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स्थानीय व वैश्विक खींचतान में फंसा रुपया

Last Updated- December 12, 2022 | 2:37 AM IST

भारतीय रुपये के कारोबार को कम उतार-चढ़ाव वाला और स्थिर बनाए रखने में दो विपरीत ताकतें काम कर रही हैं। मुद्रा पर नजर रखने वालों का कहना है कि यह स्थिति कुछ और वक्त तक बनी रह सकती है। जोमैटो के आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) में विदेशी मुद्रा लगाई गई और अब बड़ी कंपनियों के आईपीओ आने को हैं।
लेकिन अमेरिकी डॉलर भी उभरते बाजारों की मुद्राओं की तुलना में मजबूती हासिल कर रहा है। फेडरल रिजर्व ने 2022 तक कम से कम दो बढ़ोतरी के संकेत दिए हैं, उसके बाद ऐसी स्थिति बनी है। साथ ही कोविड संक्रमण नए सिरे से बढऩे के कारण भी वैश्विक जोखिम बना हुआ है।
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के सामने दुविधा की स्थिति है। रिजर्व बैंक अगर डॉलर के प्रवाह के साथ रुपये को मजबूत होने देता है, जबकि अन्य प्रतिस्पर्धी इसमें कमी कर रहे हैं, भारत के निर्यात की प्रतिस्पर्धा प्रभावित होगी। लेकिन जून के बाद से रुपया तेजी से गिरा है और यह अनुमान है कि मुद्रा 76 को छू जाएगी। यह स्तर भी एशियाई देशों की मुद्राओं में गिरावट के मुताबिक ही है। लेकिन स्थानीय मुद्रा के कमजोर होने से निश्चित रूप से मौजूदा निवेश बाहर जाएगा, क्योंकि निवेशक अपनी स्थानीय कमाई का कम प्रत्यावर्तन करने में सक्षम होगा।
ऐसे में रिजर्व बैंक का जोर संतुलन बनाए रखने पर होने की संभावना है। इसे ध्यान में रखते हुए केंद्रीय बैंक ने पिछले कुछ दिनों में बाजार में हस्तक्षेप की ओर कदम बढ़ाया है।
मुद्रा सलाहकार मेकलई फाइनैंशियल के वाइस प्रेसीडेंट इमरान काजी ने कहा, ‘रिजर्व बैंक हाजिर बाजार से डॉलर खरीद रहा था और रुपये जारी कर रहा था। इस अतिरिक्त नकदी से निश्चित रूप से रुपया बहुत मजबूत नहीं होने पाएगा।’ उन्हें यह भी उम्मीद है कि विदेशी मुद्रा का प्रवाह जारी रहेगा क्योंकि कई आईपीओ आने वाले हैं।
इस समय दो विरोधी ताकतें काम कर रही हैं।
अमेरिकी फेडरल रिजर्व के ‘डॉट प्लॉट’ संकेत देते हैं कि 2022 के अंत तक दरों में कम से कम दो बढ़ोतरी हो सकती है। संक्रमण नए सिरे से बढऩे की आशंका ने भी जोखिम टालने की धारणा बढ़ाई है। जून के मध्य से एशियाई मुद्राएं कमजोर हुई हैं, जब अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने समावेशी नीतियों को धीरे धीरे खत्म करने के अपने रुख की घोषणा की। फेड प्रमुख जेरोम पॉवेल उसके बाद से सुस्त हए हैं, लेकिन मुद्राओं ने वापसी नहीं की। 9 जून को रुपया करीब 73 डॉलर पर था, जो 17 जून को 74 डॉलर के पार चला गया। शुक्रवार को स्थानीय मुद्रा 74.56 रुपये प्रति डॉलर पर बंद हुई।
लेकिन आईपीओ से रुपये की मजबूती को लेकर विपरीत दबाव पड़ सकता है। रिजर्व बैंक चाहेगा कि प्रवाह बढ़े और उसका भंडार आगे और बढ़े, जैसा कि गवर्नर शक्तिकांत दास का मानना है कि उभरते बाजारों के लिए मुद्रा भंडार बेहतरीन सुरक्षा कवच है।
पिछले साल भारत में पूंजी प्रवाह मजबूत रहा है। 2020-21 में शुद्ध विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (एफपीआई) का प्रवाह 36.18 अरब डॉलर रहा। इस वित्त वर्ष में अब तक मजबूत प्रवाह डेट आउटफ्लो के कारण प्रभावित हुआ है। इसके बावजूद कुल मिलाकर शुद्ध प्रवाह 13.7 करोड़ डॉलर रहा है। 2020-21 में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) 81.72 अरब डॉलर के उच्च स्तर पर रहा है। इसे भारतीय रिजर्व बैंक ने अवशोषित कर लिया, जिसकी वजह से भंडार 100 अरब डॉलर बढ़कर रिकॉर्ड 611 अरब डॉलर से ज्यादा हो गया।
स्थानीय मुद्रा में और गिरावट आ सकती है और विश्लेषकों का अनुमान लगाया था कि यह 76 डॉलर पर पहुंच सकती है। लेकिन जब एंट ग्रुप समर्थित जोमैटो ने अपनी आईपीओ योजना की घोषणा की तो डॉलर कमजोर होने लगा। इस आईपीओ को 38 गुना ज्यादा अभिदान मिला। पात्र संस्थागत खरीदारों की बोली उनके लिए आरक्षित कोटे से 50 गुने से ज्यादा अधिक थी।
अतिरिक्त धन अब वापस जाएगा, जिससे विनिमय दर पर कुछ दबाव बनेगा। लेकिन कंपनियां नए आईपीओ के साथ वापस आ रही हैं। जुलाई और अगस्त में पेप्सिको-बॉटलर देवयानी इंटरनैशनल, पारस डिफेंस ऐंड स्पेस टेक्नोलॉजिज, गो एयरलाइंस, सेवन आइलैंड्स शिपिंग, आधार हाउसिंग और ईएसएएफ एसएफबी के अलावा अन्य के आईपीओ आने वाले हैं। आने वाले महीनों में स्टार हेल्थ, भारतीय जीवन बीमा निगम के कुछ बड़े आईपीओ आने वाले हैं। करेंसी डीलरों का कहना है कि ये आईपीओ बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा आकर्षित करना जारी रखेंगे और रुपये को बेहतर समर्थन मिलता रहेगा।
सीआर फॉरेक्स के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्याधिकारी अमित पबारी ने कहा, ‘अगर रिजर्व बैंक उतार चढ़ाव कम करने में अपनी भूमिका जारी रखती है तो डॉलर-रुपये में किसी तरह की गिरावट आयातकों की खरीद से प्रभावित होगी। निर्यातकों के मामले में बिकवाली की स्थिति रहेगी।’
आईएफए ग्लोबल के एमडी और सीईओ अभिषेक गोयनका ने कहा, ‘आने वाले सप्ताह में डॉलर में गिरावट सीमित रहने की संभावना है।’
गोयनका ने कहा, ‘एशिया के दिग्गजों की तुलना में रुपये में मजबूती बनी रह सकती है क्योंकि भारत भारत कारोबार के लिए तरजीही केंद्र बना हुआ है और कोविड की स्थिति अब पहले की तरह खतरनाक नहीं है।’

First Published - July 18, 2021 | 11:34 PM IST

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