2001 के दिसंबर महीने में फिर से यूनिटों की खरीद और उन्हें भुनाने की शुरुआत हुई। उसके बाद आया बॉन्ड। रविवार को इस बॉन्ड की अवधि पूरी हो गई और इस प्रकार यूएस 64 की मृत्यु 43 वर्ष 10 महीने की अवस्था में हो गई।