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विपक्ष शासित 8 राज्यों ने GST परिषद से मांगा 5 साल तक अतिरिक्त शुल्क लगाने का अधिकार

सुझाव देने वाले इन राज्यों में कर्नाटक, झारखंड, पंजाब, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल, तेलंगाना और हिमाचल प्रदेश शामिल हैं

Last Updated- August 29, 2025 | 9:34 PM IST
GST
प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो

GST Council meeting 2025: विपक्षी दलों द्वारा शासित 8 राज्यों ने शुक्रवार को वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) दरों को तर्कसंगत बनाने से होने वाले संभावित राजस्व नुकसान की भरपाई के लिए, अहितकर वस्तुओं एवं विलासिता वाली वस्तुओं पर 40 फीसदी की प्रस्तावित दर के अलावा एक अतिरिक्त शुल्क लगाने का सुझाव दिया है। सुझाव देने वाले इन राज्यों में कर्नाटक, झारखंड, पंजाब, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल, तेलंगाना और हिमाचल प्रदेश शामिल हैं। इन राज्यों का सुझाव यह भी है कि यह शुल्क कम से कम पांच साल के लिए या तब तक लगाया जाना चाहिए जब तक राज्यों की कमाई स्थिर न हो जाए।

3-4 सितंबर को होने वाली जीएसटी परिषद की बैठक से पहले एक परामर्शी बैठक में इन राज्यों ने केंद्र सरकार के दरों को तर्कसंगत बनाने के प्रस्ताव का समर्थन किया, लेकिन इस बात पर भी जोर दिया कि दरों में कमी का लाभ आम लोगों तक पहुंचना चाहिए। कर्नाटक के वित्त मंत्री कृष्णा बायरे गौड़ा ने बताया, ‘यह अतिरिक्त शुल्क दरों में वृद्धि नहीं है बल्कि पहले लगाए गए उपकर का एक विकल्प है। यह शुल्क 40 फीसदी और मौजूदा दरों के बीच के अंतर को कम करेगा। अहितकर प्रकृति की एक-दो वस्तुओं को छोड़कर हमने किसी और वस्तु के लिए दरों में बढ़ोतरी का प्रस्ताव नहीं दिया है।’

राज्यों ने यह भी प्रस्ताव दिया है कि इस अतिरिक्त शुल्क से मिलने वाली पूरी आय राज्यों को हस्तांतरित की जानी चाहिए। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि इस तरह के मुआवजे का आधार वर्ष 2024-25 होना चाहिए और प्रति वर्ष 14 फीसदी की दर से यह सुरक्षा दी जानी चाहिए, जो पिछले तीन वित्त वर्षों की औसत वृद्धि दर है।

इस बीच इन राज्यों ने इस बात पर जोर दिया है कि केंद्र के प्रस्ताव में यह स्पष्ट नहीं है कि अहितकर एवं लक्जरी वस्तुओं पर प्रभावी कर दर को कैसे बनाए रखा जाएगा। उदाहरण के तौर पर फिलहाल पान मसाला पर लगभग 88 फीसदी का कर लगता है, और इसे 40 फीसदी तक कम करने से 48 फीसदी की भारी कमी आएगी।

गौड़ा ने कहा कि राज्यों को 50 फीसदी राजस्व जीएसटी से मिलता है और दरों को तर्कसंगत बनाने से उन्हें 15-20 फीसदी का राजस्व नुकसान हो सकता है। उन्होंने कहा, ‘इससे राज्यों की वित्तीय व्यवस्था अस्थिर हो जाएगी। भारत सरकार के सकल कर राजस्व में जीएसटी का योगदान करीब 28 फीसदी है। इसका अर्थ यह है कि केंद्र सरकार को अपना 72 फीसदी राजस्व, जीएसटी के अलावा अन्य स्रोतों जैसे प्रत्यक्ष कर, आयकर, कई सार्वजनिक क्षेत्र के संस्थानों के लाभांश और उपकर से मिलता है।  सरकार के करीब 17-18 फीसदी राजस्व में विभिन्न उपकरों का योगदान है जिसका एक भी पैसा राज्यों के साथ साझा नहीं किया जाता।’

गौड़ा ने कहा, ‘राज्यों की 50 फीसदी आमदनी, जीएसटी पर निर्भर है। ऐसे में अगर 50 प्रतिशत के आधार पर किसी राज्य सरकार को 20 फीसदी का नुकसान होता है तब ऐसे में इससे पूरे देश में बेहद गंभीर रूप से राज्यों की वित्तीय संरचना में अस्थिरता दिखेगी। राज्यों को राजस्व में कमी की भरपाई के लिए कम से कम पांच साल या उससे अधिक समय तक राजस्व स्थिर होने तक यह गुंजाइश दी जानी चाहिए।’ 

First Published - August 29, 2025 | 9:28 PM IST

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