विगत कुछ महीनों से वाहन ईंधनों (पेट्रोल और डीजल) की कीमतों में लगातार हो रहे इजाफे से न केवल महंगाई के मोर्चे पर चिंता बढ़ी है बल्कि उपभोक्ताओं के खर्च के प्रारूप में बदलाव आ गया है।
भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) की आर्थिक शाखा की ओर से हाल में जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक चूंकि उपभोक्ताओं का खर्च ईंधन पर बढ़ गया है जिसके कारण वे स्वास्थ्य संबंधी खर्चों में कटौती कर रहे हैं।
एसबीआई समूह के मुख्य आर्थिक डॉ. सलाहकार सौम्य कांति घोष ने 13 जुलाई की टिप्पणी में लिखा, ‘एसबीआई कार्ड से किए जाने वाले खर्चों के हमारे विश्लेषण से संकेत मिलता है कि गैर-विवेकाधीन स्वास्थ्य खर्च में भारी कटौती की गई है ताकि ईंधन पर बढ़े हुए खर्च को समायोजित किया जा सके। सच्चाई यह है कि इस प्रकार के खर्च ने किराना और उपयोगिता सेवाओं जैसे गैर-विवेकाधीन मदों पर होने वाले खर्च को इस हद तक कम कर दिया है कि इन उत्पादों की मांग में भारी गिरावट आई है।’
एसबीआई के अनुमानों के मुताबिक गैर-विवेकाधीन खर्च में ईंधन जैसी वस्तुओं पर होने वाली खर्च की हिस्सेदारी मार्च 2021 के 62 फीसदी से बढ़कर जून 2021 में 75 फीसदी हो गई। आंकड़ों से पता चलता है कि अप्रैल-मई 2020 में गैर-विवेकाधीन खर्च की हिस्सेदारी 84 फीसदी हो गई थी।
लोगों को पेट्रोल और डीजल पर अधिक खर्च ऐसे समय में करना पड़ रहा है जब देश भर में अधिकांश परिवारों पर कोविड महामारी के कारण चिकित्सा खर्चों का बोझ बढ़ गया है। साथ ही जिंसों की कीमतों भी वृद्घि हो रही है जिससे लोगों का मासिक बजट काफी बढ़ गया है। ऐसे में लोगों ने या तो अपनी बचत में कमी कर दी है या फिर खर्चों पूरा करने के लिए बचत रकम का सहारा ले रहे हैं।