एसपीआईवीए (एसऐंडपी सूचकांक बनाम एक्टिव फंड) का नया स्कोरकार्ड सामने आ चुका है। इससे एक अनूठे रुझान का पता चलता है,जो पिछले कई साल से तैयार हो रहा है। दिसंबर, 2021 मेंं खत्म हुए 10 साल के समय में 67.6 प्रतिशत लार्ज-कैप फंडों ने अपने बेंचमार्क (एसऐंडपी बीएसई 100) के मुकाबले खराब प्रदर्शन किया है। इसके उलट मिड-कैप और स्मॉल-कैप फंडों ने थोड़ा बेहतर प्रदर्शन किया है, हालांकि उनका प्रदर्शन भी बेंचमार्क (एसऐंडपी बीएसई 400 मिड स्मॉल कैप सूचकांक) के मुकाबले खराब ही रहा है और करीब 56.1 प्रतिशत फंडों ने बेंचमार्क की तुलना मेंं कमजोर प्रदर्शन किया है।
बेहतर प्रदर्शन के रुझान कम
स्कोरकार्ड मेंं दो रुझान एकदम साफ नजर आए हैं। मॉर्निंगस्टार इन्वेस्टमेंट एडवाइजर इंडिया के निदेशक (प्रबंधक अनुसंधान) कौस्तुभ बेलापुरकर कहते हैं, ‘अल्फा का स्तर कम हो रहा है और अपने बेंचमार्क सूचकांक के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन करने वाले फंडों की संख्या भी लगातार गिरती जा रही है।’
ऐसा लगता नहीं है कि यह रुझान जल्द बदलेगा। भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के पास पंजीकृत निवेश सलाहकार और पर्सनलफाइनैंसप्लान के संस्थापक दीपेश राघव कहते हैं, ‘भविष्य में भी लार्ज-कैप के क्षेत्र में फंड मैनेजरों के लिए अपने बेंचमार्क को मात देना बेहद मुश्किल होने वाला है।’ जिस क्षेत्र पर सबकी नजर रहती हैं वहां सूचना के आधार पर बढ़त हासिल करना मुश्किल है। चुनिंदा फंड प्रबंधक ही बेंचमार्क के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन करते रह सकते हैं। बेलापुरकर ने कहा, ‘जब फंड प्रबंधक चुनने की बात आती है तो निवेशकों को बहुत ध्यान से चयन करना होगा। अगर उन्हेें लगता है कि अपने दम पर ऐसा करने में वे अक्षम हैं तो उन्हें सलाहकार की मदद लेनी चाहिए।’ जिन मिड-कैप और स्मॉल-कैप क्षेत्र पर लोगों की नजर कम रहती है,उनमें बेहतर प्रदर्शन की अधिक संभावना है।
मूल पोर्टफोलियो के लिए पैसिव फंड
अपना मूल पोर्टफोलियो तैयार करना है तो उन पैसिव फंडों का इस्तेमाल करें, जो बाजार पूंजीकरण यानी मार्केट कैप पर आधारित सूचकांकों के हिसाब से होते हैं। निफ्टी 50 आधारित फंड और विविधता वाले अमेरिकी इक्विटी सूचकांक (उपलब्धता के आधार पर शेयर बाजार, एसऐंडपी 500 या नैस्डैक) में से हरेक को 50-50 प्रतिशत का आवंटन करें। इस पोर्टफोलियो के साथ निवेशक बाजार के समान ही प्रदर्शन करने में सक्षम होंगे। पोर्टफोलियो का ज्यादा से ज्यादा हिस्सा मुख्य आवंटन का होना चाहिए। इस रणनीति को लंबे समय तक बनाए रखना आसान है। निवेशक को न तो सही फंड प्रबंधक चुनने की फिक्र करनी है तो न ही यह चिंता करनी है कि फंड प्रबंधक का प्रदर्शन खराब रहने पर नया फंड प्रबंधक कैसे और कौन चुना जाए। जहां तक पोर्टफोलियो के सैटेलाइट हिस्से की बात है तो तो निवेशक अल्फा के लिए कोशिश कर सकता है। यहां निवेशक किसी भी रणनीति के लिए जोखिम ले सकता है जिसके बारे में उसे भरोसा हो कि वह बेहतर होगा मसलन मिड-कैप, स्मॉल-कैप, मूल्य, वृद्धि, गुणवत्ता, गति आदि। निवेशक एक सक्रिय फंड अथवा फैक्टर आधारित फंड का इस्तेमाल कर यह जोखिम ले सकता है, जहां पोर्टफोलियो का निर्माण निश्चित नियमों के आधार पर किया जाता है।
सततता सबसे जरूरी पहलू
जब भी सक्रिय फंड चुनें तो यह जरूर देख लें कि वह अपनी रणनीति पर कितने लंबे अरसे तक अमल करता है। बेलापुरकर ने कहा, ‘फंड प्रबंधक चाहे जो भी शैली अपनाए, उसे उस शैली या तरीके से हटना नहीं चाहिए। वह कितना टिककर काम करता है, यह देखने के लिीए स्टाइल बॉक्स का इस्तेमाल करें।’ प्रदर्शन का आकलन करने के लिए रोलिंग रिटर्न का इस्तेमाल करें। ऐसे फंड का चुनाव करें, जिसमें औसत रोलिंग रिटर्न अधिक हो। अस्थिरता का मूल्यांकन करने के लिए रिटर्न की सीमा देखें। बेलापुरकर का कहना है कि सभी फंड प्रबंधक की शैली कुछ निश्चित अवधि के दौरान खराब प्रदर्शन करेगी। निवेशकों को इस तरह की अवधि के दौरान निवेश बनाए रखना चाहिए क्योंकि एक फंड से दूसरे फंड में निवेश करने से पोर्टफोलियो रिटर्न को नुकसान पहुंच सकता है। फिलहाल अधिकतर कारक-आधारित फंडों का इतिहास बहुत पुराना नहींं है। पूंजी का आकार बड़ा होने के बाद अभी बेहतर प्रदर्शन करने की उनकी क्षमता की जांच की जानी है। ऐसे में इनका चुनिंदा रूप से इस्तेमाल करें।
अंतर पर नजर रखने के लिए दें ध्यान
इंडेक्स फंड और एक्सचेंज-ट्रेडेड फंड (ईटीएफ) में चुनाव करना हो तो अधिकतर खुदरा निवेशकों के लिए इंडेक्स फंड अधिक उपयुक्त होगा। इसके लिए ब्रोकर अकाउंट और डीमैट अकाउंट की जरूरत नहीं होती है और निवेशक सिस्टेमैटिक इनवेस्टमेंट प्लान (एसआईपी) के जरिये निवेश कर सकता है। राघव इस बारे में अपनी राय सामने रखते हुए कहते हैं, ‘कम ट्रैकिंग अंतर के साथ इंडेक्स फंड को चुना जा सकता है। इस वेरिएबल से इंडेक्स पर नजर रखने के खर्च अनुपात और फंड मैनेजर के कौशल दोनों का पता लग जाता है।’
बहुत छोटे फंडों से परहेज करें क्योंकि बाहर से बहुत अधिक निवेश होने अथवा बहुत अधिक निकासी होने पर उनका प्रदर्शन प्रभावित हो सकता है। जब आप ईटीएफ चुनते हैं तो ट्रैकिंग का अंतर तो अहम होता ही है, तरलता भी बहुत महत्त्वपूर्ण होती है। फिडुशियरिज के संस्थापक और सेबी मेंं पंजीकृत निवेश सलाहकार अविनाश लूथरिया कहते हैं, ‘ऐसा ईटीएफ चुने जिसने पिछले महीने में हर दिन कम से कम 1 करोड़ रुपये का कारोबार मूल्य बनाए रखा है।’ (यह जानकारी नैशनल स्टॉक एक्सचेंज की वेबसाइट पर उपलब्ध होती है। वहां जाकर ईटीएफ तलाशें। उसके पेज पर जाएं, हिस्टॉरिक डेटा पर क्लिक करें और उसके बाद वैल्यू पर नजर डालें।)
ऐसे ईटीएफ का चुनाव करें, जो कर के लिहाज से भी आपके लिए अच्छा हो। लूथरिया ने कहा, ‘ऐसे फंड को नजरअंदाज करें जो लाभांश का भुगतान करता है।’ लागत पर नियंत्रण के लिए कम लागत वाले ब्रोकर का विकल्प चुनें।