वैश्विक व्यापार गतिशीलता में आ रहे परिवर्तन के बीच संरक्षणवाद के साथ अनिश्चितता बढ़ने के कारण आर्थिक समीक्षा में भारत के लिए नई रणनीतिक व्यापार योजना बनाने की जरूरत पर बल दिया गया है। इसमें कहा गया है कि हालात से निपटने के लिए भारत को प्रतिस्पर्धी बने रहना होगा और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में अपनी भागीदारी बढ़ानी होगी। साथ ही उसे व्यापार लागत को कम करते हुए निर्यात सुविधाओं में सुधार करना चाहिए। अच्छी बात यह है कि यदि सरकार और निजी क्षेत्र गुणवत्ता के साथ-साथ दक्षता पर जोर दे तो तमाम व्यापार चिंताओं के बावजूद भारत विदेशी बाजारों में अपनी हिस्सेदारी बढ़ा सकता है।
आर्थिक समीक्षा में चेताया गया है कि वैश्विक स्तर पर टैरिफ में गिरावट आई है लेकिन, सभी देशों में गैर टैरिफ नीतिगत उपाय बढ़ गए हैं। खासकर पहले कोविड 19 और फिर रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद इनमें और वृद्धि हुई है। विभिन्न देशों द्वारा गैर-टैरिफ नीतियां लागू करने का उद्देश्य पर्यावरण और सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा करना है, लेकिन अक्सर निर्यातकों के लिए इन उपायों से अनुपालन लागत बढ़ जाती है।
आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि यूरोपीय संघ द्वारा शुरू किए गए जलवायु परिवर्तन संबंधी गैर टैरिफ उपाय आगे चलकर चीन, भारत और तुर्किये जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं में निर्यातकों को नुकसान पहुंचा सकते हैं। इसमें कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म (सीबीएएम) और ईयू डिफॉरेस्टेशन रेग्युलेशन (ईयूडीआर)जैसी व्यापार नीतिगत बंदिशें शामिल हैं।
समीक्षा में यह भी कहा गया है, ‘संक्षेप में, अभी इस नतीजे पर पहुंचना मुश्किल है कि सीबीएएम और ईयूडीआर, दोनों जलवायु और पर्यावरण के नाम पर व्यापार सुरक्षा उपाय हैं। इसके खेल और अंतिम लक्ष्य दोनों एक समान हैं, लेकिन रणनीति लगातार बदल रही है। श्रम मानक, लिंग, लोकतंत्र, उत्सर्जन और वनों की कटाई जैसी अनूठी सूची समय के साथ बढ़ती जाएगी। आज के विकसित देश विकास के समान चरण के लिए उन नियमों का पालन नहीं कर रहे हैं, जिनकी वे विकासशील देशों से अपेक्षा करते हैं।’ ये दिशानिर्देश एक साल के भीतर लागू हो सकते हैं। इनसे भारत का निर्यात बाधित होने और चालू खाता घाटा बढ़ने की आशंका है। यह ऐसे समय हो रहा है जब विदेशी निवेशकों के बाहर निकलने, निवेश बढ़ाने को कई सरकारों द्वारा दिए गए प्रोत्साहन रुकने तथा ब्याज दरें बढ़ने के कारण देश में शुद्ध प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) लगातार घट रहा है।
आर्थिक समीक्षा में वैश्विक विनिर्माण और ऊर्जा परिवर्तन परिदृश्य में चीन के बढ़ते प्रभुत्व पर भी प्रकाश डाला गया है। उदाहरण के लिए कई सौर ऊर्जा उपकरण निर्माता आज चीनी आपूर्ति श्रृंखला और इससे जुड़ी सेवाओं पर खासे निर्भर हैं। इसमें यह भी कहा गया है, ‘कई उत्पादों के लिए एकल स्रोत पर केंद्रित होने से भारत की आपूर्ति श्रृंखला प्रभावित होने का जोखिम बन गया है।’ इसके अलावा, निकिल, कोबाल्ट और लीथियम जैसे महत्त्वपूर्ण खनिजों के उत्पादन और प्रसंस्करण में वैश्विक स्तर पर चीन की बड़ी हिस्सेदारी को भी रेखांकित किया गया है। चीन में इनका वैश्विक उत्पादन का क्रमश: 65 प्रतिशत, 68 प्रतिशत और 60 प्रतिशत प्रसंस्करण हो रहा है।
मुक्त व्यापार और अंतरराष्ट्रीय व्यापार नीतियों में सहयोग बढ़ाने के दबाव के चलते विभिन्न देशों के बीच सीमा शुल्क में कमी आई है। उदाहरण के लिए, सन 2000 से 2024 के बीच भारत में औसत टैरिफ दरें 48.9 प्रतिशत से घटकर 17.3 प्रतिशत पर आ गई हैं।