अमेरिका द्वारा लगाया गया अतिरिक्त शुल्क लागू होने के बीच वित्त मंत्रालय ने बुधवार को कहा कि इस कदम का तात्कालिक सीमित असर हो सकता है, लेकिन अर्थव्यवस्था पर इसके द्वितीयक और तृतीयक असर की चुनौतियों का समाधान करने की जरूरत है। वित्त मंत्रालय ने कहा, ‘अगर उचित तरीके से निपटा जाए तो झटके हमें मजबूत व अधिक फुर्तीले बनाते हैं।’ मंत्रालय ने कहा, ‘अगर शुल्क के कारण निकट भविष्य में आने वाले आर्थिक संकट का सामना सक्षम और बेहतर वित्तीय क्षमता वाले लोग कर लेते हैं तो उनके नीचे के छोटे और मझोले उद्यम व्यापार संकट से मजबूती से उभरेंगे। अब राष्ट्रीय हित की समझ दिखाने का वक्त आ गया है।’
वित्त मंत्रालय ने जुलाई की मासिक आर्थिक समीक्षा में कहा है कि शुल्क संबंधी अनिश्चितता के कारण निकट अवधि की आर्थिक गतिविधियों पर जोखिम बना हुआ है, वहीं सरकार व निजी क्षेत्र इस दिशा में सक्रियता से काम कर रहे हैं, जिससे व्यवधानों को न्यूनतम किया जा सके। भारत और अमेरिका के बीच चल रही व्यापार वार्ता को महत्त्वपूर्ण बताते हुए मंत्रालय ने कहा है कि भारत सक्रियता से व्यापार के विविधीकरण की रणनीति पर काम कर रहा है, जिससे व्यापार का प्रदर्शन मजबूत बना रहे।
वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग ने मासिक आर्थिक समीक्षा में कहा है कि सरकार अमेरिका, यूरोपीय संघ, न्यूजीलैंड, चिली और पेरू के साथ मुक्त व्यापार समझौते पर बातचीत कर रही है, जिससे विविधीकरण हो सके। बहरहाल इन पहलों का परिणाम आने में वक्त लगेगा और संभवतः अमेरिका द्वारा लगाए गए शुल्क के कारण निर्यात में तत्काल गिरावट का पूर्णतः समाधान नहीं हो पाएगा। इसमें कहा गया है, ‘गतिशील वैश्विक व्यापारिक परिदृश्य में भारत ने एफटीए पर बातचीत करने के लिए एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाया है, जिसका उद्देश्य घरेलू हितों की रक्षा करते हुए बाजार पहुंच का विस्तार करना है।’
सूक्ष्म, लघु और मझोले उद्यम (एमएसएमई) अमेरिका द्वारा लगाए गए 50 प्रतिशत शुल्क पर अभी नजर बनाए हुए है, जिसे अमेरिका भेजा जाता है। फेडरेशन ऑफ इंडियन माइक्रो, स्माल ऐंड मीडियम इंटरप्राइजेज (फिस्मे) के महासचिव अनिल भारद्वाज ने बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘पहले सप्ताह हम अमेरिकी शुल्क के तात्कालिक असर की निगरानी कर रहे हैं। हम अलग अलग परिस्थितियों के लिए तैयार हैं। अगले सप्ताह हमने कुछ सुझावों के साथ सरकार से संपर्क करने की योजना बनाई है। खासकर अमेरिका से इतर वैकल्पिक बाजारों पर शोध के लिए फंड की मांग की जाएगी।’ कम अवधि के हिसाब से टेक्सटाइल, अपैरल, हैंडीक्राफ्ट, चमड़ा एवं चमड़ा उद्योग और आभूषण क्षेत्र पर 50 प्रतिशत शुल्क का बहुत ज्यादा असर पड़ने वाला है। निर्यातकों ने कहा शुल्क से सबसे बड़े निर्यात बाजार में भारतीय उत्पादों की आवाजाही बाधित होगी।
चमड़ा क्षेत्र के एक निर्यातक ने कहा, ‘50 प्रतिशत शुल्क एक आर्थिक प्रतिबंध की तरह है। इससे इकाइयां बंद होंगी और नौकरियां कम होंगी।’ एक अन्य चमड़ा निर्यातक ने कहा कि कुछ कंपनियों के पास लगभग दो-तीन महीने के ऑर्डर हैं, लेकिन अमेरिकी कंपनियां ऑर्डर बनाए रखने के लिए लगभग 20 प्रतिशत की छूट की मांग कर रही हैं।
कपड़ा निर्यात संवर्धन परिषद (एईपीसी) के महासचिव मिथिलेश्वर ठाकुर ने कहा कि 10.3 अरब डॉलर के निर्यात के साथ कपड़ा क्षेत्र सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों में से एक है। उन्होंने कहा, ‘25 प्रतिशत अतिरिक्त बोझ ने भारतीय कपड़ा उद्योग को अमेरिकी बाजार से प्रभावी रूप से बाहर कर दिया है। प्रमुख प्रतिस्पर्धी देशों की तुलना में 30-31 प्रतिशत शुल्क के नुकसान के अंतर को पाटना असंभव है।’
रत्न एवं आभूषण निर्यात संवर्धन परिषद (जीजेईपीसी) के चेयरमैन किरीट भंसाली ने कहा, ‘तराशे और पॉलिश किए हुए हीरों के मामले में भारत का आधा निर्यात अमेरिका को होता है। इस शुल्क वृद्धि से पूरा उद्योग ठप पड़ सकता है।’
कोलकाता स्थित एक समुद्री खाद्य निर्यातक ने कहा कि अब अमेरिकी बाजार में भारत का झींगा ‘बेहद’ महंगा हो जाएगा। इससे निर्यातकों की प्रतिस्पर्धी क्षमता प्रभावित होगी। झींगा निर्यातक ने कहा कि हमें पहले से ही इक्वाडोर से भारी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि वहां केवल 15 प्रतिशत शुल्क है।