मुख्य आर्थिक सलाहकार कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यन ने कहा कि महामारी के कारण फैली अनिश्चितता को देखते हुए यह कहना मुश्किल है कि भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर चालू वित्त वर्ष की आगामी तिमाहियों में सकारात्मक हो जाएगी।
उन्होंने कहा कि सरकार ‘सतर्कता के साथ आंकड़ों को लेकर आशावादी’ है क्योंकि वित्त वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही की तुलना में दूसरी तिमाही में उद्योग क्षेत्रों के अधिकांश संकेतकों में सुधार आया है।
उन्होंने शुक्रवार को दूसरी तिमाही के जीडीपी आंकड़े जारी होने के बाद कहा, ‘कोरोना महामारी के कारण आर्थिक दृष्टिकोण में अनिश्चितता है। जीडीपी का अनुमान अधिकांश टिप्पणीकारों द्वारा अनुमानित आंकड़ों से ज्यादा सकारात्मक है। मैं विशेष रूप से सर्दियों के महीनों में सावधानी बरतने का आग्रह करूंगा।’ दूसरी तिमाही जीडीपी वृद्धि दर 7.5 प्रतिशत नकारात्मक रही है।
पहली तिमाही के दौरान जीडीपी में पिछले वर्ष की समान अवधि के 35.35 लाख करोड़ रुपये के आकार की तुलना में 23.9 प्रतिशत की गिरावट से 26.90 लाख करोड़ रुपये पर आ गई। भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए अपना दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हुए मुख्य आर्थिक सलाहकार ने कहा कि आर्थिक सुधार हमें उम्मीद दे रहे हैं लेकिन अर्थव्यवस्था तथा महामारी, दोनों को लेकर सावधानी बरतने की आवश्यकता है। जीडीपी आंकड़ों के साथ जारी रिपोर्ट में कहा गया, ‘मुख्यत: महामारी के कारण आर्थिक प्रभाव दिख रहे हैं। हालांकि रोजाना संक्रमण के सक्रिय मामलों की संख्या में गिरावट आना सकारात्मक है, क्योंकि ऐसा संचरण कम होने के कारण हो रहा है। आर्थिक सुधारों को बनाए रखने के लिए सावधानी बरतनी होगी। आर्थिक रिकवरी की स्थिरता महामारी पर नियंत्रण पर निर्भर करती है।’
स्पेनिश फ्लू का हवाला देते हुए सीईए ने कहा कि देश ने सितंबर में पहली लहर के शीर्ष को पार कर लिया है और हमें सर्दियों के महीनों में सावधानी बरतनी चाहिए। इस बीमारी की दूसरी लहर पहले की तुलना में अधिक विनाशकारी रही। उन्होंने यह भी कहा कि जब तक महामारी दूर नहीं होगी, तब तक कई प्रभावित क्षेत्र मांग में कमी का अनुभव करते रहेंगे।
भारत में कोरोना के कारण हुई मौतों के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि यह अन्य देशों की तुलना में कम रही हैं। परीक्षण का डेटा और मामलों की संख्या से पता चलता है कि भारत में संक्रमण सितंबर के मध्य में बढ़ गया था। वह कहते हैं, ‘विशेष रूप से उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं और पूंजी एवं बुनियादी ढांचे के सामानों से जुड़े उद्योगों में वी-आकार की रिकवरी उपभोग तथा निवेश दोनों के मजबूत पुनरुद्धार का संकेत देती है, जो देश के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 90 प्रतिशत हैं।’
सुधार जारी रहने के आसार
देश से होने वाले निर्यात के आंकड़ों ने भी उम्मीदें जगाई हैं, लेकिन खर्च करने के लिए सरकार के पास संसाधन सीमित रहने से अर्थशास्त्रियों को थोड़ी चिंता हो रही है। नई दिल्ली स्थित नैशनल काउंसिल ऑफ अप्लायड इकोनॉमिक रिसर्च के सुदीप्तो मंडल कहते हैं, ‘विनिर्माण और निर्यात दोनों में तेजी जरूर आई है, लेकिन सरकार के पास व्यय बढ़ाने के संसाधन सीमित है, जो चिंता का विषय है।’
व्यय कम रहने से निजी क्षेत्र की उन कंपनियों के कारोबार पर असर हो सकता है, जो सरकार के पूंजीगत व्यय पर निर्भर रहते हैं। भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) के महानिदेशक चंद्रजीत बनर्जी कहते हैं, ‘दूसरी तिमाही में निजी उपभोग कमजोर दिखता है। हालांकि इस बात के संकेत भी मिल रहे हैं कि अगली तिमाही में इसमें मजबूती आएगी। सरकार अगर व्यय बढ़ाती है तो इससे आने वाले महीनों में वृद्धि दर और मजबूत होगी।’ राव ने कहा कि अर्थव्यवस्था में 60 प्रतिशत योगदान देने वाले सेवा क्षेत्र अब भी नहीं उबर पाया है।