भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) को उम्मीद है कि वित्त वर्ष 2022-23 में औसतन 6.7 फीसदी रहने के बाद खुदरा मुद्रास्फीति चालू वित्त वर्ष में और घट सकती है क्योंकि वैश्विक स्तर पर जिंसों तथा खाद्य पदार्थों के दाम में नरमी रहने और लागत कम होने की संभावना है।
केंद्रीय बैंक ने 2022-23 के लिए आज जारी अपनी सालाना रिपोर्ट में कहा कि मुद्रास्फीति का दबाव कम होने से वित्त वर्ष 2023-24 में अर्थव्यवस्था की वृद्धि की रफ्तार भी बनी रह सकती है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि मई 2022 और फरवरी 2023 के बीच रीपो दर में 250 आधार अंक इजाफे से महंगाई नीचे आएगी और खाद्य तथा ऊर्जा में बाधा से पैदा मांग-आपूर्ति का अंतर दर करने के लिए आपूर्ति के उपाय भी तेज होंगे।
केंद्रीय बैंक ने अप्रैल की नीतिगत बैठक में रीपो दर नहीं बदली थी। मगर आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास ने जोर देकर कहा था कि यह विराम है, दर वृद्धि पर रको नहीं। इस तरह उन्होंने मौद्रिक नीति को और सख्त बनाने का विकल्प खुला रखा है।
आरबीआई की रिपोर्ट कहती है, ‘अल नीनो नहीं होता है तो स्थिर विनिमय दर और सामान्य मॉनसून से वित्त वर्ष 2023-24 मुद्रास्फीति घटने की उम्मीद है तथा मुख्य मुद्रास्फीति पिछले साल के 6.7 फीसदी के औसत स्तर से घटकर 5.2 फीसदी रह सकती है। मौद्रिक नीति का जोर राहत और रियायत वापस लेने पर ही रहेगा ताकि मुद्रास्फीति लक्ष्य की ओर आए और वृद्धि को भी सहारा मिले।’ मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की अगली बैठक 6 से 8 जून तक होनी है।
मार्च 2023 में केंद्रीय बैंक के उपभोक्ता विश्वास सर्वेक्षण से पता चलता है कि आम आर्थिक स्थिति और पारिवारिक आय के मामले में उपभोक्ताओं की उम्मीद और बढ़ी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि हाल के वर्षों में सरकार के पूंजीगत व्यय में लगातार बढ़ोतरी से 2023-24 में निजी निवेश तेज होने की उम्मीद है।
बाह्य क्षेत्रों पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए आरबीआई ने कहा कि सेवाओं का निर्यात बढ़ने और आयातित जिंसों के दाम घटने से चालू खाते का घाटा कम होने की उम्मीद है।
रिपोर्ट में कहा गया, ‘घरेलू वृद्धि की संभावना अच्छी होने, मुद्रास्फीति कम रहने और कारोबार के अनुकूल नीतिगत सुधार होने से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की आवक तेज बनी रह सकती है। साथ ही खाड़ी देशों में वृद्धि की संभावना बेहतर रहने से देश में बाहर से ज्यादा पैसे आने की भी संभावना है।’
वित्त वर्ष 2023 में एफडीआई कम होकर 28 अरब डॉलर रहा, जो उससे पिछले वित्त वर्ष में 38.6 अरब डॉलर था। रिपोर्ट में कहा गया कि 2022-23 में उधारी लागत बढ़ने के कारण बाह्य वाणिज्यिक उधारी के जरिये कम पूंजी जुटाई गई।
रिपोर्ट के अनुसार चुनौतीपूर्ण वैश्विक आर्थिक माहौल के बीच भी भारत का वृहद आर्थिक परिदृश्य और वित्तीय स्थिति स्थिर बने रहे तथा वृद्धि की गति भी लगातार बढ़ी है। वित्त वर्ष 2023 में देश की अर्थव्यवस्था 7 फीसदी की दर से बढ़ने की उम्मीद जताई गई है।