भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ पिछले सप्ताह एक बैठक में चुनिंदा बैंकों ने बॉन्ड बाजार की दो प्रमुख चिंताओं पर चर्चा की, जिनमें रुपये-डॉलर की विनिमय दर में हाल का उतार चढ़ाव और मांग व आपूर्ति में अंतर के कारण सरकारी बॉन्डों की फ्लोटिंग दरों से होने वाला भारी नुकसान शामिल है। इस मामले से जुड़े सूत्रों ने बिजनेस स्टैंडर्ड को यह जानकारी दी।
आगामी 5 अगस्त को मौद्रिक नीति की घोषणा होने वाली है, जिसके पहले यह बैठक आयोजित की गई है।
भारतीय बैंकों के पास सरकारी प्रतिभूतियों का बड़ा हिस्सा होता है क्योंकि नियामकीय अनिवार्यता के तहत उन्हें अपने जमा का निश्चित हिस्सा सॉवरिन बॉन्डों में रखना पड़ता है।
पिछले कुछ वर्षों में बैंकों ने अनिवार्य मात्रा से ज्यादा बॉन्डों की खरीद की है, क्योंकि ब्याज दरें रिकॉर्ड स्तर पर कम थीं । वहीं पर्याप्त नकदी की वजह से बॉन्ड प्रतिफलों में गिरावट आई है। बॉन्ड की कीमत और प्रतिफल विपरीत दिशा में बढ़ते हैं। इसके पहले की तिमाही में बैंकों को डेट पोर्टफोलियो में नुकसान हो रहा था क्योंकि रिजर्व बैंक द्वारा महंगाई पर काबू पाने के लिए दर में बढ़ोतरी किए जाने से सॉवरिन बॉन्ड प्रतिफल तेजी से बढ़ा। बॉन्ड में निवेश पर हुए नुकसान से बैंकों का मुनाफा प्रभावित हुआ। इस मामले से जुड़े एक सूत्र ने कहा, ‘गुरुवार को दो मसलों पर चर्चा हुई। इसका एक हिस्सा विशुद्ध रूप से परिचालन और बाजार में मांग आपूर्ति की चिंता को लेकर था। वहीं दूसरा विषय इस समय की बाजार की व्यापक चिंता को लेकर था।’ सूत्र ने कहा, ‘अगर महंगाई और ब्याज दरों को कम अवधि के हिसाब से देखें, तो बाजार जानता है कि दरों में बढ़ोतरी होगी, क्योंकि महंगाई के लक्ष्य के भीतर आने में वक्त लगेगा। रुपये की अस्थिरता अलग चिंता है, जिसकी वजह से कमजोरी आ रही है। रिजर्व बैंक दरों की कार्रवाई पर विचार कर सकता है, जिससे ब्याज दरों में अंतर को बरकरार रखा जा सके और रुपये की सुरक्षा हो सके।’
पिछले एक महीने में डॉलर के मुकाबले रुपये में तेज गिरावट आई है। फेडरल रिजर्व द्वारा दरों में आक्रामक बढ़ोतरी के कारण जोखिम से बचने का वैश्विक माहौल बना है और विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के मुताबिक निवेशक कदम उठा रहे हैं।
परिचालन के हिसाब से देखें तो बाजार द्वारा उठाया गया प्रमुख मसला हाल में बॉन्डों के फ्लोटिंग रेट की वजह से हुआ भारी नुकसान है, क्योंकि सरकारी बॉन्डों की साप्ताहिक नीलामी से इस तरह के पेपर्स की भारी आपूर्ति हो रही है। सरकार हर शुक्रवार को अमूमन नीलामी करती है, जिसके माध्यम से वह बॉन्ड बेचती है और धन जुटाती है।
पहले सूत्र ने कहा, ‘शुरुआत में एफआरबी की अच्छी मांग थी, क्योंकि ब्याज दरों के बढ़ते परिदृश्य में ये हेज के रूप में काम करते थे और समयावधि को लेकर कोई जोखिम नहीं था। लेकिन आपूर्ति बढ़ने से इन बॉन्डों की कीमत बहुत गिर गई। बाजार ने कम आपूर्ति का अनुरोध किया है।’
