ओबेरॉय रियल्टी, टाटा रियल्टी ऐंड इन्फ्रास्ट्रक्चर और हीरानंदानी जैसे बड़े प्रॉपर्टी डेवलपर अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए मुंबई के महंगे इलाकों में मौजूद इमारतों के दोबारा निर्माण में हाथ आजमा रहे हैं। विशेषज्ञों का अनुमान है कि मुंबई में पुनर्विकास की परियोजनाएं 30,000 करोड़ रुपये की हो सकती हैं। इमारतों को दोबारा बनाना कोई नई बात नहीं है। नई बात यह है कि अब बड़े डेवलपर भी इसमें रुचि दिखा रहे हैं।
इसमें ओबेरॉय रियल्टी सबसे आगे है, जिसने इन परियोजनाओं के लिए एक अलग टीम बनाई है। हाल में इसने बोरीवली में अपनी संपत्ति के बगल में झुग्गी-झोपड़ी पुनर्विकास परियोजना हासिल की थी। यह वर्ली में भी बड़ी पुनर्विकास परियोजना हासिल करने के बारे में विचार कर रही है। ओबेरॉय रियल्टी के चेयरमैन विकास ओबेरॉय ने कहा, ‘हमारा मानना है कि एक शहर के रूप में मुंबई में इमारतें दोबारा बननी चाहिए। यह बाशिंदों, डेवलपरों और सरकार सभी के लिए फायदेमंद है।’
हाल में विश्लेषकों के साथ सम्मेलन में ओबेरॉय रियल्टी के मुख्य वित्त अधिकारी सौमिल दारू ने कहा कि कंपनी ऐसी पुनर्विकास परियोजनाएं तलाश रही है, जहां उसे 500 से 700 करोड़ रुपये की आमदनी हो सके। डारु ने कहा, ‘बतौर कंपनी हम किसी परियोजना में 200 से 300 करोड़ रुपये की कमाई करते हैं तो यह संभवतया हमारे परियोजना आकार के दायरे में आता है।’
टाटा संस की रियल एस्टेट इकाई टाटा रियल्टी भी दक्षिण मुंबई में आवासीय इमारतों को फिर से विकसित करने की संभावनाएं तलाश रही है। दक्षिण मुंबई में रियल एस्टेट कीमतें देश में सबसे अधिक हैं। इसके प्रबंध निदेशक संजय दत्त ने कहा कि कंपनी को शहर में कम से कम पांच लाख वर्ग फुट जगह फिर विकसित करने की उम्मीद है।
दत्त ने कहा, ‘स्थापित बाजारों में बंदरगाह, हवाई अड्डे, रक्षा, रेलवे और सरकारी जमीन के अलावा मुश्किल से जमीन खाली मिलती है। सरकारी भूमि भी मुश्किल से मिलती है और आम तौर पर लीज पर दी जाती है। इससे निजी फ्रीहोल्ड को फिर से विकसित करना आकर्षक और कारगर बन जाता है। हम हमेशा ऐसे मौके तलाशते हैं।’
हीरानंदानी के प्रबंध निदेशक निरंजन हीरानंदानी ने कहा कि उनके पास मालाबार हिल्स में एक संभावित परियोजना है, जहां हाल में अरबपति निवेशक आर के दमानी ने 1,000 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति खरीद थी।
इंटीग्रोव एसेट मैनेजमेंट और निसुस फाइनैंस सर्विसेज कंपनी (निफ्को) जैसे फंड प्रबंधक उन डेवलपरों को धन मुहैया कराने की सोच रहे हैं, जो ऐसी परियोजनाओं को विकसित करने की योजना बना रहे हैं। निफ्को के प्रबंध निदेशक अमित गोयनका ने कहा, ’70 से 80 करोड़ रुपये की राशि वाला एक निवेशक समूह है। प्रत्येक परियोजना को 20 से 25 करोड़ रुपये की जरूरत होती है। हम इन आवासीय परियोजनाओं में निवेश के बारे में विचार कर रहे हैं।’