चालू वित्त वर्ष 2023 में सरकार ने कम से कम 1.5 लाख करोड़ रुपये खर्च घटाया है, जिससे राजकोषीय घाटे (fiscal deficit) को नॉमिनल जीडीपी के 6.4 प्रतिशत के लक्ष्य पर रखने में मदद मिली है।
यह बचत सिंगल नोडल एजेंसी के माध्यम से बेहतरीन निगरानी, मनरेगा जैसी योजनाओं की बेहतरीन जांच, अपात्र लाभार्थियों व दोहराव को खत्म किए जाने, खाद्य सब्सिडी की खामियां दूर किए जाने, योजनाओं के लिए आवंटित धन खर्च न होने की वजह से हुई बचत के कारण हुई है।
इसके अलावा पूंजीगत व्यय से भी 20,000 करोड़ रुपये बचे हैं, क्योंकि राज्य सरकारें 1 लाख करोड़ रुपये के पूंजीगत व्यय के समर्थन का पूरा इस्तेमाल नहीं कर पाई हैं।
खर्च में कमी की राशि को अलग रखने पर केंद्र सरकार के कुल व्यय का संशोधित अनुमान (आरई) 43.4 लाख करोड़ रुपये रहा होता, जो 41.9 लाख करोड़ रुपये है। वही राजकोषीय घाटा जीडीपी के 7 प्रतिशत के करीब पहुंच जाता।
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा, ‘खर्च घटाना लगातार चल रही प्रक्रिया का हिस्सा है और हमें हर साल इसका लाभ दिख रहा है। इस साल एसएनए डैशबोर्ड के माध्यम से बचत और योजनाओं में खामियां दूर करने व खाद्य सब्सिडी योजना पर विशेष ध्यान था।
साथ ही हम मंत्रालयों की विभिन्न योजनाओं में गैर प्रमुख व्यय कम करने पर जोर देते रहे हैं।’सब्सिडी को छोड़कर व्यय में कमी को इस रूप में भी देखा जा सकता है कि वित्त वर्ष 23 के संशोधित अनुमान में राजस्व व्यय बजट अनुमान की तुलना में सिर्फ 60,577 करोड़ रुपये रहा है। जबकि सबसे बड़ी सब्सिडी खाद्य सब्सिडी के रूप में गई है, जो संशोधित अनुमान में 2.87 लाख करोड़ रुपये रहा है।
कहा जा रहा था कि दिसंबर 2022 के अंत तक यह 3.3 लाख करोड़ रुपये को पार कर जाएगा, क्योंकि प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेएवाई) का कई बार विस्तार किया गया था।
वित्त मंत्रालय के व्यय विभाग ने उपभोक्ता मामलों, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय से कहा कि वह देखे कि केंद्र सरकार की खाद्य गारंटी योजना के लिए खाद्यान्न की खरीद की लागत की गणना किस तरह से की जाती है।
परंपरागत रूप से खाद्य सब्सिडी की जो भी राशि होती थी, उसका भुगतान वित्त मंत्रालय करता है। व्यय विभाग ने यह साफ किया कि यह व्यवस्था जारी नहीं रहेगी और उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय से कहा कि लागत को वह उचित और तार्किक बनाए और इसमें अक्षमताओं को शामिल नहीं किया जाना चाहिए।
सरकार की एक प्रमुख योजना मनरेगा को लेकर भी ग्रामीण विकास मंत्रालय से कहा गया कि वह इसमें अक्षमताओं को चिह्नित करे।
केंद्र के नीति निर्माताओं की खासकर चिंता यह थी कि कोविड-19 महामारी के पहले मनरेगा लाभार्थियों की संख्या करीब 5 करोड़ थी, जो अर्थव्यवस्था में गिरावट के दौर में बढ़कर 7 करोड़ हो गई। लेकिन यह संख्या महामारी के पहले के स्तर पर नहीं आई, जबकि शहरी इलाकों में नौकरियों का सृजन महामारी के पहले की स्थिति में है।
ग्रामीण विकास मंत्रालय से यह भी चिह्नित करने को कहा गया कि देश के कुछ बेहतरीन प्रदर्शन करने वाले जिलों में मनरेगा के लाभार्थियों की संख्या ज्यादा क्यों है (आबादी के प्रतिशत के हिसाब से), जबकि आसपास के आकांक्षी जिलों (कम विकसित जिलों) में लाभार्थियों की संख्या कम है। इसके लिए कवायद चल रही है।
एक दूसरे अधिकारी ने कहा, ‘मनरेगा में अपात्र लाभार्थियों को बाहर किए जाने की कवायद लगातार चल रही है। हालांकि इस साल संशोधित अनुमान, बजट अनुमान की तुलना में ज्यादा है, लेकिन यह वित्त वर्ष 22 के वास्तविक खर्च की तुलना में कम है, जिसकी वजह से हम व्यय में कमी की उम्मीद कर रहे हैं।’
अधिकारियों ने कहा कि सबसे बड़ी मदद सिंगल नोडल एजेंसी (एसएनए) से मिली है। एसएनए वित्तीय प्रबंध व्यवस्था में नई अकाउंटिंग व्यवस्था है। इसके माध्यम से केंद्र सरकार की योजनाओं में राज्यों को दिए जाने वाले धन की निगरानी की जाती है। सीसीएल योजनाएं केंद्र व राज्यों द्वारा संयुक्त रूप से वित्त पोषित होती हैं।
एसएनए डैशबोर्ड के माद्यम से अधिकारी फंड की निगरानी कर सकते हैं, जो केंद्र के खजाने से मंत्रालयों और राज्य के कोषागारों और विभागों को भेजा जाता है और उसका भुगतान वेंडर, कांट्रैक्टर या योजनाओं को लागू करने वाली एजेंसियों को किया जाता है।
एसएनए के तहत राज्यों को एक योजना के लिए एक बैंक खाता खोलना पड़ता है और उस योजना के लिए आने वाला सभी धन उस खाते में जमा होता है। इसका मतलब यह है कि सैकड़ों और हजारों खातों की जगह केंद्र को महज करीब 3,000 खातों की निगरानी करनी पड़ रही है।
केंद्र सरकार ने पिछले वित्त वर्ष में एसएनए से करीब 1,000 करोड़ रुपये बचाए थे। सूत्रों का कहना है कि इस साल कम से कम 50,000 करोड़ रुपये बचे हैं। एसएनए डैशबोर्ड सुधरा है, जिससे अगले साल और बचत की उम्मीद है। दूसरे अधिकारी ने कहा, ‘इसके अलावा ऑर्गेनिक बचत भी हुई है। कुछ योजनाओं के लिए आंवटित राशि खर्च नहीं हुई है।’
हालांकि उन्होंने कहा कि अनिश्चित व्यापक आर्थिक माहौल का असर पड़ सकता है। वहीं वित्त मंत्रालय उम्मीद कर रहा है कि जिंसों के वैश्विक दाम काबू में रहेंगे और खाद्य व उर्वरक सब्सिडी के आवंटन में संशोधित अनुमान में अब और बढ़ोतरी नहीं होगी।
पूंजीगत व्यय को लेकर वित्त सचिव टीवी सोमनाथन ने 1 फरवरी को कहा था कि साल के लिए संशोधित अनुमान (7.28 लाख करोड़ रुपये), 7.5 लाख करोड़ रुपये के बजट अनुमान से कम है क्योंकि कुछ राज्यों ने पूंजीगत व्यय ऋण की शर्तें नहीं पूरी की है।