इंडिया रेटिंग्स ने उम्मीद जताई है कि वित्त वर्ष 2022-23 में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 7.6 फीसदी की वृद्घि होगी। इसे आंशिक तौर पर सरकार की ओर से लगातार किए जा रहे खर्च और अनुकूल वैश्विक व्यापार दृष्टिकोण से मदद मिलेगी। रेटिंग एजेंसी ने आज यह अनुमान जारी किया है।
इंडिया रेटिंग्स में प्रधान अर्थशास्त्री सुनील कुमार सिन्हा ने कहा, ‘दो वर्ष बाद भारतीय अर्थव्यवस्था में अर्थपूर्ण विस्तार नजर आएगा क्योंकि वित्त वर्ष 2023 में वास्तविक जीडीपी वित्त वर्ष 2020 यानी कि कोविड से पहले के स्तर से 9.1 फीसदी अधिक होगी। हालांकि, वित्त वर्ष 2023 में भारत की अर्थव्यवस्था का आकार वित्त वर्ष 2023 के रुझान मूल्य से 10.2 फीसदी कम रहेगा।’
सिन्हा ने कहा, ‘इस कमी के लिए निजी खपत में लगातार बनी हुई कमजोरी और निवेश मांग का योगदान क्रमश: अनुमानित तौर पर 43.4 फीसदी और 21 फीसदी रहेगा। हालांकि, वित्त वर्ष 2022 की चौथी तिमाही की वृद्घि पर यदि ओमिक्रोन का प्रभाव इंडिया रेटिंग्स के अनुमान से अधिक रहता है तो वित्त वर्ष 2023 की वृद्घि दर थोड़ी और ऊपर जा सकती है जो कि आधार प्रभाव के कारण होगा।’
उन्होंने कहा कि आर्थिक रिकवरी उत्साहजनक रही और कोविड-19 की मौजूदा लहर को रोकने के लिए विभिन्न राज्यों में लगाए गए प्रतिबंध दूसरी लहर में लगाए गए प्रतिबंधों जितने कड़े नहीं हैं।
फिर भी, रेटिंग्स एजेंसी ने चेताया है कि मौजूदा रिकवरी पर जोखिम बना हुआ है। उसने वित्त वर्ष 2022 के लिए ताजा अग्रिम अनुमानों की ओर संकेत किया जिसमें बताया गया है कि जीडीपी का सबसे बड़ा घटक निजी अंतिम उपभोक्त खर्च (पीएफसीई) मांग की तरफ से 58.6 फीसदी है और उपभोग मांग के लिए प्रतिनिधि वृद्घि चालू वर्ष में सालाना आधार पर केवल 6.9 फीसदी बढऩा अनुमानित है। यह स्थिति तब बन रही है जबकि आधार कम है और विभिन्न उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं के वृद्घि आंकड़े जबरस्त वृद्घि दर्शा रहे हैं।
सिन्हा ने कहा, ‘इससे संकेत मिलता है कि खपत मांग अभी भी कमजोर बनी हुई है और इसका आधार व्यापक नहीं हुआ है। बल्कि महामारी से अर्थव्यवस्था को चोट पहुंचने से पहले ही पीएफसीई में गिरावट आने लगी थी।’