ऋणशोधन अक्षमता कानून समिति और मंत्रियों का एक समूह चार वर्ष पुरानी ऋणशोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता (आईबीसी) में विभिन्न संशोधन करने पर विचार कर रहे हैं जिनमें से कई संशोधन संसद के आगामी शीत शत्र में किए जा सकते हैं। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने बिजनेस स्टैंडर्ड को यह जानकारी दी है।
कारपोरेट मामलो के मंत्रालय द्वारा गठित समिति इस पर प्रमुखता से काम कर रही है। इन बदलावों में कॉर्पोरेट ऋणशोधन अक्षमता के लिए एक पूर्व नियोजित योजना, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) के लिए विशेष तंत्र और मामलों को स्वीकार करने और निपटाने में होने वाली देरी को कम करने के लिए उपाय शामिल हैं।
अधिकारी ने कहा, ‘संशोधन हमेशा जरूरत पर आधारित होते हैं और त्वरित कार्रवाई वाले मामलों में निर्णय लेना होता है। समिति मुद्दों पर अध्ययन कर रही है और शीघ्र वह इस पर सिफारिश करेगी। यह एक उभरता हुआ कानून है।’
अधिकारी के मुताबिक समिति उद्योग संघों और भारतीय दिवाला एवं शोधन अक्षमता बोर्ड (आईबीबीआई) से आने वाले सुझावों का मूल्यांकन कर रही है।
कारपोरेट मामलो के मंत्रालय ने विभिन्न उप समितियों का भी गठन किया है जिसका काम एमएसएमई के लिए ऋणशोधन अक्षमता की प्रक्रिया को आसान करने के लिए कानून बनाने में सहयोग करना और पूर्व नियोजित योजना की बारीकियों को बाहर लाना है।
दोनों योजनाओं को आईबीबीआई ने अंतिम रूप दिया है। पूर्व-नियोजित योजनाएं अमेरिका और ब्रिटेन में प्रचलित हैं। इसके तहत दिवालिया प्रक्रिया को शुरू करने से पहले दबावग्रस्त कंपनी और उसके लेनदारों का खरीदार के साथ एक करार किया जाता है।
एमएसएमई के लिए विशेष ऋणशोधन अक्षमता ढांचे में दिवालिया कर्जदार को समाधान हो जाने तक कंपनी का स्वामित्व अपने हाथ में रखने की अनुमति दी जा सकती है। हालांकि, सभी महत्त्वपूर्ण निर्णयों पर अंतिम फैसला लेनदारों की समिति लेगी।
मंत्रालय इनमें से कुछ संशोधनों को दिसंबर में संसद के शीत शत्र में पेश कर सकता है। वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘सर्वाधिक दबाव वाले मुद्दों के समाधान के लिए हमारे पास अभी भी नीति बनाने के लिए कुछ समय बचा है।’
उन्होंने यह भी कहा कि कुछ मुद्दों का समाधान प्रशासनिक कदम उठाकर किए जा सकते हैं जैसे कि राष्ट्रीय कंपनी विधि पंचाट (एनसीएलटी) के पीठों की संख्या बढ़ाना जबकि कुछ संशोधन के लिए आईबीसी कानून में संशोधन करने की जरूरत पड़ेगी।
समिति कॉर्पोरेट ऋणशोधन अक्षमता को शुरू करने से संबंधित प्रावधानों का निलंबन समाप्त होने के बाद उभरने वाली परिस्थितियों पर भी चर्चा कर रही है। फिलहाल, निलंबन दिसंबर में समाप्त होने के बाद ऋणदाता कानून को लागू नहीं कर सकते हैं। हालांकि, इसे मार्च तक बढ़ाया जा सकता है।
वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘हम परिस्थिति पर करीब से नजर बनाए हुएं हैं और समय आने पर इसमें विस्तार करने को लेकर निर्णय किया जा सकता है।’
समिति को जो कुछ सुझाव दिए जा रहे हैं उसमें दबावग्रस्त कंपनी को उन हिस्सों का समाधान करने की अनुमति देना है जो ऐसे हिस्सों का परिचालन जारी रख सकते हैं और उसे तरलता मुहैया करा सकते हैं जहां से कोई मूल्य हासिल होने की उम्मीद नहीं है। उद्योग के कई सदस्यों ने भी सरकार से ऋणस्थगन की अवधि को बढ़ाने की मांग की है जिन्हें फिलहाल एनसीएलटी से एक योजना की मंजूरी मिलने के बाद ओवर राइट मिला है।
गंभीरता से विचार न करने योग्य मुकदमेबाजियों जैसे कि असंतुष्ट प्रमोटरों या परिचालक लेनदारों की ओर से दायर होन होने वाले मुकदमों से बचने के लिए दिए गए प्रस्तावों में से एक यह है कि एनसीएलटी में आवेदन दाखिल करने के शुल्क को बढ़ाया जाए।
आईबीसी में अंतिम बार संशोधन इस साल जून में अध्यादेश लाकर किया गया था।
