कभी तेजी के घोड़े पर सवार प्राथमिक बाजार के झटका खाने के बाद कंपनियों की क्वालीफाइड इंस्टीटयूशनल प्लेसमेंट (क्यूआईपी) के जरिये पूंजी जुटाने की योजना पर पानी फिरता नजर आ रहा है। सोमवार को सूचकांक में इस कैलेंडर वर्ष में हुई सबसे तेज गिरावट ने इन उम्मीदों को और झटका दिया है।
अधिकतर निवेश बैंकरों का मानना है कि जिन कंपनियों ने क्यूआईपी के जरिये बाजार से पूंजी जुटाने की योजना बनाई है, उन्हें असफलता का सामना करना पड़ेगा क्योंकि सूचकांक में 20 फीसदी से भी अधिक की गिरावट के बाद उनके मूल्यांकन में काफी कमी आ गई है। दो दिन के भीतर दो कारोबारी सत्रों में ही बेंचमार्क सेंसेक्स में 1100 अंकों की गिरावट आ गई और वह 16000 की तरफ बढ़ चला है।
आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज के कार्यकारी निदेशक ए मुरुगप्पन का कहना है कि सबसे अहम मामला है कि ज्यादातर कंपनियां का शेयर गिरकर क्यूआईपी के लिये निर्धारित मूल्य से नीचे आ गया है। इसलिए कोई भी वित्तीय संस्था या निवेशक ऐसी कंपनी में हिस्सा नहीं खरीदना चाहेगा जिसका शेयर उसके निर्धारित मूल्य के नीचे चल रहा हो।
वर्ष 2008 में लगभग तेरह कंपनियों ने क्यूआईपी के जरिये पूंजी जुटाने की योजना बनाई थी। उनमें से ज्यादातर ने बाजार में गिरावट के बाद अपने कदम वापस खींच लिए। इनमें अदानी इंटरप्राइजेज (3000 करोड़),बाटलीबॉय(100 करोड़),श्री लक्ष्मी कॉटसिन (160 करोड़),टेलीडाटा(500 करोड़),टूरिज्म फाइनेंस कारपोरेशन(550 करोड़), वालचंदनगर इंड्रस्टीज(550 करोड़)और कालिंदी रेल निर्माण इंजीनियरिंग(150 करोड़) प्रमुख है।
इसके अलावा मुक्ता आर्टस,प्लेटिनम कारपोरेशन, सिंटेक्स इंड्रस्टीज,सदर्न ऑनलाइन बायो टेक्नोलाजीज और सिंडिकेट बैंक ने शेयर बाजारों को भेजी सूचना में यह नहीं बताया कि उन्हें कितनी रकम क्यूआईपी से जुटानी है।
शेयर बाजार की नई ऊंचाइयों के दौरान छोटी एवं मझोली कंपनियों के लिए क्यूआईपी के जरिए पैसा बटोरने का यह एक अच्छा विकल्प बन गया था। क्यूआईपी को एक अच्छा तरीका इसलिए भी माना गया था कि इसके बाद कंपनियां फालो आन आफर ला सकती थीं। देश के घरेलू वित्तीय बाजार में पूंजी जुटाने का कंपनियों के लिये यह एक सफल मंत्र था।
आईपीओ के जरिये पूंजी जुटाते समय कंपनी 10 से 15 फीसदी तक अपनी हिस्सेदारी बेचती थी ताकि बाद में कंपनी के शेयर का मूल्य बढ़ने पर निजी एवं संस्थागत निवेशकों को ऊंचे दाम पर प्राइवेट प्लेसमेंट कि.या जा सके।
कंपनी को यह फायदा भी मिलता था कि बाजार में शेयरों का मूल्य बढ़ने पर वे निवेशक जिन्हें शेयर आवंटित नहीं होते थे, शेयर बाजार से खरीद करते थे जिससे उस शेयर के दाम बढ़ जाते थे।
पिछले एक साल में इस तरह की कंपनियों के शेयरों की कीमत में 200 से 300 फीसदी का इजाफा हुआ था। लेकिन 18 जनवरी को शेयर बाजार में जबरदस्त गिरावट के बाद इन शेयरों की कीमतों में 100 फीसदी तक की गिरावट आई है। बाजार सूत्रों का कहना है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में छायी मंदी और घरेलू अर्थव्यवस्था में किसी बड़ी घोषणा के अभाव के चलते शेयर बाजार में फिलहाल उछाल आने के आसार नहीं है।
एक निजी इक्विटी फंड ब्लू रिवर कैपिटल के प्रबंध निदेशक सुजात खान का कहना है कि बाजार में आयी गिरावट से कंपनियों के शेयरों के दाम अब वास्तविक स्तर पर आ गये है जबकि पहले कंपनियां अपने शेयरों के दाम ज्यादा दिखाकर मनचाहे पैसे मांगती थी और शेयरों के दाम हाल के साल में काफी बढ़ गए थे।
खान का यह भी कहना है कि शेयरों की कीमतों में मंदी की वजह से कई कंपनियां अच्छे प्रोजेक्ट हाथ होने के बावजूद क्यूआईपी के जरिये धन जुटाने का प्रयास नही करेंगी क्योंकि भविष्य में शेयर बाजार की कीमतों में कोई सुधार होने के आसार नही हैं।
मंदी की मार
बाजार में 20 फीसदी तक की गिरावट से कंपनियों के शेयरों में भी काफी गिरावट आई है और पूंजी जुटाने की उनकी योजनाओं को धक्का लगा है।
बाजार सूत्रों के अनुसार वैश्विक मंदी के कारण बाजार में फिलहाल सुधार की आशा नहीं है।
शेयर बाजार में उछाल के समय कंपनियों के लिए क्यूआईपी पैसा जुटाने का कामयाब मंत्र बन चुके थे।
