धीरे धीरे राजकोषीय, मौद्रिक प्रोत्साहन वापस ले भारतः आईएमएफ

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 11, 2022 | 5:03 PM IST

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने कहा है कि भारत को धीरे धीरे अपने राजकोषीय व मौद्रिक नीति प्रोत्साहन पैकेज वापस लेने, निर्यात संबंधी बुनियादी ढांचा विकसित करने और प्रमुख कारोबारी साझेदारों के साथ मुक्त व्यापार समझौते पर बातचीत करने की जरूरत है। आईएमएफ के मुताबिक बाहरी क्षेत्र के संतुलन को मध्यावधि के हिसाब से सहज स्तर पर बनाए रखने और निर्यात को सतत बढ़ावा देने के लिए यह आवश्यक है।

गुरुवार को जारी अपने हाल के बाहरी क्षेत्र की रिपोर्ट में आईएमएफ ने कहा है कि भारत को अपनी निवेश व्यवस्था को आगे और उदार बनाने की जरूरत है, जिसमें खासकर इंटरमीडिएड गुड्स पर शुल्क में कमी शामिल है। आईएमएफ ने कहा, ‘ढांचागत सुधार से वैश्विक मूल्य शृंखला का ज्यादा एकीकरण हो सकता है और इससे एफडीआई आकर्षित होगा। इससे बाहरी कमजोरियां कम होंगी। विनिमय दर में लचीलापन झटके को झेलने वाले प्रमुख तत्व के रूप में काम कर सकता है और बाजार की बदलती स्थितियों का सीमित हस्तक्षेप से समाधान हो सकेगा।’

आईएमएफ ने कहा कि वित्त वर्ष 22 में भारत की बाहरी स्थिति मोटे तौर पर मध्यम अवधि के बुनियादी सिद्धांतों और वांछनीय नीतियों द्वारा निहित स्तर के अनुरूप थी। इसमें कहा गया है, ‘चालू खाते का घाटा व्यापक रूप स भारत की प्रति व्यक्ति आय, अनुकूल वृद्धि की स्थिति, भौगोलिक धारणाओं और विकास की जरूरतों के अनुरूप है। उतार चढ़ाव वाली वैश्विक वित्तीय स्थितियां और जिंस के दाम में उल्लेखनीय बढ़ोतरी जैसे बाहरी कारकों का असर भी रहा है।’

कर्ज देने वाली बहुपक्षीय एजेंसी ने अनुमान लगाया है  कि भारत का चालू खाते का घाटा (सीएडी) वित्त वर्ष 23 में बढ़कर जीडीपी के 3.1 प्रतिशत के बराबर हो जाएगा, जो वित्त वर्ष 22 में जीडीपी के 1.2 प्रतिशत के बराबर था। इसमें कहा गया है, ‘तेल की कीमतों पर यूक्रेन युद्ध के असर के कारण वित्त वर्ष 2022-23 में सीएडी बढ़ने का अनुमान है, लेकिन मध्यावधि के हिसाब से यह स्थिर हो जाएगा। प्राधिकारियों ने बाहरी व्यापार को बढ़ावा देने और एफडीआई के उदारीकरण व पोर्टफोलियो प्रवाह की दिशा में कुछ प्रगति की है, लेकिन मौजूदा शुल्क ढांचा व्यापक रूप से यथावत बना हुआ है।’

आईएमएफ ने कहा कि 2021 के अंत में भारत की शुद्ध अंतरराष्ट्रीय निवेश की स्थिति (एनआईआईपी) सुधरकर जीडीपी के -11.1 प्रतिशत हो गई थी, जो 2020 के अंत में -13.5 प्रतिशत थी। एनआईआईपी देश की बाहरी वित्तीय संपत्तियों व देनदारी का अंतर होता है।

इसमें कहा गया है, ‘यह तुलनात्मक रूप से कम सीएडी (कोविड-19 महामारी के दौरान) और कम आरक्षित संपत्ति को दिखाता है। सकल वित्तीय संपत्तियां और देनदारियां क्रमशः जीडीपी के 30.5 प्रतिशत और जीडीपी के 41.5 प्रतिशत के बराबर थीं। अधिकांश संपत्तियां आधिकारिक भंडार और एफडीआई (बाहरी) के रूप में थी, जबकि देनदारियों में ज्यादातर एफडीआई और अन्य निवेश शामिल थे।’

आईएमएफ ने कहा कि अगर समकक्ष देशों से तुलना करें तो भारत के बाहरी कर्ज की देनदारी की स्थिति थोड़ी बेहतर है और कम अवधि के रोल ओवर का जोखिम सीमित है।

आईएमएफ ने कहा कि  2020 और 2021 की असामान्य स्थितियों के दौरान चालू खाते के अधिशेष की स्थिति से भारतीय रिजर्व बैंक को आधिकारिक विदेशी मुद्रा भंडार को भरने का मौका मिला और 2021 के अंत तक यह करीब 638.5 अरब डॉलर पर पहुंच गया। इसके आगे के महीनों में भंडार में गिरावट आई, लेकिन करीब 8 महीने के आयात कवरेज के बाद भी सहज स्थिति में बना हुआ है। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘विभिन्न मानदंड इस बात की पुष्टि करते हैं कि आधिकारिक विदेशी मुद्रा भंडार ऐहतियाती उद्देश्यों के लिए पर्याप्त है।’
 

First Published : August 5, 2022 | 10:29 AM IST