प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो
सरकार को अधिसूचित विशेष आर्थिक क्षेत्रों में वैश्विक क्षमता केंद्रों (जीसीसी) के स्थापना के लिए कॉरपोरेट कर में छूट या माफी पर विचार करना चाहिए। भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) ने यह भी सुझाव दिया कि सरकार को स्थायी स्थापना नियमों में भी सामंजस्य स्थापित करना चाहिए।
सीआईआई ने जीसीसी के राष्ट्रीय मसौदे में सुझाव दिया कि सरकार की नई नीति जीसीसी को ‘मध्यवर्ती’ श्रेणी से हटाए और इनके सेवाएं मुहैया कराने की प्रकृत्ति का वर्गीकरण होना चाहिए। सीआईआई ने कहा कि इससे जीएसटी के कर रिफंड में तेजी आने और आवेदनों पर अधिकारियों की विस्तृत जांच में मदद मिलेगी।
सीआईआई ने सुझाव दिया है, ‘जीसीसी अपने ऑफशोर विक्रेताओं से आयातित विभिन्न सेवाओं पर रिवर्स चार्ज मैकेनिज्म के तहत कर का भुगतान करते हैं, इसलिए यह नीति इनपुट टैक्स क्रेडिट का उपयोग करके रिवर्स चार्ज मैकेनिज्म के तहत जीएसटी के भुगतान की अनुमति दे सकती है।’ उद्योग निकाय के अनुसार भारत में जीसीसी पारिस्थितिकीतंत्र को हालिया 1,800 से बढ़ाकर वर्ष 2030 तक 5,000 करने की क्षमता है और भारत उच्च मूल्य की उद्यम क्षमताओं के लिए वैश्विक केंद्र के रूप में पेश कर सकता है।
भारत के सकल घरेलू उत्पाद में वर्ष 2030 तक जीसीसी क्षेत्र के 600 अरब डॉलर तक योगदान करने की संभावना है। इससे इस अवधि के दौरान 199 अरब डॉलर का सकल मूल्य संवर्द्धन होगा। सीआईआई ने बताया कि जीसीसी क्षेत्र 2.5 करोड़ नौकरियों का सृजन कर सकता है। इसमें 50 लाख प्रत्यक्ष रोजगार का सृजन हो सकता है।
उद्योग निकाय ने बताया, ‘इसके विकास के केंद्र में नैनो जीसीसी का उदय, बढ़ती कार्यात्मक स्वामित्व में वृद्धि और तकनीक आधारित उत्कृष्टता केंद्र हैं। ये सभी उद्देश्य मिलकर वैश्विक उद्यम बदलाव में भारत को अग्रणी बनने में मददगार हैं।