प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो
विशेषज्ञों का कहना है कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की उदारीकृत धनप्रेषण योजना (एलआरएस) के ढांचे की समीक्षा की पहल एक नियमित कवायद है, जिससे इसे व्यापक आर्थिक और भूराजनीतिक स्थितियों के अनुकूल बनाया जा सके। गुरुवार को जारी सालाना रिपोर्ट में रिजर्व बैंक ने कहा कि उसने एक व्यापक रूपरेखा तैयार की है। साथ ही नियामक वार्षिक धन प्रेषण सीमा, स्वीकार्य उद्देश्यों, लेन-देन के तरीकों और मुद्रा विकल्पों सहित विभिन्न पहलुओं की जांच कर रहा है।
एलआरएस योजना 2004 में पेश की गई थी। योजना के तहत सभी भारतीय व्यक्तियों को एक वित्त वर्षमें किसी भी अनुमति प्राप्त चालू या पूजी खाते के लेनदेन या दोनों के संयुक्त लेनदेन के माध्यम से बगैर किसी शुल्क के 25,000 डॉलर भेजने की अनुमति थी। इस राशि को धीरे धीरे बढ़ाकर 26 मई, 2015 को 2,50,000 रुपये कर दी गई।
खेतान ऐंड कंपनी में पार्टनर मोइन लाढा ने कहा, ‘मौजूदा गतिशील आर्थिक वातावरण, बदलते पूंजी प्रवाह और नए दौर के लेनदेन की तकनीकें जैसे निवेश और डिजिटल संपत्ति व अंतरराष्ट्रीय प्लेटफॉर्मों के आने से एलआरएस ढांचे पर पुनर्विचार करने की साफ जरूरत है। इसके साथ ही अब धनप्रेषण पैन से जुड़ गया है, ऐसे में आयकर अनुपालन के साथ एलआरएस के इस्तेमाल के तालमेल के लिए व्यापक नीतिगत बदलाव की जरूरत हो सकती है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि बाहर भेजा जाने वाला धन उस व्यक्ति के फाइनैंशियल प्रोफाइल और कर देने की स्थिति के अनुरूप है। इस समीक्षा से संवेदनशील क्षेत्रों और संभावित दुरुपयोग संबंधी चिंता भी दूर की जा सकती है।’
ताजा आंकड़ों के मुताबिक उदारीकृत धनप्रेषण योजना के तहर भारत से विदेश भेजे जाने वाले धन में वित्त वर्ष 2025 में सालाना आधार पर 6.85 प्रतिशत कमी आई है और यह 29.56 अरब डॉलर रह गया है। यह वित्त वर्ष 2024 में 31.73 अरब डॉलर के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गया था।
अपनी सालाना रिपोर्ट में रिजर्व बैंक ने कहा है कि उसने वित्त वर्ष 2025 में प्रक्रिया आसान की और एलआरएस की संभावनाएं बढ़ाईं, जिससे भारतीय व्यक्तियों की सुविधा और पहुंच में सुधार हो सके। 3 जुलाई, 2024 से अधिकृत डीलरों (एडी) को भी लेनदेन के मूल्य की परवाह किए बिना फेमा 1999 की धारा 10(5) के अधीन फॉर्म ए-2 के ऑनलाइन या भौतिक प्रस्तुतीकरण के आधार पर धन प्रेषण की सुविधा देने की अनुमति दी गई।
रिजर्व बैंक ने कहा कि इसके अलावा भारतीय व्यक्तियों को 10 जुलाई, 2024 से किसी भी स्वीकार्य चालू या पूंजी खाता लेनदेन के लिए एलआरएस के तहत अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्रों (आईएफएससी) को धनराशि भेजने की अनुमति दी गई है। व्यक्तियों को आईएफएससी आधारित विदेशी मुद्रा खातों में धन रखने की भी अनुमति दी गई, जिससे कि वे अन्य विदेशी इलाकों में लेनदेन कर सकें। इससे पहले आईएफएससी को एलआरएस के तहत धनप्रेषण की अनुमति केवल प्रतिभूतियों में निवेश के लिए थी। 22 जून, 2023 को आईएफएससी में चलने वाले विदेशी विश्वविद्यालयों को शिक्षा शुल्क के भुगतान को शामिल करने के लिए इसका विस्तार किया गया।
एक अन्य विशेषज्ञ ने कहा, ‘विदेश में शिक्षा में आने वाले खर्च की महंगाई और व्यापक महंगाई दर को देखते हुए एलआरएस सीमा पर पुनर्विचार करने की जरूरत है। यह समीक्षा समय समय पर आकलन का हिस्सा है और रिजर्व बैंक इसके माध्यम से बदलती स्थिति के साथ तालमेल करता है।’