वित्त-बीमा

सरकारी कर्मचारियों को मिलेगा एकमुश्त एरियर, 8वें वेतन आयोग की देरी से अर्थव्यवस्था और महंगाई पर बड़ा असर

8वें वेतन आयोग के भुगतान में देरी से सरकार ने कर्मचारियों को एरियर सहित वेतन देने की योजना बनाई, जिससे महंगाई और अर्थव्यवस्था पर बड़ा असर होगा।

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शिवा राजौरा   
Last Updated- August 17, 2025 | 8:22 PM IST

8th Central Pay Commission: 8वें केंद्रीय वेतन आयोग (CPC) के भुगतान में देरी के कारण भारत की अर्थव्यवस्था पर बड़ा असर पड़ने की संभावना है। प्राइवेट थिंक टैंक QuantEco Research की एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, इस देरी से न केवल आर्थिक विकास और महंगाई का संतुलन बिगड़ेगा, बल्कि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) को वित्त वर्ष 2027 या 2028 के अंत में ब्याज दरें बढ़ाने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि 8वें वेतन आयोग के भुगतान में प्रशासनिक कारणों से देरी हो रही है। अनुमान था कि ये भुगतान पहले शुरू हो जाएंगे, लेकिन अब इन्हें लागू होने में कम से कम एक साल और लगेगा। इस देरी के कारण सरकारी कर्मचारियों और पेंशनधारकों को एकमुश्त एरियर के साथ भुगतान किया जाएगा, जिसका असर आर्थिक विकास और महंगाई दोनों पर पड़ेगा। खासकर कोर महंगाई (जो खाने-पीने और ईंधन को छोड़कर बाकी वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों को मापती है) पर ज्यादा दबाव पड़ेगा, क्योंकि इससे मांग बढ़ेगी और मकानों के किराए में तुरंत इजाफा होगा।

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वेतन और पेंशन में बढ़ोतरी का असर

रिपोर्ट के अनुसार, 8वें वेतन आयोग का फिटमेंट फैक्टर 2 के करीब हो सकता है, जो 7वें वेतन आयोग के 2.57 से कम है। इससे न्यूनतम वेतन 18,000 रुपये से बढ़कर 35,000 से 37,000 रुपये के बीच हो सकता है। वेतन, भत्तों और पेंशन में संशोधन की कुल लागत 2 से 2.5 लाख करोड़ रुपये तक हो सकती है, जो 7वें वेतन आयोग की 1 लाख करोड़ रुपये की लागत से दोगुनी से भी ज्यादा है। इस बढ़ोतरी से सरकारी कर्मचारियों और पेंशनधारकों की जेब में ज्यादा पैसा आएगा, जिससे उनकी खर्च करने की क्षमता बढ़ेगी।

रिपोर्ट में बताया गया है कि एकमुश्त भुगतान और एरियर से शहरी क्षेत्रों में उपभोक्ता खर्च बढ़ेगा। लोग कार, इलेक्ट्रॉनिक सामान और हवाई यात्रा जैसी महंगी चीजों और सेवाओं पर ज्यादा खर्च करेंगे। यह इंगेल के नियम का वास्तविक उदाहरण है, जिसमें आय बढ़ने पर लोग अपनी जरूरतों से ज्यादा गैर-जरूरी चीजों पर खर्च करते हैं। इसके अलावा, बढ़ी हुई आय का एक हिस्सा बचत के रूप में बैंक डिपॉजिट या शेयर बाजार में निवेश के रूप में भी जाएगा।

QuantEco Research का अनुमान है कि इस भुगतान से प्राइवेट फाइनल कंजम्पशन एक्सपेंडिचर (PFCE) में सालाना 65 से 80 बेसिस प्वाइंट की बढ़ोतरी होगी, जबकि GDP ग्रोथ पर 40 से 50 बेसिस पॉइंट का असर पड़ेगा। हालांकि, इससे राजकोषीय घाटा (फिस्कल डेफिसिट) GDP के 0.6 फीसदी तक बढ़ सकता है। सरकार को इस खर्च को पूरा करने के लिए वित्तीय संसाधन जुटाने होंगे।

रिपोर्ट में यह भी सुझाव दिया गया है कि 8वें वेतन आयोग के खर्च को पूरा करने के लिए सरकार के पास GST सुधारों को लागू करने का सुनहरा मौका है, क्योंकि वित्त वर्ष 2026 की चौथी तिमाही तक मुआवजा उपकर (कंपनसेशन सेस) खत्म होने की संभावना है।

इस बीच, RBI की मौद्रिक नीति समिति (MPC) ने फरवरी से रीपो रेट में 100 बेसिस प्वाइंट की कटौती की है। 6 अगस्त को हुई बैठक में समिति ने रीपो रेट को 5.5 फीसदी पर स्थिर रखा और तटस्थ रुख अपनाया। साथ ही, चालू वित्त वर्ष के लिए महंगाई का अनुमान 60 बेसिस पॉइंट घटाकर 3.1 फीसदी कर दिया।

First Published : August 17, 2025 | 8:04 PM IST