साल 1974 की बात है जब भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलूर के गलियारे में नोटिस बोर्ड पर टेल्को (अब टाटा मोटर्स) में नौकरी का एक नोटिस लगा था। उस नोटिस पर साफ लिखा था – ‘महिला उम्मीदवार आवेदन न करें’। उस समय वहां कंप्यूटर साइंस में स्नातकोत्तर कर रहीं सुधा मूर्ति ने इससे नाखुश होकर जेआरडी टाटा को पोस्टकार्ड पर चिट्ठी लिखी और महिला-पुरुष भेदभाव पर हैरानी जताई थी। इसके बाद मूर्ति कंपनी के शॉप फ्लोर (जहां गाड़ियां तैयार होती हैं) पर काम करने वाली पहली महिला कर्मचारी बनीं।
करीब 15 दशक बाद टाटा मोटर्स में कुल कर्मचारियों में महिलाओं की भागीदारी 13 फीसदी है और उसके शॉप फ्लोर पर 23 फीसदी महिलाएं ही हैं। टाटा मोटर्स ने भविष्य में शॉप फ्लोर पर काम करने वाले कर्मचारियों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाकर 25 फीसदी करने का लक्ष्य रखा है।
विनिर्माण क्षेत्र में टाटा मोटर्स अकेली कंपनी नहीं है जहां कर्मचारियों की कुल संख्या में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ी है। लगभग सभी उद्योगों में महिला-पुरुष में विविधता लाने का प्रयास बढ़ रहा है। डेलॉयट की ब्लू कॉलर वर्कफोर्स ट्रेंड रिपोर्ट 2023 से पता चलता है कि इस समय इन कामगारों में महिलाओं की भागीदारी करीब 8 फीसदी है, जो कुछ दशक पहले 2 फीसदी से भी कम थी।
लाइफ साइंस, वाहन और इंजीनियरिंग डिजाइन जैसे क्षेत्रों में महिला कर्मचारियों की भागीदारी ज्यादा है। दिलचस्प है कि इन क्षेत्रों में ऑटोमेशन की उच्च दक्षता, कुशलता की जरूरत होती है और वेतन भी बढ़िया मिलता है। अध्ययन में 104 संगठनों और 300 से ज्यादा विनिर्माण इकाइयों को शामिल किया गया है।
टाटा स्टील जमशेदपुर में इंजीनियरिंग प्लांट इलेक्ट्रिक्स में 38 साल उम्र की एरिया मैनेजर सोनी सिंह उन 12 महिलाओं में शामिल हैं, जिन्हें 2001 में 120 लोगों के बैच में चुना गया था। टाटा स्टील में ट्रेड प्रशिक्षु का यह पहला बैच था, जिसमें महिलाओं को चुना गया था। पिछले कुछ वर्षों में कंपनी में महिलाओं की नियुक्तियां 45 से 50 फीसदी बढ़ी है।
सोनी कंपनी के विभिन्न विभागों में काम कर चुकी हैं। उन्होंने बताया, ‘अब मैं डिजाइनिंग की भूमिका में हूं, जहां संयंत्रों को उत्पादन के लिए डिजाइन किया जाता है।’
स्टील कारखाने का माहौल काफी चुनौती भरा होता है क्योंकि वहां बेहद गर्मी और धूल होती है। लेकिन महिला कर्मचारियों ने यहां भी अपना लोहा मनवाया है। टाटा स्टील इंडिया के 36,000 कर्मचारियों में सिंतबर 2023 तक शॉप फ्लोर पर काम करने वाली महिलाओं की हिस्सेदारी 7.5 फीसदी थी।
कंपनी अब जमशेदपुर में ‘पिंक’ कोयला भट्ठी वाली बैटरी इकाई की योजना बना रही है, जिसे पूरी तरह महिलाएं ही चलाएंगी।
इसी तरह जेएसडब्ल्यू स्टील के कारखानों में कुछ उत्पादन लाइनों का जिम्मा महिलाएं संभाल रही हैं। कर्नाटक के विजयनगर में कॉइल-टू-प्लेट और शीट प्रसंस्करण लाइन महिलाएं ही चलाती हैं। महाराष्ट्र के वासिंद में नई कोल्ड रोलिंग मिल और दो स्टील कोटिंग लाइन का ज्यादातर काम महिला कर्मचारियों के हाथों में ही है। जेएसडब्ल्यू स्टील के कुल श्रमबल में इस समय महिलाओं की हिस्सेदारी 6 फीसदी है और कंपनी की योजना 2030 तक इनकी भागीदारी बढ़ाकर 15 फीसदी तक करने की है।
अन्य कंपनियां भी पीछे नहीं हैं। आर्सेलरमित्तल निप्पॉन स्टील इंडिया ने बीते 4 साल में शॉप फ्लोर पर महिला कर्मचारियों की संख्या दोगुनी कर ली है। मगर कंपनी के मुख्य मानव संसाधन अधिकारी आशुतोष तैलंग कहते हैं कि अभी इस दिशा में काफी कुछ किया जाना है।
2 अरब डॉलर की वाहन कलपुर्जा विनिर्माता आनंद ग्रुप में 1,700 महिलाएं शॉप फ्लोर पर काम कर रही हैं, जो कंपनी के कुल श्रमबल का 20 फीसदी हिस्सेदारी है।
आनंद ग्रुप की योजना 2025 तक इनकी संख्या बढ़ाकर 30 फीसदी करने की है। कुछ इकाइयों में तो महिला कर्मचारी 70 से 100 फीसदी तक हैं। वाणिज्यिक वाहन बनाने वाली अशोक लीलैंड ने अपने होसुर कारखाने में एक उत्पादन लाइन पूरी तरह महिलाओं के हाथ में दे दी है। ओला इलेक्ट्रिक की फ्यूचर फैक्टरी में केवल महिलाएं काम करती हैं।
ऐपल इंक के लिए ठेके पर आईफोन बनाने वाली कंपनी फॉक्सकॉन, पेगाट्रॉन और विस्ट्रॉन तथा कलपुर्जा कंपनी सालकॉम्प भारत में सबसे ज्यादा महिलाओं को काम पर रखने वाले ब्रांड में शुमार हैं। इसी प्रकार आईटीसी की कर्नाटक, तमिलनाडु और तेलंगाना इकाइयों के एकीकृत उपभोक्ता वस्तु विनिर्माण एवं लॉजिस्टिक्स कारखाने (आईसीएमएल) में 50 से 75 फीसदी कर्मचारी महिला ही हैं।
सीआईईएल एचआर के प्रबंध निदेशक एवं सीईओ आदित्य नारायण मिश्र के अनुसार उनकी कंपनी द्वारा तमिलनाडु एवं कर्नाटक की 131 कंपनियों के बीच कराए गए एक अध्ययन से पता चलता है कि शॉप फ्लोर में महिला कर्मचारियों की संख्या 2022 के मुकाबले 2023 में करीब 26 फीसदी बढ़ गई। पुरुषों के वर्चस्व वाले रेल क्षेत्र में वेबटेक कॉरपोरेशन (पूर्व में जीई ट्रांसपोर्टेशन) ने हाल में अपने शॉप फ्लोर पर महिलाओं के लिए पिंक लाइन की शुरुआत की है। कंपनी की वरिष्ठ उपाध्यक्ष एवं भारतीय क्षेत्र की प्रमुख सुजाता नारायण ने कहा, ‘हमने अपने शॉप फ्लोर पर ह्वाइट कॉलर गतिविधियों एवं इंजीनियरिंग टीम में 20 फीसदी से अधिक महिलाओं का लक्ष्य रखा है।’
कंपनियां तमाम कारणों से अपने कार्यबल में स्त्री-पुरुष अनुपात को बेहतर करने पर ध्यान दे रही हैं। टाटा स्टील की मुख्य विविधता अधिकारी और मुख्य लर्निंग एवं विकास अधिकारी जया सिंह पांडा ने कहा, ‘अगर आप विभिन्न उद्योगों के कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी नहीं बढ़ाएंगे तो बड़ी तादाद में प्रतिभाएं बाहर रह जाएंगी। इससे आर्थिक वृद्धि भी प्रभावित होगी।’
आनंद ग्रुप के समूह अध्यक्ष एवं मुख्य वित्तीय अधिकारी जगदीश कुमार ने कहा, ‘महिलाओं को नियुक्त करने के कई फायदे हैं। पहला फायदा यही है कि कर्मचारियों द्वारा कंपनी छोड़ने की दर कम रहेगी।’
अशोक लीलैंड के अध्यक्ष एवं मानव संसाधन प्रमुख राजा राधाकृष्णन का मानना है कि शॉप फ्लोर पर अधिक महिला कर्मचारी होने से समावेश बढ़ता है और सकारात्मक एवं उत्पादक माहौल भी तैयार होता है।
आईटीसी के कॉरपोरेट मानव संसाधन प्रमुख अमिताभ मुखर्जी ने कहा कि उनकी कंपनी महिला कर्मचारियों की नियमितता, कुशलता और अनुशासन को देखते हुए उन पर बड़ा दांव लगा रही है।
महिलाओं के लिए शॉप फ्लोर तक पहुंचने का सफर अक्सर आसान नहीं होता। टाटा मोटर्स के ट्रिम, शैसि ऐंड फाइनल (टीसीएफ) विभाग में काम करने वाली 22 साल की वैष्णवी सुधाकर वाकाले ने कहा कि उनके गांव की महिलाओं के लिए काम के वास्ते बाहर निकलना आसान नहीं है। टाटा मोटर्स के उपाध्यक्ष (मानव संसाधन, यात्री वाहन एवं इलेक्ट्रिक वाहन) सीताराम खांडी ने कहा कि पारंपरिक तौर पर पुरुषों के काम में महिलाओं की सफलता उन्हें सशक्तिकरण का अनोखा एहसास देता है।