प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो
सरकार आयकर प्रणाली की तर्ज पर वस्तु एवं सेवा कर (GST) रिफंड को स्वचालित करने पर विचार कर रही है, जो जीएसटी 3.0 के तहत परिकल्पित सुधारों के अगले चरण का हिस्सा है। टीआईओएल नॉलेज फाउंडेशन (TKF) द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड (सीबीआईसी) के सदस्य (जीएसटी) शशांक प्रिया ने कहा, ‘हमें उम्मीद है कि शायद आयकर की तरह, हम रिफंड को भी स्वचालित कर देंगे। यह हमारे दिमाग में है।’
बहरहाल प्रिया ने इसके लिए कोई समय सीमा बताने से इनकार किया। उन्होंने कहा, ‘हमें परामर्श करना होगा। पर्याप्त सुरक्षा उपाय करने होंगे। सुधार एजेंडे को आगे ले जाने और सिस्टम को सरल बनाने को लेकर सरकार बहुत सकारात्मक है।’
जीएसटी 2.0 के तहत सरकार ने उल्टे शुल्क ढांचे के तहत दायर रिफंड दावों के 90 प्रतिशत के अनंतिम मंजूरी की अनुमति दी है, जो 1 अक्टूबर, 2025 को या उसके बाद जमा किए गए आवेदनों के लिए है।
विशेषज्ञों के अनुसार निर्यात और उल्टे शुल्क ढांचे के अलावा रिफंड दावे उन मामलों में भी होते हैं जहां कर का भुगतान त्रुटिपूर्ण तरीके से किया गया है। उदाहरण के लिए जब राज्य के भीतर की आपूर्ति को गलती से एक राज्य से दूसरे राज्य को होने वाली आपूर्ति या इसके विपरीत मान लिया जाता है, या लिपिकीय त्रुटियों के कारण अधिक कर का भुगतान किया जाता है।
जांच, ऑडिट के दौरान या अपील के समय पूर्व-जमा के रूप में भुगतान की गई राशि के लिए भी रिफंड मांगा जाता है, जब अंततः कोई देयता स्थापित नहीं होती है। हालांकि, ऐसे दावों को मंजूरी से पहले अक्सर लंबे समय तक सत्यापन और प्रक्रियात्मक देरी का सामना करना पड़ता है।
रस्तोगी चैंबर्स के संस्थापक अभिषेक रस्तोगी ने कहा, ‘रिफंड दावों के प्रसंस्करण की बात आने पर करदाताओं और अधिकारियों के बीच मानव इंटरफेस निश्चित रूप से कम होना चाहिए। पारदर्शिता और स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए सभी कमियों और सूचना आवश्यकताओं को इलेक्ट्रॉनिक रूप से और डिजिटल रूप से मांगा जाना चाहिए। कई ऐसे उदाहरण हैं जहां कर अधिकारी दस्तावेजों का वही सेट मांगते हैं, भले ही ये पहले भौतिक रूप से जमा किए गए हों, इससे अनावश्यक देरी होती है।’
प्रिया ने कहा कि सरकार उन मुद्दों की भी जांच कर रही है जिनमें विवाद होने की आशंका है। इनमें अनुसूची-1 लेनदेन से संबंधित मुद्दे भी शामिल हैं।