कोरोनावायरस की दूसरी लहर के कारण भारत के बैंकों को प्रणालीगत जोखिम का सामना करना पड़ सकता है। स्टैंडर्ड ऐंड पुअर्स (एसऐंडपी) के मुताबिक बैंकिंग क्षेत्र में अगले 12-18 महीने तक सकल कर्ज का 11-12 प्रतिशत कमजोर कर्ज बना रह सकता है।
एजेंसी ने कहा है कि दूसरी लहर का असर भारत के वित्तीय संस्थानों के प्रदर्शन पर वित्त वर्ष 2022 की पहली छमाही में बना रहेगा और यह सरकार पर निर्भर है कि समस्या के समाधान के लिए किस तरह के कदम उठाती है।
ऋण हानि मार्च 2023 के अंत तक सुधरकर 1.8 प्रतिशत आने के पहले 2.2 प्रतिशत के उच्च स्तर पर बनी रह सकती है। रेटिंग एजेंसी ने कहा कि कर्जदाता कमजोर कर्ज के उच्च स्तर को लेकर संघर्ष कर रहे हैं और यह साफ है कि स्थिति खराब हुई है। दूसरी लहर के कारण संपत्ति की गुणवत्ता कमजोर हुई है। एसऐंडपी में क्रेडिट एनलिस्ट दीपाली सेठ छाबडिय़ा ने कहा कि वित्तीय संस्थानों पर पहली छमाही में कमजोर संग्रह और कम कर्ज देने के कारण दबाव रहेगा।
अप्रैल और मई महीने में बैंकों की ओर से कर्ज वितरण करीब एक प्रतिशत गिरा है। यह गिरावट मौसमी है क्योंकि ऐसा ही 2018 और 2019 की समान अवधि में भी देखा गया था। जून से भारत में कर्ज में वृद्धि शुरू होती है और उसके बाद जारी रहती है।
एजेंसी ने कहा कि वित्तीय कंपनियों का दबाव मौसमी प्रभाव से ज्यादा हो सकता है। उदाहरण के लिए बजाज फाइनैंस ने कहा कि उसके उपभोक्ता वस्तुओं और ऑटो फाइनैंस की बिक्री की मात्रा मई में प्रबंधन के अनुमान का महज 40 प्रतिशत रहा है।
