वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने गुरुवार को अर्थव्यवस्था पर एक ‘श्वेत पत्र’ संसद में पेश किया जिसमें कोविड टीकाकरण, खुले में शौच की समस्या को खत्म किए जाने से लेकर ई-श्रम पोर्टल और ऋणशोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार के सुधार एजेंडे को रेखांकित किया गया।
इसमें कहा गया, ‘तेजी से काम पूरा करने के बजाय हमने आने वाले दशकों में आर्थिक प्रदर्शन को बेहतर करने के लिए साहसिक सुधार किए। हमारी सरकार ने वर्ष 2014 में जब से सत्ता संभाली है, भारतीय अर्थव्यवस्था में कई संरचनात्मक सुधार हुए हैं जिसके चलते अर्थव्यवस्था की व्यापक आर्थिक बुनियाद मजबूत हुई है।’
करीब 59 पृष्ठों के इस श्वेत पत्र में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) बनाम राजग सरकार के अंतिम दो दशकों की तुलना की गई और संप्रग की महत्त्वपूर्ण सुधार करने में नाकाम रहने के लिए आलोचना की।
इस श्वेत पत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा किए गए विभिन्न सुधारों का जिक्र किया गया जिनमें एक राष्ट्र, एक बाजार के लिए जीएसटी, राजस्व संग्रह में सुधार के लिए कर सुधार, आयुष्मान भारत योजना, ग्रामीण भूमि प्रबंधन के लिए स्वामित्व के जरिये भूमि दस्तावेजों का डिजिटलीकरण और लोगों के आर्थिक सशक्तीकरण की योजना भी इसमें शामिल है।
श्वेत पत्र में कहा गया कि सुधारों के बलबूते ही महज एक दशक में ही भारत आर्थिक रूप से मजबूत शीर्ष पांच देशों के गुट में शामिल हो गया। इसमें यह भी कहा गया कि संप्रग सरकार ने जो अतिरिक्त नियंत्रण किए थे उन्हें राजग के दौर में बेहद तार्किक बनाया गया।
मिसाल के तौर पर संप्रग सरकार ने तटीय क्षेत्रों में अस्थायी और टिकाऊ पर्यटन सुविधाओं के निर्माण मसलन होटलों और रिजॉर्ट बनाना प्रतिबंधित किया था लेकिन राजग सरकार के कार्यकाल में इसकी अनुमति दे दी गई।
श्वेत पत्र में कहा गया कि मौजूदा सरकार के कार्यकाल के दौरान भारत का चालू खाता घाटा (सीएडी), निवेश स्थिर रहा और देश की मुद्रा भी वैश्विक हालात की चुनौतियों का सामना मजबूती से कर पाई। वहीं विदेशी मुद्रा भंडार में भी अच्छी-खासी तेजी देखी गई।
इस पत्र में कहा गया कि संप्रग सरकार के कार्यकाल के दौरान बाह्य वाणिज्यिक उधारियों (ईसीबी) पर अति निर्भरता के चलते यह वित्त वर्ष 2004 से लेकर वित्त वर्ष 2014 के दौरान 21.1 फीसदी की सालाना चक्रवृद्धि दर से बढ़ी। वहीं दूसरी ओर राजग के कार्यकाल के दौरान वित्त वर्ष 2023 में खत्म हुई 9 साल की अवधि के दौरान ईसीबी सालाना 4.5 फीसदी की दर से बढ़ी।
श्वेत पत्र में कहा गया, ‘इसमें कोई हैरानी की बात नहीं है कि वर्ष 2013 में हमारी अर्थव्यवस्था बेहद असुरक्षित स्थिति में थी जब अमेरिकी डॉलर में उछाल देखी गई। वर्ष 2011 और 2013 के बीच अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये में 36 प्रतिशत की गिरावट देखने को मिली।’
सकल घरेलू उत्पाद में भारत के औसत चालू खाता घाटे में वित्त वर्ष 2015 और वित्त वर्ष 2023 के बीच 1.1 प्रतिशत की कमी आई।