उच्चतम न्यायालय ने तेलंगाना उच्च न्यायालय के खंडपीठ के उस फैसले पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है, जिसमें भारतीय रिजर्व बैंक के धोखाधड़ी के वर्गीकरण की अधिसूचना को मनमाना और अवैध बताया गया है। उच्च न्यायालय ने कहा है कि यह अन्य कॉर्पोरेट खातों को भी प्रभावित करेगा, जिसे देखते हुए एसबीआई और आरबीआई शीर्ष न्यायालय पहुंचे हैं।
उच्चतम न्यायालय ने यह भी निर्देश दिया है कि फरवरी 2019 में हुई बैंकों की संयुक्त बैठक के ब्योरे/आदेश को इस खास खाते के मामले में अगले आदेश तक लागू नहीं किया जाए। कानून से जुड़े सूत्रों ने कहा कि इस आदेश से अन्य पक्षों को भी बड़ी राहत मिलेगी, जो धोखाधड़ी वर्गीकरण से इसी तरह से प्रभावित हैं, जिसमें प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों को लागू नहीं किया गया है।
धोखाधड़ी वर्गीकरण पर रिजर्व बैंक के सर्कुलर के मुताबिक कर्जदाताओं को केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के पास एक नियत समय में शिकायत दाखिल करनी है। लेकिन अब उन्हें शीर्ष न्यायालय के अंतिम फैसले तक इंतजार करना होगा।
तेलंगाना उच्च न्यायालय ने कहा था कि रिजर्व बैंक की अधिसूचना में प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन नहीं किया गया है और इसमें दूसरे पक्ष की व्यक्तिगत सुनवाई का मौका नहीं दिया गया है।
अपने पहले के आदेश में शीर्ष न्यायालय ने बैंकों से किसी खाते को ‘जानबूझ कर चूक करने वाला’ घोषित करने के पहले प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करना होगा।
कर्जदाता सामान्यतया बैंकों द्वारा नियुक्त फोरेंसिक ऑडिटरों की रिपोर्ट के आधार पर जानबूझकर चूक करने वाला खाता घोषित करते हैं।
बहरहाल कोई पहले से तय फोरेंसिक मानक नहीं है, जिसमें यह अनिवार्य हो या कोई दिशानिर्देश दिया गया हो जिसका पालनऑडिटर करें। डीएचएफएल के मामले में एक ऑडिटिंग फर्म ने कंपनी को क्लीन चिट दे दी थी, जबकि बाद में ग्रांट थॉर्नटन ने खातों में 15,000 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी की पहचान की थी।
इंस्टीट्यूट आफ चार्टर्ड अकाउंटेंट आफ इंडिया (आईसीएआई) फोरेंसिंक अकाउंटिंग स्टैंडर्ड बनाए जाने की मांग कर रहा है, जिसका इस्तेमाल फोरेंसिक ऑडिट की जांच व मूल्यांकन के दौरान किया जा सके। उच्चतम न्यायालय उन खातों की भी किस्मत तय करेगा, जिन्हें पहले बी बैंकों ने फ्रॉड घोषित कर दिया है।