भारत के सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के वरिष्ठ प्रबंधन के आधे नेतृत्व को अपने बैंकों में तेजी से बदलाव लाने के लिए डिजिटल क्षमता का निर्माण करने की जरूरत है। यह जानकारी डेलॉयट इंडिया के अध्ययन में दी गई है।
शीषर्क ‘डेलॉयट् पीओवी ऑन पब्लिक सेक्टर बैंक्स’ के अध्ययन में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के 100 से अधिक नेतृत्वकर्ताओं का अध्ययन किया गया। इस अध्ययन के अनुसार बैंकों में तेजी से डिजिटल बदलाव जारी है और सभी स्तर के नेतृत्वकर्ताओं को डिजिटल बदलाव लागू करने के लिए इसे स्वीकारने की आवश्यकता है।
अध्ययन के अनुसार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के तीन क्षेत्रों में डिजिटल बदलाव हो रहा है। पहला, सेवाओं और उत्पादों को उपभोक्ताओं तक पहुंचाने के तौर-तरीके में।
दूसरा, संचालन और सेवाओं के सरलीकरण में। तीसरा, साइबर सुरक्षा और उद्यमिता जोखिम के संबंध में। हालांकि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का जोर वित्तीय समावेशन जैसे सामाजिक उत्तरदायित्व पर भी होता है।
रिपोर्ट के अनुसार, ‘सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक तेजी से बदलाव के दौर से गुजर रहे हैं और बदलाव के अनुसार काम करने के तरीके व प्रकिया को बेहतर कर रहे हैं। इसमें सबसे जटिल मुद्दा यह है कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक कहीं अधिक व्यापक व विविधीकृत संचालन व कारोबार करते हैं।
बैंकों के वरिष्ठ प्रबंधन में आमतौर पर मुख्य कार्याधिकारी, सहायक कार्याधिकारी, मुख्य वित्तीय अधिकारी और अन्य वरिष्ठ कार्यकारी अधिकारीगण शामिल हैं। मध्यम स्तर में ब्रांच मैनेजर, डिवीजनल मैनेजर, जनरल मैनेजर आदि शामिल हैं। कनिष्ठ स्तर पर प्रोबेशनरी अधिकारी, क्लर्क व अन्य शामिल होते हैं।
डेलॉयट इंडिया की ह्यूमन कैपिटल कंसल्टिंग की साझेदार दीप्ति अग्रवाल ने कहा कि इन बैंकों में वरिष्ठ प्रबंधन आमतौर पर संचालन गतिविधियों पर अधिक नजर रखता है और नई डिजिटल रुझानों किस तरह से लागू किया जा रहा है।