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Maharashtra Elections: चुनाव में किसानों की भूमिका अहम, फसलें तय करेंगी चुनावी एजेंडा

राज्य विधान सभा की 288 में से 15 सीट प्याज उत्पादन के प्रसिद्ध नाशिक क्षेत्र में हैं। इसलिए विधान सभा चुनाव में इस क्षेत्र की भूमिका काफी महत्त्वपूर्ण हो जाती है।

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अजिंक्या कवाले   
Last Updated- November 19, 2024 | 10:35 PM IST

Maharashtra elections 2024: महाराष्ट्र में नाशिक के पास पिंपलगांव कृषि मंडी में कुछ व्यापारी इस सीजन में आए नए लाल प्याज का जायजा लेते घूम रहे हैं, ताकि वे बोली लगाकर इसे खरीदने की प्रक्रिया शुरू करें। जिले के विभिन्न हिस्सों से प्याज लेकर आए किसान उनके इर्द-गिर्द इकट्ठा हैं।

जिले के चंदोरी के रहने वाले 21 वर्षीय किसान सागर बोरसे जो तड़के ही अपनी उपज लेकर मंडी में आ गए थे, काफी खुश नजर आ रहे हैं। उन्हें उम्मीद है कि पिछले साल के मुकाबले इस बार उन्हें अपने प्याज का बेहतर दाम मिलेगा, क्योंकि चुनावी साल में मई में ही सरकार ने निर्यात से प्रतिबंध हटा लिया और इस कारण मंडी में इसकी आवक कम हो गई है।

कुछ ही समय बाद एक व्यापारी ने बोरसे को गुलाबी रंग की पर्ची थमा दी, जिसने उनका 20 क्विंटल प्याज 3,800 रुपये प्रति क्विंटल के भाव से खरीद लिया था। बोरसे ने पर्ची पकड़ कर राहत की सांस ली, क्योंकि पहले निर्यात पर प्रतिबंध और फिर सूखे की वजह से बरबाद हुई फसल के कारण यहां के प्याज उत्पादक किसान काफी परेशान थे। काफी समय से उन्हें अपनी फसल के अच्छे दाम नहीं मिल रहे थे।

प्याज उत्पादन के लिए विख्यात इस क्षेत्र के किसान बोरसे कहते हैं, ‘यहां के किसान केवल सरकार से इतनी उम्मीद रखते हैं कि उन्हें अपने प्याज के दाम 4,000 रुपये 5000 रुपये प्रति क्विंटल मिलते रहें। निर्यात पर प्रतिबंध लगने से पहले उन्हें लगभग यही कीमत मिल रही थी।’

काफी इंतजार के बाद किसानों को फसल के अच्छे दाम मिल रहे हैं, क्योंकि पिछले साल तक इस क्षेत्र में प्याज केवल 2,000 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से ही बिक रहा था।

नाशिक देश के प्रमुख प्याज उत्पादक क्षेत्रों में गिना जाता है। राजनीतिक रूप से प्याज काफी संवेदनशील फसल मानी जाती है। इसकी कीमतों और उत्पादन में घट-बढ़ लोगों की भावनाओं को सीधे प्रभावित करती है। इस साल हुए लोक सभा चुनाव में भी प्याज की कीमतों का मुद्दा खूब उछला था।

एक अन्य किसान प्रवीन जाधव ने कहा, ‘नीतियों में बदलाव के कारण किसानों को प्याज की अच्छी कीमत नहीं मिली थी, जिस कारण लोक सभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को नुकसान उठाना पड़ा था।’ डिंडोरी से भाजपा उम्मीदवार और पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. भारती पवार तथा नाशिक लोक सभा क्षेत्र से एकनाथ शिंदे गुट की शिवसेना प्रत्याशी हेमंत गोडसे चुनाव हार गए थे।

राज्य विधान सभा की 288 में से 15 सीट प्याज उत्पादन के प्रसिद्ध नाशिक क्षेत्र में हैं। इसलिए विधान सभा चुनाव में इस क्षेत्र की भूमिका काफी महत्त्वपूर्ण हो जाती है। नाशिक में प्याज के दाम पूरे राज्य में चुनावी हवा को प्रभावित करते हैं। यदि प्याज के दाम कम रहते हैं तो राज्य के अन्य किसान भी नाराजगी जाहिर करते हैं।

उदाहरण के लिए जालना के पास रोहिलगढ़ में सोयाबीन और कपास उत्पादक किसान अपनी उपज की कीमतें गिरने से बहुत नाराज दिखाई दे रहे हैं। इस क्षेत्र में इस बार वर्षा कम हुई है, जिससे फसल प्रभावित हुई है।

रोहिलगढ़ के रहने वाले 50 वर्षीय किसान अर्जुन ताकले कहते हैं, ‘इस वर्ष यहां सोयाबीन 3,800 रुपये और कपास 7,000 रुपये प्रति क्विंटल बिक रही है। दो साल पहले इन दोनों ही फसलों के दाम क्रमश: 7,000 और 12,000 रुपये प्रति क्विंटल थे। खाद, मजदूरी और कीटनाशक आदि पर होने वाले खर्च को देखें तो लागत बहुत अधिक बैठ रही है। ऊपर से दाम लगातार कम होते जा रहे हैं। ऐसे में सरकार कैसे यह उम्मीद कर रही है कि हम अच्छी कमाई कर रहे हैं।’

खेती से कम आमदनी होने के कारण ताकले ने हार्डवेयर की दुकान खोली है ताकि रोजमर्रा की जरूरतें पूरी करने के लिए अतिरिक्त आय का जरिया खड़ा हो जाए। उनके दो बेटे हैं, लेकिन किसी की भी नौकरी नहीं लगी है, इससे ताकले बहुत परेशान नजर आते हैं। वह कहते हैं कि खेती में कुछ तय नहीं है, कब फसल अच्छी हो जाए और कब लागत भी पूरी न निकल पाए। इसलिए दोनों बेटे सरकारी नौकरी के लिए तैयारी कर रहे हैं।

महाराष्ट्र के रोहिलगढ़ जैसे क्षेत्रों में पिछले साल की अपेक्षा इस बार बेहतर वर्षा हुई है। लोगों का कहना है कि इस अच्छी बारिश के कारण क्षेत्र में भूजल स्तर काफी ऊपर आ गया है, इससे सिंचाई करने में दिक्कत नहीं आती।

एक और किसान राम दुधाते ने बताया, ‘यदि उपज की कीमतों को हटा दें तो इस वर्ष चीजें बेहतर हैं, लेकिन पीने के पानी का संकट अभी भी बना हुआ है। गांव में 15 दिन में एक बार पानी आता है। ग्रामीण पेयजल के लिए पूरी तरह टैंकर पर निर्भर हैं।’

नाशिक को अंगूर की खेती के लिए भी जाना जाता है। यहां के अंगूर उत्पादक कुशल श्रमिकों की कमी से जूझ रहे हैं। पिछले कुछ वर्षों में यहां कई अंगूर किसानों को करोड़ों रुपये का नुकसान हुआ है।

नाशिक के पास सुकेना के अंगूर किसान शशिकांत मोगुल कहते हैं, ‘लॉकडाउन के दौरान अंगूर के निर्यात पर पाबंदी लगा दी गई थी। इसके बाद बांग्लादेश जैसे देशों के लिए फलों पर आयात शुल्क बढ़ा दिया गया। इसके अलावा पिछले साल असमय बारिश ने उनकी फसल खराब कर दी। सरकार ने उनकी समस्याओं को दूर करने की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया।’

ये मुश्किलें कुछ कम नहीं थीं। इनके साथ रही-सही कसर इस साल श्रमिकों की कमी ने पूरी कर दी। राज्य सरकार की लाडकी बहिन योजना के तहत 1,500 रुपये मिलने के कारण श्रमिक वर्ग खेतों में काम करने से कतराने लगा।

अंकुश पाटिल ने कहा, ‘खेतिहर मजदूरों को जगह और काम के हिसाब से 300 से 500 रुपये तक प्रति दिन मेहनताना मिलता है। हमने ऐसे भी किसान देखे हैं जो मध्य प्रदेश जैसे पड़ोसी राज्यों से मजदूर लाने के लिए ठेकेदारों की मनुहार कर रहे हैं।’

First Published : November 19, 2024 | 10:28 PM IST