सरकार की प्रस्तावित गैस आवंटन नीति में कहा गया है कि इसकी खरीद और बिक्री बाजार से संचालित होगी। सरकार का यह वायदा देश में गैस के बढ़ते बाजार की ओर इशारा करता है।
नई अन्वेषण और लाइसेंसिंग नीति (नेल्प) में कहा गया है कि जिन कंपनियों को गैस ब्लॉक दिए जाएंगे, चाहे वे भारत के हों या दुनिया के किसी हिस्से से, उन्हें बाजार भाव पर गैस के दाम निर्धारित करने की छूट होगी।
मुक्त बाजार के बारे में सरकार का यह वायदा उस समय आया है जब पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस नियामक बोर्ड (पीएनजीआरबी) का गठन किया गया था और इसका उद्देश्य था कि प्रतियोगी गैस बाजार तैयार किया जाए।
पीएनजीआरबी के चेयरमैन एल मानसिंह का कहना है कि गैस आवंटन नीति बाजार की ताकतों को कम करेगी। आवंटन नीति बनाते समय नियामक बोर्ड से कोई राय नहीं ली गई।
गैस कंपनी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि गैस उपयोग नीति (गैस यूटिलाइजेशन पॉलिसी) नेल्प में किए गए वादों से पीछे हटने को दर्शाता है।
पेट्रोलियम मंत्रालय की गैस उपयोग नीति में कहा गया है कि फर्टिलाइजर संयंत्रों को प्राथमिकता के आधार पर गैस की आपूर्ति करनी पड़ेगी।
यह नियम देश में गैस उत्पादन करने वाली कंपनियों पर लागू होगा। उसके बाद पेट्रोकेमिकल्स उद्योग के लिए आपूर्ति जरूरी होगा। तीसरे नंबर पर गैस से संचालित विद्युत उत्पादक कंपनियां हैं।
गैस कंपनी के एक अन्य अधिकारी ने कहा कि एक बार जब गैस उपयोग नीति लागू हो जाएगी तो गैस उत्पादकों को कम कीमतों पर आपूर्ति के लिए मजबूर होना पड़ेगा।
फर्टिलाइजर विभाग के एक आला अधिकारी का कहना है कि 3.5 डॉलर प्रति मिलियन ब्रिटिश थर्मल यूनिट के आधार मूल्य पर कम कीमतों पर गैस मिलने लगेगी। इसका मतलब है कि फर्टिलाइजर कंपनियां 4.20 डॉलर प्रति मिलियन बीटीयू की दर से खरीद में सक्षम नहीं होंगी।
यह नेल्प नीति के तहत ब्लॉक आक्शन के बाद गैस की निधारित कीमत है। यह दर देश के पूर्वी तटीय इलाके में स्थित रिलायंस इंडस्ट्रीज के कृष्णा-गोदावरी बेसिन गैस ब्लॉक के लिए निर्धारित है।
गैस उपयोग नीति के मुताबिक आवंटन के बाद सरकार चाहती है कि इस बात को सुनिश्चित किया जाए कि गैस के सभी अवयवों का इस्तेमाल किया जाए।
यह फर्टिलाइजर संयंत्रों, पेट्रोकेमिकल यूनिट्स, एलपीजी संयंत्रों में प्रयोग किया जा सकता है, जहां ईंधन से हटकर गैस का इस्तेमाल फीडस्टोक के रूप में किया जाता है।
बहरहाल रिलायंस इंडस्ट्रीज का गैस जो देश में गैस की उपलब्धता को दोगुना कर देगा, बेहतर नहीं बल्कि कम गुणवत्ता की गैस होगी। इसका इस्तेमाल पेट्रोकेमिकल प्लांट में फीडस्टोक के रूप में कम होगा और इससे एलपीजी बनाना भी सरल नहीं है।
गैस आवंटन के बारे में किए गए हालिया फैसलों में निवेश करने वाले भ्रमित हुए हैं। गैस लिंकेज कमेटी (जीएलसी) का हाल ही में गठन किया गया जो विभिन्न उद्योगों को इसका वितरण उपलब्धता के अनुमानों के मुताबिक करेगी।
जीएलसी ने 120 मिलियन क्यूबिक मीटर प्रतिदिन गैस का आवंटन उपभोक्ताओं के लिए किया है। दो साल के लिए जब जीएलसी को डिसबैन किया गया था, देश में गैस की उपलब्धता केवल 80 एमसीएमडी था।
अब सरकार की कोशिश है कि गैस का आवंटन, इसका प्रयोग करने वाले उद्योगों को किया जाए। सरकार गैस बाजार पर नियंत्रण रखने से दूर ही रहना चाहती है।