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भारत के इंफ्रास्ट्रक्चर निवेश का नया दौर, बैंकिंग सिस्टम से बाहर से जुट रहा है धन: केवी कामत

नैबफिड चेयरमैन केवी कामत ने कहा कि बैंकों का इंफ्रास्ट्रक्चर फंडिंग में दौर खत्म हो चुका है, अब पूंजी बाजार, म्युचुअल फंड और बीमा कंपनियां अहम भूमिका निभा रही हैं

Published by
अंजलि कुमारी   
अनुप्रेक्षा जैन   
Last Updated- September 18, 2025 | 10:15 PM IST

नैशनल बैंक फॉर फाइनैंसिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर ऐंड डेवलपमेंट (नैबफिड) के चेयरमैन केवी कामत ने कहा कि इन्फ्रास्ट्रक्चर फंडिंग के प्राथमिक स्रोत के रूप में बैंकों का युग समाप्त हो गया है। उन्होंने कहा कि लंबी अवधि की बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए बैंकों से ऋण मिलना अब संभव नहीं है, क्योंकि बैंकों की देनदारियां कम समय की होती हैं, जो उन्हें 10-15 वर्षों से अधिक की अवधि वाली परियोजनाओं के लिए ऋण देने से रोकती हैं। उन्होंने मैच्योरिटी के साथ तालमेल न होने को ढांचागत व्यवधान बताया है।

इसके बजाय बुनियादी ढांचा क्षेत्र को धन मुहैया कराने के मसले में बागडोर अब पूंजी बाजार, म्युचुअल फंड, पेंशन फंड और बीमा कंपनियों के पास जा रही है। ये संस्थान स्वाभाविक रूप से लंबी अवधि के निवेश के लिए अनुकूल हैं। उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में ये बाजार काफी परिपक्व हुए हैं।

कामत ने कहा, ‘बैंकिंग व्यवस्था के बाहर से पूंजी जुटाना 5 साल पहले अकल्पनीय था। अब ऐसा हो रहा है। भारत का कॉर्पोरेट जगत अपने आंतरिक स्रोतों, इक्विटी बाजारों और बॉन्ड बाजारों के माध्यम से तेजी से धन जुटा रहा है।’ आंकड़ों के अनुसार बुनियादी ढांचा कंपनियों की चूक वित्त वर्ष 2016 के 8.5 प्रतिशत से घटकर वित्त वर्ष 2024 में केवल 0.3 प्रतिशत रह गई। बहरहाल बुनियादी ढांचा क्षेत्र के लिए वाणिज्यिक बैंकों द्वारा दिए जा रहे ऋण की वृद्धि धीमी हो गई है। 2020 से पहले इसकी वृद्धि दर 10 प्रतिशत थी, जो वित्त वर्ष 2026 में गिरकर सिर्फ 5 प्रतिशत (अनुमानित) रह गई है। यह घटती प्रवृत्ति विशेष वित्तीय संस्थानों और इनोवेटिव इंस्ट्रूमेंट्स की जरूरत को रेखांकित करती है, ताकि अंतर को भरा जा सके।

 भारत में अधिक डेवलपमेंट फाइनैंस इंस्टीट्यूशन (डीएफआई) की जरूरत को लेकर कामत ने कहा कि संस्थानों की संख्या बढ़ाने के बजाय मौजूदा डीएफआई को पूंजी और नवोन्मेषी ढांचे से मजबूत करना सही तरीका होगा। उन्होंने कहा, ‘बुनियादी ढांचा क्षेत्र को दिए जाने वाले धन में जैसे जैसे वृद्धि होगी, नाबार्ड जैसी डीएफआई को और ज्यादा पूंजी की जरूत होगी। ढांचा मौजूद है। हमें और संस्थानों की जरूरत नहीं है, सिर्फ मजबूत संस्थानों की जरूरत है।’ भारत के बुनियादी ढांचा क्षेत्र को धन मुहैया कराने का मामला और बाधा से अवसर की ओर बढ़ रहा है।  कामत ने कहा, ‘यदि हम जीडीपी वृद्धि 7.5 प्रतिशत से 8 प्रतिशत पर रखते हैं, तो व्यवस्था में धन की कमी नहीं होगी। यह गति, विश्वास और स्मार्ट तैनाती के बारे में है।’

2047 तक ‘विकसित भारत’ के विजन को प्राप्त करने के लिए भारत को इन्फ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र में 776 लाख करोड़ रुपये का निवेश करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि यह पूरे भारतीय बैंकिंग क्षेत्र की 186 लाख करोड़ रुपये के कुल वर्तमान ऋण बुक से चार गुना अधिक है।

First Published : September 18, 2025 | 10:15 PM IST