भारत को निर्यात का हब बनाने के लिए उत्पादन आधारित योजना (पीएलआई) की शुरुआत हुई थी लेकिन आईटी हार्डवेयर 2.0 की पीएलआई की समयसीमा बुधवार को खत्म होने तक केवल 40 योग्य अभ्यार्थियों ने आवेदन किया है और यह योजना ‘आयात के विकल्प’ के रूप में केंद्रित है।
यह योजना आयात पर अत्यधिक निर्भरता (80 फीसदी लैपटॉप का आयात होता है) कम करने के लिए है। चीन से खासतौर पर लैपटाप, टेबलेट्स और सर्वर्स का आयात होता है और अब इन्हें भारत में असेंबल किए जाने के लिए यह योजना पेश की गई है। इस योजाना में निर्यातकों से अधिक स्थानीय आपूर्ति श्रृंखला को प्रोत्साहन दिया जाएगा। इसमें 40 कंपनियों ने केवल 28,288 करोड़ रुपये का निर्यात करने की प्रतिबद्धता जताई है जो उनकी वृद्धिशील उत्पादन लागत का केवल छह फीसदी है।
आईटी हार्डवेयर के लिए शुरुआती पीएलआई योजना की शुरुआत के अवसर पर सरकार ने फरवरी, 2021 में 3.26 लाख करोड़ रुपये के वृद्धिशील उत्पादन का अनुमान पेश किया था। इसमें 2700 करोड़ रुपये का वृद्धिशील निवेश कर करीब 75 फीसदी निर्यात होगा। हालांकि तीन महीने बाद अभ्यार्थियों के आवेदन अत्यधिक सुस्त मिला था और इससे लक्ष्य में काफी बदलाव किया गया।
इसमें योग्य कंपनियों का सामूहिक उत्पाद लक्ष्य के आधे 1.61 लाख करोड़ रुपये तक ही पहुंच पाया और उनके निर्यात की प्रतिबद्धता शुरुआती लक्ष्य का केवल 37 फीसदी थी। इस क्रम में कंपनियां 2350 करोड़ रुपये का निवेश करने के लिए तैयार थीं और वह भी सरकार की सोच से 12 फीसदी कम था। इस योजना के लिए 19 कंपनियों (14 भारतीय और पांच विदेशी) ने आवेदन किया था।
इनमें डेल, फ्लेक्स, विस्ट्रान और राइजिंग स्टार सहित 14 को मंजूरी दी गई। वैसे यह योजना की शुरुआत से ही स्पष्ट हो गया था कि यह योजना काम नहीं करेगी। यह पिछली योजना के परिणामों से भी उजागर था। पिछली योजना में डेक्सन और डेल को छोड़कर ज्यादातर कंपनियां प्रोत्साहन के पहले साल से ही निवेश और उत्पादन के लक्ष्य का हासिल नहीं कर पाई थीं।
इसका कारण यह था कि उनके समक्ष गंभीर मुद्दे थे। पहला, पीएलआई की अवधि केवल चार साल थी और और 7350 करोड़ रुपये का आवंटन पर्याप्त नहीं था। देश में आपूर्ति श्रृंखला नहीं होने के कारण कंपनियां सात साल की मांग कर रही थीं। दूसरा मुद्दा, चार वर्ष के लिए प्रोत्साहन औसतन केवल 2.2 फीसदी था और यह विदेशी कंपनियों के लिए चीन से निर्माण के आधार को भारत लाने के लिए पर्याप्त रूप से आकर्षक नहीं था।
तीसरा, भारत ‘इंटरनैशनल टेक्नॉलजिकल एग्रीमेंट’ का हस्ताक्षरकर्ता था और संबंधित देश हार्डवेयर पर शून्य शुल्क के सहमत हो गए थे। लिहाजा वैश्विक कंपनियों के लिए भारत आने की उम्मीद कम हो गई थी। अंतिम मुद्दा इस योजना में कलपुर्जों के लोकलाइजेशन के लिए कड़ी समयसीमा लागू की गई थी और ज्यादातर कंपनियों के लिए इसे लागू करना टेड़ी खीर थी। घरेलू ईएमएस जैसे लावा या ऑप्टिमस इन्फ्राकॉम कोई खास प्रगति नहीं कर सके थे। इसका कारण यह था कि उनके पास आईटी पीसी ब्रांड के उनके वेंडर बनने का कोई अनुभव नहीं था।