भारत ने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) नीति में संशोधन करके अंतरिक्ष क्षेत्र को उदार बनाने का फैसला किया है। उद्योग जगत के सूत्रों का कहना है कि मंत्रिमंडल के बुधवार के फैसले से भारतीय अंतरिक्ष उद्योग के सभी उपक्षेत्रों जैसे सैटेलाइट विनिर्माण, लॉन्च व्हीकल्स, ग्राउंड सेग्मेंट सॉल्यूशंस और इससे जुड़ी सेवाओं में अगले 3 से 5 साल के दौरान 4 से 5 अरब डॉलर निवेश आने की संभावना है।
भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र में काम कर रही कंपनियों के मुताबिक इस कदम से सैटेलाइट और लॉन्च व्हीकल के कारोबार में स्पेस ऐक्स, वर्जिन गैलेक्टिक, स्टारलिंक, एमेजॉन ब्लू ओरिजिन, एयरबस डिफेंस ऐंड स्पेस, रॉकेटलैब, मैक्सर टेक्नोलॉजिज और यूटेलसेट-वन वेब सहित अन्य वैश्विक दिग्गजों के लिए भी द्वार खुल सकते हैं, जो लागत के अनुकूल भारतीय बाजार में संभावनाएं देख रही हैं।
बुधवार को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सैटेलाइट के लिए सिस्टम्स या सब सिस्टम्स और कंपोनेंट्स के विनिर्माण में 100 फीसदी एफडीआई की नीति को मंजूरी दे दी। वहीं दूसरी तरफ सैटेलाइट मैन्युफैक्चरिंग और ऑपरेशन, सैटेलाइट डेटा प्रोडक्ट्स, ग्राउंड सेग्मेंट और यूजर सेग्मेंट में 74 फीसदी एफडीआई को मंजूरी दी है। इन गतिविधियों में 74 फीसदी से ऊपर निवेश सरकार के माध्यम से होता है।
इसके साथ लॉन्च व्हीकल और एसोसिएटेड सिस्टम्स के विकास और स्पेसक्राफ्ट लॉन्चिंग व रिसीविंग के लिए स्पेसस्पोर्ट्स के सृजन में ऑटोमेटिक रूट से एफडीआई की सीमा 49 फीसदी तय की गई है।
इंडियन स्पेस एसोसिएशन के डायरेक्टर जनरल एके भट्ट ने कहा, ‘अगर मौद्रिक अनुमानों की बात करें तो निवेश की सही राशि के बारे में भविष्यवाणी करना कठिन है। लेकिन नई एफडीआई नीति से अगले 3 से 5 साल में उल्लेखनीय निवेश की उम्मीद है। हमारा अनुमान है कि भारत के अंतरिक्ष उद्योग के सभी उपक्षेत्रों जैसे सैटेलाइट विनिर्माण, लॉन्च व्हीकल, ग्राउंड सेग्मेंट सॉल्यूशंस और इससे जुड़ी सेवाओं में अगले 3 से 5 साल के दौरान 4 से 5 अरब डॉलर निवेश आ सकता है।’
इन स्पेस (द इंडियन नैशनल स्पेस प्रमोशन ऐंड ऑथराइजेशन सेंटर) के मुताबिक इसरो की वाणिज्यिक इकाई, जिसमें कई स्टार्टअप शामिल हैं, के साथ भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था 2033 तक मौजूदा 8.4 अरब डॉलर से बढ़कर 44 अरब डॉलर की हो जाएगी।
वर्ष 2023 में लॉन्च किए गए निजी क्षेत्र द्वारा विकसित पहले रॉकेट विक्रम-ए को बनाने वाली स्काईरूट एरोस्पेस के सह संस्थापक पवन कुमार चंदाना ने कहा कि इससे अंतरिक्ष क्षेत्र के सभी उपक्षेत्रों में निवेश को बढ़ावा मिलेगा।