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बैकों की पूंजी बढ़ाने पर है सरकार का जोर

Last Updated- December 08, 2022 | 12:07 AM IST

दुनिया के वित्त बाजार में आए संकट के बाद अब सरकार द्वारा बैंकों की मदद करना कोई वर्जित या असामान्य सी बात नहीं रही। इसी लाइन पर चलते हुए भारत सरकार यह सुनिश्चित कर रही है कि बैंकों में नकदी की कोई समस्या न हो।


हालांकि यहां के हालात यूरोप और अमेरिका से जुदा हैं। वहां की सरकारों ने अपनी वित्तीय संस्थानों की मदद करने का निर्णय उस समय लिया जब वे पूरी तरह ढहने की कगार पर थीं, जबकि यहां की बैंकों में पूंजी की कोई कमी नहीं है।

अगर सरकारी बैंकों की बात करें तो उनका कैपिटल एडिक्वेंसी रेशियो (सीएआर) या पूंजी पर्याप्तता अनुपात 10 फीसदी या फिर इससे अधिक है। इसके साथ ही एक भी निजी क्षेत्र की यहां ऐसी बैंक नहीं है जिसका सीएआर 9 फीसदी के अनिवार्य स्तर से कम हो। वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने कहा है कि सरकार उन सभी बैंकों में पूंजी की पर्याप्त उपलब्धता को सुनिश्चित करेगी जिनका सीएआर स्तर 12 फीसदी के अंदर है।

बिजनेस स्टैंडर्ड के बिजनेस रिसर्च ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार इस समय आठ राष्ट्रीयकृत बैंकों का सीएआर 10.01 फीसदी से लेकर 11.88 फीसदी के बीच में है। इनके अतिरिक्त भारतीय स्टैट बैंक की तीन सहयोगी बैंकों का सीएआर 12 फीसदी से कम है।

सरकार ने बैंकों में नकदी बढ़ाने के लिए अपनी कैपिटलाइजेशन योजना की रूपरेखा तैयार कर ली है। अब से पहले सरकार ने रीकैपिटलाइजेशन बांडों के जरिए बैंकों को पर्याप्त पूंजी जुटाने में मदद की थी। 1985-86 से 2000-01 तक सरकार 20,446 करोड़ रुपये के बांड जारी कर चुकी है।

इस पूंजी से बैंकों को अपने नुकसान की भरपाई में मदद मिली थी। इसके बाद बैंकें घाटे की प्रोविजनिंग के लिए अलग से राशि रखने लगीं थी। इसके बाद बैंकों की मदद के लिए राइट इश्यू का मार्ग अपनाया। इसके तहत सरकार ने इन बैंकों में अपनी हिस्स्सेदारी घटाकर बैंकों को पूंजी जुटाने में मदद की।

मार्च में उसने एसबीआई के राइट इश्यू में 10,000 करोड़ रुपये के बांडों के मार्फत योगदान दिया। इस बारे में बैंक ऑफ महाराष्ट्र के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर एलन परेरिया ने बताया कि इस समय अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों की स्थिति बहुत खराब है। इससे अनिश्चितता का माहौल निर्मित हुआ है।

इस स्थिति में सरकार द्वारापर्याप्त पूंजी की उपलब्धतता सुनिश्चित करने के लिए किए जा रहे प्रयासों से बैंकों इस अनिश्चितता के माहौल का सामना करने में मदद मिलेगी। पंजाब नेशनल बैंक के चेयरमेन और मैनेजिंग डायरेक्टर आर पी सिंह ने बताया कि सरकार के इस कदम से बैंकों को जोखिम का सामना करने में मदद मिलेगी। पीएनबी में सरकार का 100 प्रतिशत स्वामित्व है।

वह सरकार द्वारा कैपिटल पुनर्संरचना कार्यक्रम को मंजूरी मिलने के बाद आईपीओ लाने की योजना बना रही है। बैंकरों का यह भी कहना है कि इस सरकारी मदद से बैंकों को टीयर-1 हाइब्रिड और टीयर-2 कैपिटल जुटाने में मदद मिलेगी। अगर सरकार इस बार पहले का मॉडल अपनाती है तो सरकार की इन बैंकों में हिस्सेदारी बढ़ेगी।

इससे बैंकों को इक्विटी शेयर जारी करने करने के लिए एक हेडरूम मिलेगा और साथ ही सरकारी की हिस्सेदारी को भी बरकरार रखने में मदद मिलेगी। । इसे कम करने की संभावना बहुत कम है क्योंकि सरकार को हर हाल में 51 फीसदी हिस्सेदारी अपने पास रखनी होगी।

रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार सीएआर को 12 फीसदी के स्तर पर बरकरार रखने के लिए बैंकिंग क्षेत्र को पूंजी की कुल आवश्यकता मार्च 2007 तक 2,96,000 करोड़ रुपये थी जो मार्च 2012 तक बढ़कर 8,65,935 करोड़ रुपये हो जाएगी। इस क्षेत्र को अगले पांच सालों में सीएआर का यह स्तर हासिल करने में 5,69,000 करोड़ रुपये की आवश्यकता होगी। इसमें 65 फीसदी हिस्सा या 3,69,115करोड़ रुपये की आवश्यकता है।

First Published - October 16, 2008 | 10:04 PM IST

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