भारतीय रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर टी रविशंकर ने बिज़नेस स्टैंडर्ड के सलाहकार संपादक तमाल बंद्योपाध्याय से बातचीत में कहा कि अमेरिकी चुनाव परिणाम के बाद की स्थिति में विनिमय दर में किसी भी तरह के अतिरिक्त उतार चढ़ाव को नियंत्रित करने को लेकर भारत पर्याप्त सक्षम है। संपादित अंश….
अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव परिणाम का क्या असर होगा?
सरकार बदलने पर ज्यादातर बाजारों में हम कम अवधि का उतार चढ़ाव देख रहे हैं, क्योंकि अमेरिका विश्व की सबसे ताकवर और सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश है। इससे बाजार में कम अवधि के उतार चढ़ाव हो सकते हैं। व्यापक असर शुल्क और राजकोषीयय रणनीतियों को लेकर अमेरिका की नीति और भूराजनीतिक प्रगति पर निर्भर होगा। ऐसे में यह कहना बहुत कठिन है कि किस तरह से चीजें चलेंगी और मध्यावधि के हिसाब से बाजारों पर उसका क्या असर होगा।
भारत की आर्थिक बुनियाद और विदेशी मुद्रा भंडार की स्थिति ऐसी है कि देश मुद्रा संबंधी किसी अस्थिरता के प्रबंधन के मामले में मजबूत स्थिति में है। अगर हम भंडार, बैंकिंग व्यवस्था की सेहत और अर्थव्यवस्था के हिसाब से देखें तो हम बेहतर स्थिति में हैं।
यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (यूपीआई) का क्या भविष्य है?
यह भुगतान का ऐसा साधन है, जिसने कुशलता और डिजिटल लेनदेन, खुदरा और कारोबारी स्वीकार्यता के के मामले में दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा है। हर महीने यूपीआई से लेनदेन की संख्या बढ़ रही है। रोजाना 53.5 करोड़ लेनदेन हो रहा है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि इस स्तर की वृद्धि बनी रहे। भारत में यूनीफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (यूपीआई) व्यापक रूप से स्वीकार्य डिजिटल पेमेंट प्लेटफॉर्म बन चुका है और यह तेजी से अंतरराष्ट्रीय पहचान बना रहा है।
ऑफलाइन उपभोक्ताओं और फीचर फोन यूजर्स तक इसकी पहुंच बढ़ने की उम्मीद है। रिजर्व बैंक यूपीआई को अन्य देशों के साथ जोड़ने पर सक्रियता से काम कर रहा है, जिससे इसकी वैश्विक स्वीकार्यता बन सके।
क्या यूपीआई की स्वीकार्यता बढ़ने से अर्थव्यवस्था में मुद्रा के चलन (सीआईसी) में कमी आई है?
यूपीआई की वृद्धि से अब तक कुल मिलाकर मुद्रा का चलन कम नहीं हुआ है। प्रचलन में नोट की वृद्धि पहले दर पहले से सुस्त हुई है। यह अनुमान लगाना आसान है कि कि यूपीआई लेनदेन बढ़ने से सीआईसी कम हो जाएगा, लेकिन कोई धन सिर्फ लेनदेन के लिए नहीं इस्तेमाल करता, बल्कि इसे निधि के रूप में रखा जाता है।
यूपीआई में कई तरह की धोखाधड़ी हो रही है…
प्रति लेनदेन के हिसाब से धोखाधड़ी की घटनाओं के मामले कम हो रहे हैं। धोखाधड़ी कम करने के लिए लोगों की जागरूकता और डिजिटल स्वच्छता की जरूरत है। रिजर्व बैंक धोखाधड़ी की रोकथाम के कदमों को मजबूती देने और लेनदेन संबंधी सुरक्षा बढ़ाने के लिए तकनीकी समाधान की संभावनाएं तलाश रहा है।
वित्तीय क्षेत्र में एआई की बढ़ती स्वीकार्यता पर आपकी क्या राय है?
वित्तीय क्षेत्र में आर्टीफिशल इंटेलिजेंस (एआई) बदलाव लाने वाली तकनीक है जो मानवीय प्रयासों का स्थान ले सकती है। तेजी से बढ़ती एआई की स्वीकार्यता को देखते हुए सावधानी बरतने और इसे लागू करने के लिए सैंडबॉक्स अप्रोच अपनाने की जरूरत है।
क्या रिजर्व बैंक फिनटेक को विनियमित कर सकता है?
यदि फिनटेक वित्तीय संस्थाएं हैं और फंडों से संबंधित कार्य करती हैं, तो उन्हें विनियमित किया जाएगा। रिजर्व बैंक उधारी देने में लगी फिनटेक की प्राथमिक रूप से निगरानी करता है।
सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (सीबीडीसी) को लागू करने के हम कितने नजदीक हैं?
सीबीडीसी को प्रायोगिक रूप से पेश किया गया है, इसकी वजह है। हम देखना चाहते थे कि सीबीडीसी को पेश करने के लिए कौन सी तनकीक बेहतर है। इसके लिए हमारे पास कोई वैश्विक मानक नहीं है। रिजर्व बैंक मुद्रा के नए रूप में सीबीडीसी की भूमिका समझने को प्रतिबद्ध है। इसमें डिजिटल और फिजिकल दोनों ही मुद्राओं के लाभ हैं, जो इसे भविष्य के लिए महत्त्वपूर्ण साधन बना रहा है।
ऋण देने में यूएलआई कैसे काम करेगा?
भारत में सार्वजनिक क्षेत्र में बुनियादी ढांचे का निर्माण किया जाता है। निजी क्षेत्र को लोकतांत्रिक तरीके से इसकी पहुंच मुहैया कराई जाती है, जिससे यूपीआई जैसे उत्पादों के साथ वे नवोन्मेष कर सकें। इसी तरह यूएलआई के बारे में सोचा जा रहा है।
यूरोपीय प्रतिभूति एवं बाजार प्राधिकरण (ईएसएमए) के मुद्दे पर हम कहां हैं?
रिजर्व बैंक ने बहुत ही सुसंगत रुख अपनाया है। ईएसएमए हमें यह बताने में अतिरिक्त अधिकार क्षेत्र दिखा रहा है कि हमें किस तरह से विनियमन करना चाहिए। हम उनकी बात मानने को तैयार हैं,अगर वे नियामक के रूप पर हम पर भरोसा करते हैं। वे संभवतः अपने कानून को लेकर दृढ़ हैं। वह कानून अपने आप में अधिकार क्षेत्र से बाहर है। इस पर चर्चा चल रही है।
नीति निर्माण की संप्रभुता से समझौता किए बिना इस पर सहमत होना संभव नहीं है। अब मुद्दा यह है कि 2 साल पहले की समयसीमा बीत चुकी है। यूरोपीय देशों के नियामकों ने उन्हें इस साल अक्टूबर तक का समय दिया था। इसलिए अब कोई विशिष्ट समयसीमा नहीं है।