ओपेक+ देशों से तेल उत्पादन में संभावित कटौती का असर भारत में नहीं पड़ेगा। अधिकारियों ने यह जानकारी दी। उन्होंने कहा कि क्योंकि अभी दुनियाभर में तेल की मांग काफी कम है और रूसी कच्चे तेल पर भी छूट जारी है। नतीजतन, भारत में तेल का उत्पादन लघु से मध्यावधि में इष्टतम रहेगा।
ओपेक+ देश अगले तीन महीनों की नीति तैयार करने के लिए गुरुवार को बैठक करेंगे। इसमें उत्पादन में कटौती पर चर्चा होने की संभावना है। सऊदी अरब फिलहाल हर दिन 10 लाख बैरल (बीपीडी) उत्पादन कम कर रहा है और रूस ने साल के अंत तक 3 लाख बीपीडी की निर्यात कटौती की है।
तेल की वैश्विक मांग में गिरावट के कारण तेल उत्पादक देश चिंतिंत हैं। हालांकि, ओपेक ने मौजूदा साल के अंतिम महीनों में तेल की मांग स्थिर रहने का पूर्वानुमान जताया था मगर गिरावट की गति तेज हो गई है। अक्टूबर में अमेरिका में सात महीनों में पहली बार खुदरा बिक्री कम हो गई क्योंकि वाहनों की खरीदारी में कमी आई।
आधिकारिक आंकड़े दर्शाते हैं कि इस बीच चीन में कच्चे तेल की उत्पादन क्षमता अक्टूबर में 2.8 फीसदी कम होकर सितंबर के रिकॉर्ड उच्च स्तर से 1.51 करोड़ बीपीडी के बराबर हो गई। अधिकारियों को उम्मीद है कि कम मांग से भी कीमतें नियंत्रित रहेंगी। खबर लिखे जाने तक कच्चे तेल की कीमतें 82.5 डॉलर प्रति बैरल थीं, जो सितंबर के 94.3 डॉलर से कम थी।
अधिकारियों ने यह भी बताया कि भारतीय रिफाइनिंग कंपनियां मौजूदा रियायती दरों पर निर्बाध कच्चे तेल की आपूर्ति के लिए भी आश्वस्त हैं। एक सरकारी रिफाइनरी कंपनी के अधिकारी का कहना है, ‘2023 के बीच में रूसी कच्चे तेल पर छूट कम हो गई थी मगर हाल के महीनों में इसमें सुधार हुआ है। हमें ऐसा नहीं लगता है कि अभी छूट कम होगी।’ छूट का स्तर फिलहाल 9 से 10 डॉलर प्रति बैरल है।
आयात का अनुमान लगाने के लिए जहाज की आवाजाही पर नजर रखने वाली लंदन की वोर्टेक्सा के अनुमान से पता चलता है कि सितंबर तक भारत के आयात में रूसी कच्चे तेल की हिस्सेदारी 38 फीसदी पर बरकरार है। यह इसके ऐतिहासिक उच्च 42 फीसदी से कम है।
इसके और बढ़ने की उम्मीद है। अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों से प्रभावित होने के बाद रूस ने डॉलर में भुगतान की मांग की थी। इससे भारतीय रिफाइनरी कंपनियों को डॉलर के अलावा अन्य मुद्राओं में भुगतान करना मुश्किल हो रहा था। अधिकारी ने कहा लेकिन अब संयुक्त अरब अमीरात दिरहम के व्यापक प्रसार के कारण यह मुद्दा काफी हद तक कम हो गया है।
जुलाई में दोनों देशों ने पहली बार उत्पादन में कटौती की घोषणा की थी। इससे पंप पर कीमतें बढ़ गईं। रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध बढ़ गया और महंगाई कम करने के वैश्विक प्रयास जटिल हो गए।
सऊदी अरब, ईरान, इराक और वेनेजुएला जैसे 13 प्रमुख तेल उत्पादक देशों के एक अंतरसरकारी संगठन ओपेक को अर्थशास्त्रियों द्वारा ‘कार्टेल’ कहा गया है। 2018 तक सदस्य देशों का वैश्विक तेल उत्पादन में अनुमानित 44 फीसदी और दुनिया के ‘सिद्ध’ तेल भंडार का 81.5 फीसदी हिस्सा था।