देश में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) लागू हुए पूरे सात साल हो चुके हैं। राज्यों और केंद्र के परोक्ष करों में एकरूपता लाने के लिए देशभर में जीएसटी की व्यवस्था 1 जुलाई, 2017 को लागू हुई थी। वित्त वर्ष 2023-24 में जीएसटी राजस्व संग्रह रिकॉर्ड 20.2 लाख करोड़ रुपये दर्ज किया गया। भारतीय अर्थव्यवस्था निगरानी केंद्र (सीएमआईई) एवं सरकार की विज्ञप्ति के अनुसार जीएसटी राजस्व में 10 फीसदी की वृद्धि हुई, लेकिन इसके बढ़ने की गति पहले के मुकाबले कम हो गई।
देश में 1 अप्रैल, 2018 से इलेक्ट्रॉनिक वे (ई-वे) बिल की व्यवस्था लाई गई। उसके बाद से राज्य के भीतर या एक राज्य से दूसरे राज्य के आधार पर ई-वे बिल काटे जाने की संख्या लगातार बढ़ रही है। जीएसटी राजस्व बढ़ने की एक वजह यह भी रही।
वित्तीय वर्ष 2022 में सेस यानी उपकर संग्रह एक लाख करोड़ रुपये से अधिक था। उसके बाद से यह लगातार बढ़ रहा है। चाहे केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर (सीजीएसटी) हो या राज्य वस्तु एवं सेवा कर (एसजीएसटी), दोनों में ही अलग-अलग दर से सालाना वृद्धि हो रही है। दोनों करों में वृद्धि की दर में भिन्नता का एक कारण दोनों करों की संग्रह आवृत्ति हो सकती है। राज्य जीएसटी का संग्रह उस हिसाब से नहीं बढ़ा है, जितनी तेज गति से केंद्रीय संग्रह में वृद्धि देखने को मिली है।
बिज़नेस स्टैंडर्ड ने पहले बताया था कि वित्तीय वर्ष 2024 में जीएसटी संग्रह जीडीपी का 3.25 फीसदी दर्ज किया गया। यह वित्त वर्ष 2019 से 3.08 फीसदी अधिक है। जीएसटी संग्रह में उछाल की प्रवृत्ति वित्त वर्ष 2022 में के 1.6 फीसदी से घटकर 2024 में 1.3 फीसदी रही। जीएसटी में अधिक उछाल इस बात की ओर संकेत करता है कि जीएसटी प्राप्ति जीडीपी के मुकाबले अधिक तेजी से बढ़ रही है।
क्रिसिल की रिपोर्ट में कहा गया है कि महाराष्ट्र, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश ऐसे राज्य रहे, जहां से सबसे अधिक जीएसटी आया। लेकिन, जब आबादी के हिसाब से इसे देखा जाए तो अन्य राज्यों ने भी बेहतर प्रदर्शन किया। एजेंसी के अनुसार इससे ग्राहकों की क्रय शक्ति के साथ-साथ खपत पैटर्न का भी पता चलता है।
खपत वाली अधिकांश वस्तुओं पर कम जीएसटी लगता है अथवा कहीं-कहीं यह बिल्कुल नहीं लगता। फिलहाल 3 फीसदी से भी खपत वाले उत्पादों पर कर की उच्च दर (28 फीसदी) है।